ललित मौर्या

इस साल भारत सहित करीब 30 देशों में हैजे के मामले सामने आए है। वहीं पिछले पांच वर्षों में औसतन 20 से कम देशों ने इसके संक्रमण की सूचना दी थी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते दुनिया भर में हैजे का प्रकोप बढ़ सकता है। एजेंसी का कहना है कि इस साल पिछले वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा प्रकोप सामने आए हैं, जो पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा घातक थे।

इस बारे में प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि इस साल करीब 30 देशों में हैजे के मामले सामने आए है। वहीं पिछले पांच वर्षों में औसतन 20 से कम देशों ने इसके संक्रमण की सूचना दी थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के हैजा और डायरिया से जुड़े अन्य रोगों के टीम हेड डॉक्टर फिलिप बारबोजा का इस बारे में कहना है कि नक्शे में हर जगह इसके खतरे की जद में है।

उनके अनुसार यह स्थिति काफी हैरान करने वाली है क्योंकि न केवल हम पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रकोप देख रहे हैं, बल्कि यह प्रकोप पिछले वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा व्यापक और घातक भी हैं। पिछले कई वर्षों में इनके हैजे के मामलों और उससे होने वाली मौतों में कमी आ रही थी। लेकिन अब हैजे के प्रकोप में वृद्धि दर्ज की गई है।

डॉक्टर बारबोजा का कहना है कि संघर्ष और विस्थापन के साथ-साथ कई सामान्य कारकों ने भी 2022 में हैजे के वैश्विक प्रकोप में हुई वृद्धि में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन साथ ही उन्होंने जोर देकर कहा है कि इसपर जलवायु परिवर्तन का असर भी बहुत स्पष्ट था।

उनका कहना है कि इनमें से ज्यादातर बड़े प्रकोप एक साथ घट रहे हैं जो स्थिति को कहीं ज्यादा जटिल बनाते हैं। देखा जाए तो यह जलवायु में आते बदलावों और उनसे बढ़ रही समस्याओं का प्रत्यक्ष प्रभाव हैं। उनके अनुसार हॉर्न ऑफ अफ्रीका और साहेल क्षेत्र में हैजे का प्रकोप बाढ़, अभूतपूर्व मानसून और चक्रवातों के साथ फैल रहा है।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार इस साल सिर्फ अफ्रीका ही नहीं कई अन्य देश भी इस बीमारी से प्रभावित हुए हैं, जिनमें हैती, लेबनान, भारत, पाकिस्तान और सीरिया शामिल हैं। इनमें से कई देशों में तो इनका प्रकोप कहीं ज्यादा व्यापक था।

उनका कहना है कि इनमें से ज्यादातर बड़े प्रकोप एक साथ घट रहे हैं जो स्थिति को कहीं ज्यादा जटिल बनाते हैं। देखा जाए तो यह जलवायु में आते बदलावों और उनसे बढ़ रही समस्याओं का प्रत्यक्ष प्रभाव हैं। उनके अनुसार हॉर्न ऑफ अफ्रीका और साहेल क्षेत्र में हैजे का प्रकोप बाढ़, अभूतपूर्व मानसून और चक्रवातों के साथ फैल रहा है।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार इस साल सिर्फ अफ्रीका ही नहीं कई अन्य देश भी इस बीमारी से प्रभावित हुए हैं, जिनमें हैती, लेबनान, भारत, पाकिस्तान और सीरिया शामिल हैं। इनमें से कई देशों में तो इनका प्रकोप कहीं ज्यादा व्यापक था।

यह बीमारी कितनी घातक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर साल इस बीमारी के 40 लाख तक मामले सामने आते हैं। वहीं 143,000 लोगों की मौत इस बीमारी से हो जाती है।

हैजा एक ऐसी बीमारी है जिसे रोका जा सकता है। हालांकि इसके टीकों की वैश्विक कमी अभी भी बनी हुई है। इसके दो सबसे बड़े निर्माता भारत और दक्षिण कोरिया पहल ही क्षमता का अधिकतम उत्पादन कर रहे हैं जो हर वर्ष 3.6 करोड़ खुराक है। डॉक्टर बारबोजा ने जानकारी दी है कि टीकों के उत्पादन के लिए दक्षिण अफ्रीकी में भी एक पहल जारी है, लेकिन उसे अमलीजामा पहनने में अभी भी कुछ साल लग सकते हैं।

उनके अनुसार यह टीके इतने दुर्लभ हैं, कि अंतर्राष्ट्रीय समन्वय समूह (आईसीजी) को हैजा के प्रकोप से निपटने के लिए अक्टूबर में अपनी वैश्विक टीकाकरण रणनीति को दो खुराक से घटाकर एक करने का निर्णय लेना पड़ा था।

हालांकि टीके की कमी के बावजूद, डब्ल्यूएचओ अधिकारी ने जोर देकर कहा है कि अन्य बीमारियों जिनके ईलाज के लिए वेंटिलेटर या विशेष गहन चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है, उनकी तुलना में हैजा का इलाज आसान है। हालांकि यह तभी मुमकिन हो सकता है जब रोगियों को सही समय पर देखभाल और एंटीबायोटिक्स दिए जाएं।

डॉक्टर बारबोजा के अनुसार एक बात तो स्पष्ट है कि हैजा गरीबों की बीमारी हैं, क्योंकि किसी भी देश की सबसे कमजोर आबादी ही इसका सबसे ज्यादा शिकार बनती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उनके पास साफ पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच सीमित हैं।

(‘डाउन-टू-अर्थ‘ पत्रिका से साभार)

Spread the information

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *