ललित मौर्या

रक्त चंदन, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की चौथी अनुसूची में संरक्षित प्रजातियों की सूची में शामिल है इसके बावजूद इसका अवैध व्यापार प्रजाति पर मंडराते गंभीर खतरे को उजागर करता है

देश में रक्त चंदन का अवैध व्यापार तेजी से फल-फूल रहा है। इसकी पुष्टि अंतराष्ट्रीय संगठन ट्रैफिक और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया द्वारा जारी नई फैक्टशीट “रेड सैंडर्स: फैक्टशीट ऑफ इंडियाज रेड सैंडर्स इन इलीगल वाइल्डलाइफ ट्रेड” से हुई है।

फैक्टशीट के मुताबिक देश से 2016 से 2020 के दौरान 19,049 टन से ज्यादा रक्त चंदन की लकड़ी की तस्करी की गई थी। सीआईटीईएस ट्रेड डेटाबेस ने ऐसे 28 घटनाएं दर्ज की हैं जिनमें भारत से निर्यात किए जा रहे रक्त चन्दन को जब्त किया गया है या फिर उसके नमूने मिले हैं।

2 फरवरी, 2023 को जारी इस नई फैक्टशीट से पता चला है कि चीन इसका सबसे बड़ा आयातक है। अवैध रूप से निर्यात की गई इस लकड़ी का करीब 53.5 फीसदी हिस्सा चीन को भेजा गया था। गौरतलब है कि चीन में भारतीय रेड सैंडर्स की बहुत ज्यादा मांग है। इसके अलावा इस लकड़ी का करीब 25 फीसदी हिस्सा हांगकांग, 17.8 फीसदी सिंगापुर जबकि साढ़े तीन फीसदी हिस्से को अवैध रूप से अमेरिका भेजा गया था।

रिपोर्ट की मानें तो रेड सैंडर्स देश में यह सबसे ज्यादा दोहन किए जा रहे पेड़ों की प्रजातियों में से एक है, जो अवैध कटाई के चलते भारी दबाव में है। आंध्र प्रदेश वन विभाग के मुताबिक राज्य के चित्तूर, कडप्पा, नेल्लोर और कुरनूल जिलों में बड़े पैमाने पर इसकी अवैध कटाई और तस्करी की सूचना मिली है।

लाल चंदन या रेड सैंडर्स जिसे रक्त चंदन के नाम से भी जाना जाता है, दुर्लभ प्रजाति का पेड़ है। इसका वैज्ञानिक नाम टेरोकार्पस सैंटालिनस है। यह पेड़ मूल रूप से भारत के पूर्वी घाट में विशेष रूप से आंध्र प्रदेश के जंगलों में पाया जाता है।

मुख्य रूप से यह आंध्रप्रदेश के चार जिलों चित्तूर, कडप्पा, नेल्लोर, कुरनूल में फैली शेषाचलम की पहाड़ियों में पाए जाते हैं। लेकिन कथित तौर पर केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में भी इनकी खेती की जाती है।

इसकी लकड़ी विशेष रूप से लाल रक्त के समान आभा लिए होती है। यही वजह है कि इसे भारत में रक्त चन्दन भी कहते हैं। मूल रूप से यह पेड़ शुष्क क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यह पेड़ चन्दन की दो प्रजातियों सफेद और लाल चन्दन में से एक है।

आईयूसीएन के मुताबिक विलुप्त होने के कगार पर है यह प्रजाति

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसे काफी पवित्र माना जाता है। चन्दन की लकड़ी का पूजा में इस्तेमाल किया जाता है। जहां सफेद चन्दन में सुगंध होती है, वहीं इसके विपरीत रक्त चन्दन में कोई सुगंध नहीं होगी, लेकिन यह काफी गुणकारी होता है।

यही वजह है कि इसका उपयोग औषधी के साथ-साथ सौंदर्य प्रसाधनों में भी किया जाता है। इससे महंगे फर्नीचर और सजावटी सामान बनाए जाते हैं। साथ ही प्राकृतिक रंग और शराब बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।

पेड़ की यह प्रजाति सूखा प्रतिरोधी होने के साथ-साथ इसकी लकड़ी जल्दी से आग में नहीं जलती है। यह पेड़ 10 से 15 मीटर तक ऊंचे होते हैं, लेकिन उनका घनत्व काफी ज्यादा होता है। यही वजह है कि इसकी लकड़ी पानी में डूब जाती है।

इतना ही नहीं यह पेड़ लकड़ी में स्ट्रोंटियम, कैडमियम, जिंक और कॉपर जैसे भारी और दुर्लभ तत्वों को संचित करने की क्षमता के लिए जाना जाता है। हालांकि यह बहुत धीमी गति से बढ़ने वाला पेड़ है, जिसे पूरी तरह से तैयार होने में 25 से 40 वर्ष का समय लग जाता है।

प्रकृति के संरक्षण के लिए बनाए अंतरराष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) के मुताबिक पेड़ की यह प्रजाति अब विलुप्त होने के कगार पर है। ऐसे में इसे बचाने के लिए प्रयास भी किए जा रहे हैं।

फैक्टशीट के मुताबिक जिस तरह से लकड़ी के लिए इसका अवैध दोहन किया जा रहा है वो इस प्रजाति के लिए खतरा बन गया है। साथ ही कृषि, चराई, जंगल में लगती आग भी इसके लिए संकट पैदा कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट भी बचाने की कर चुका है सिफारिश

गौरतलब है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी 2012 में इसको लेकर दिए एक फैसले में केंद्र सरकार को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की चौथी अनुसूची में संरक्षित प्रजातियों की सूची में इसे शामिल किए जाने की सिफारिश की थी। हालांकि इसके करीब दस वर्ष बाद हाल ही में दिसंबर 2022 में इस अधिनियम में संशोधन करके इसे चौथी अनुसूची में शामिल किया गया है।

चूंकि यह आंध्रप्रदेश की एक स्थानीय मूल प्रजाति है। ऐसे में इसका उपयोग और व्यापार राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है। वहीं यदि भारत की विदेश व्यापार नीति के तहत इसका आयात प्रतिबंधित है, जबकि निर्यात को सीमित किया गया है।

आंध्रप्रदेश में इसके अवैध व्यापार को रोकने के लिए 2016 में आंध्र प्रदेश वन अधिनियम में संशोधन करते हुए रक्त चन्दन के पेड़ को विशेष दर्जा दिया गया है। इससे जुड़े अपराधों और संज्ञेय और गैर-जमानती बनाया गया है। साथ ही इससे जुड़े दंड में भी वृद्धि की गई है। राज्य में इसके अवैध रूप से रखने पर इसे जब्त किया जा सकता है। इससे पहले 2014 में लाल चंदन की तस्करी से निपटने के लिए आंध्र प्रदेश वन विभाग ने  का गठन किया  था। यही वजह है कि राज्य में कई जगहों पर इसे जब्त किया गया है।

इसकी तस्करी को रोकने के लिए राज्य वन विभाग ने कई महत्वपूर्ण स्थानों पर इसकी निगरानी के लिए चेक पोस्ट भी बनाए हैं। साथ ही सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स वेबसाइटों की भी निगरानी की जा रही है।

हालांकि इसके बावजूद इसकी अवैध तस्करी की जो जानकारी सामने आई है वो चिंताजनक है। ऐसे में इसके संरक्षण को लेकर किए जा रहे प्रयासों को तेज करना जरूरी है। अवैध तस्करी की घटनाओं को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई जरूरी है। साथ ही उपभोक्ताओं को भी इसके अवैध व्यापार और प्रजाति पर मंडराते खतरे को लेकर जागरूक करना होगा जिससे इससे बढ़ती मांग पर अंकुश लगाया जा सके।

  (‘डाउन-टू-अर्थ‘ पत्रिका से साभार )

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