जानवरों पर जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ने वाले प्रभावों पर हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने नई चौंकाने वाली जानकारी हासिल की है. उन्होंने पाया है कि एक प्रजाति के अलग-अलग जनसंख्याएं भी बदलती हालात के अनुकूल ढालने की अलग क्षमताएं विकसित कर सकती हैं. इसमें महासागर के जानवरों में धरती के जानवरों की तुलना में ज्यादा विविधता दिखी है.

जलवायु परिवर्तन में तेजी बहुत सारे जानवरों और पादपों पर बहुत ज्यादा दबाव डाल रही है. यहां तक कि बहुत सारे वैज्ञानिकों का मानना है कि हम इस समय छठे महाविनाश से गुजर रही है, क्योंकि पृथ्वी की सभी प्रजातियां औद्योगिक युग के पहले की तुलना में दस हजार गति से विलुप्त हो रही हैं. लेकिन विशेषज्ञ यह तय करने में असमर्थ हैं कि कौन से पारिस्थितिकी तंत्र या प्रजातियां सबसे ज्यादा जोखिम का सामना कर रही हैं.

एमहर्स्ट की मुसाचुसेट्स यूनवर्सिटी की अगुआई में हुए नए अध्ययन में वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रजातियों के स्तर पर जोखिम पर ध्यान केंद्रित रखने से तापमान सहशीलता बहुत सारी विविधता जानने में रोड़ा बन जाते हैं. यह विविधता धरती की जीवों की तुलना महासागरीय जीवन में ज्यादा देखने को मिलती है. इस पड़ताल के संरक्षण और प्रबंधन पर अहम प्रभाव पड़ेंगे और तेजी से गर्म होती दुनिया में अनुकूल होने के प्रयास दिशा में उम्मीद की किरण भी जगाती है.

यूमास्ट एमहर्स्ट में मारीन इकोलॉजी के प्रोफेसर और इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक ब्रायन चेंग का कहना है कि पिछली सदी में सबसे बड़ी जैविक खोजों में एक यही हुई है कि जितना पहले सोचा गया था उद्भव उससे कहीं तेजी से हो सकता है. इसके प्रभावों में से एक यह भी है कि एक ही प्रजाति की अलग-अलग जनसंख्या अपने स्थानीय पर्यावरण को परंपरागत जीवविज्ञान में जैसे संभव माना जाता है, उसकी तुलना में तेजी से खुद को अनुकूल ढाल सकती हैं.

शोधकर्ताओं ने पिछले 90 अध्ययनों का विश्लेषण किया और 61 जानवरों की प्रजातियों के आंकड़े हासिल किए. इससे उन्होंने एक तापमान विशेष की उच्चतर तापीय सीमा के समूह का निर्माण किया जिसके ऊपर हर प्रजाति खुद को बचा ही नहीं सकती है. फिर भी और गहराई से विश्लेषण करने पर उन्होंने इन्हीं प्रजातियों में से 305 अलग जनसंख्याओं की पहचान भी की. उन्होंने पाया कि एक प्रजाति के अलग जनसंख्याओं की प्रायः अलग अलग तापीय सीमाएं हैं.

शोधकर्ताओं ने पाया कि यह अंतर धरती के जानवरों की तुलना में महासागरीय जीवन में ज्यादा है. लेकिन धरती की प्रजातियों ने अपने तापीय सीमाओं में ज्यादा तालमेल दिखाया. इसका मतलब यही है कि वे बढ़ते तापमान के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं. फिर भी वे दूसरे इलाकों, जहां कम गर्मी पड़ती है, छांव में जाकर खुद को चरम तापमान से बचाने का फायदा उठा सकते हैं.

यह खोजें दर्शाती हैं कि कुछ जनसंख्याओं ने उच्च तापमान को सहने की अलग ही क्षमताएं विकसित की हैं. इसलिए संरक्षण में एक ही प्रजाति की अलग-अलग जनसंख्याओं को जोड़े रखना एक अहम पहलू होगा. जिससे जिन हिस्सों ने खुद में उच्च तापमान का अनुकूलन पैदा कर दिया है, वे यह फायदा दूसरी जनसंख्याओं तक पहुंचा सकें.

नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित इस पड़ताल के नतीजे कुल मिला कर दर्शाती हैं कि एक प्रजाति में सभी एक तरह के जीव होंगे, संरक्षण और प्रबंधन का यह नजरिया काम नहीं कर सकता है. इसकी जगह बदलते हुए परिवेश में कमजोरी का अनुमान लगाने के लिए हमें यह समझना होगा कि जनसंख्याओं ने खुद को स्थानीय माहौल के अनुकूल कैसे ढाला है. चेंग का कहना है कि यहां एक हलकी सी उम्मीद ये है कि संरक्षण नीतियों को जनसंख्या विशेष तक सीमित करने से हमें गर्म होती दुनिया में कुछ समय मिल सकता है.

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