विकास शर्मा

विश्व दूरसंचार और सूचना समाज पर विश्व को सभी को, विशेष तौर पर अल्प विकसित देशों को, संचार तकनीकों के समान और व्यापक लाभ मिल सकें. यह सुनिश्चित करना आज की तारीख में कठिन और अधिक चुनौती पूर्ण हो गया है. लेकिन डिजिटल विभाजन की खाई को पाटने के महत्व के कम नहीं किया जा सकता है.

दूरसंचार तकनीक का उपयोग पूरी दुनिया में बहुत तेजी से बढ़ रहा है. दूरसंचार के फायदे तो बहुत हैं, पर कई देश विकासशील देशों से विकसित देशों की श्रेणी में आने की दस्तक देने में सक्षम हो गए हैं. लेकिन फिर भी क्या दूरसंचार का फायदा दुनिया में सभी लोगों और सभी वर्गों  मिलपा रहा है और अगर दूर संचार तकनीकों से विकसित देशों की तरक्की को पर लगे थे, तो फिर कम विकसित देश इसका लाभ लेने में पीछे क्यों हैं. 17 मई को मनाया जा रहा विश्व दूरसंचार और सूचना समाज दिवस में इसी पर जोर दिया जा रहा है.

कैसे हुई थी इस दिन की शुरुआत
सबसे पहले 17 मई 1865 इसी दिन इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन की स्थापना हुई थी. जिसके बाद से इसे विश्व दूरसंचार दिवस के नाम से ही मनाया गया था.  यह स्थापना तुर्की के अंतालिया में हुई इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन प्लेनिपोटेंशियरी कॉन्फ्रेंस में हुई थी. बाद में इस दिवस के साथ ही वर्ल्ड इन्फोर्मेशन सोसाइटी डे के साथ मिला दिया गया था. इसी दिन पहली अंतरराष्ट्रीय टेलीग्राफ संगोष्ठी भी हुई थी.

अल्पविकसित देश और डिजिटल विभाजन
विश्व दूरसंचार और सूचना समाज दिवस को मनाने का मकसद संसार में बढ़ते डिजिटल विभाजन के अंतर को पाटने के लिए लोगों में इंटरनेट और अन्य सूचना एवं संचार तकनीकों के उपयोग के लिए जागरूकता फैलाना है. आज जबकि आधुनिक दुनिया में दूरसंचार तकनीक के बिना जीवन की कल्पना ही करना मुश्किल होता जा रहा है, ऐसे में हैरानी होती है कि दुनिया के अल्पविकसित देश और उनका एक अच्छा खासा तबका इनसे वंचित है.

मानव विकास के लाभों में सभी की भागीदारी जरूरी
इसी वजह से इस साल विश्व दूसरंचार संघ ने “अल्प विकसित देशों को सूचना और संचार तकनीकों के जरिए सशक्त करना” रखा है. मकसद डिजिटल विभाजन को कम करना है जिससे वंचित वर्ग को सूचना और संचार तकनीकों के लाभ मिल सके. मानव विकास के लाभों में सभी की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए यह इस तरह के विभाजन को दूर करना बहुत जरूरी है.

विश्व दूसरंचार संघ का अनुरोध
इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ निजी और सार्वजनिक क्षेत्र से अल्पविकसित देशों में वैश्विक जुड़ाव और डिजिटल रूपांतरण के प्रयास करने का अनुरोध किया है. ऐसा वे अपने पार्टनर टू कनेक्ट डिजिटल गठबंधन के जरिए कर सकते हैं. इसकी जरूरत पर जोर देते हुए संघ का कहना है कि ये देश संयुक्त राष्ट्र के संधारणीय विकास के लक्ष्यों को पूरा करने में बहुत बड़े चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र का भी इसी पर जोर
खुद संयुक्त राष्ट्र ने भी इस अवसर पर अल्प विकसित देशों में संधारणीय विकास के लिए तकनीकी की शक्ति को रेखांकित किया है. अपने संदेश में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने कहा कि डिजिटल क्रांति इस युग को परिभाषित करने का काम रही है जिसमें शिक्षा रूपांतरण और स्वास्थ्य देखरेख से लेकर जलवायु क्रियात्मकता और  सभी संधारणीय विकास लक्ष्यों को हासिल करने के अवसर असीमित हैं.

खतरों की चुनौती
लेकिन तकनीक के वादे तो हासिल करने के लिए हमें उसके खतरों का भी सामना करना होगा. नैतिक सुरक्षा और सरकारी ढांचे की कमी, बढ़ती नफरतें और गलत सूचना, बढ़ती सामाजिक दूरिया और आर्थिक असमानताएं, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस द्वारा पैदा किए जोखिम, जैसे खतरों का भी सामना करना होगा.

गुतरेस का कहना है कि तकनीक को इस डिजिटल विभाजन को कम करने का उपकरण होना होगा ना कि उसपर निर्भर रहने का. हमें नाटकीय ढंग से डिजिटल विभाज को खत्म करने के लिए तकनीक तक पहुंच बढ़ाने के साथ और समावेशी होना होगा. हमें लोकसंस्थानों में निवेश करना होगा जिससे उनमें संसाधन और कुशलताओं का विकास हो सके. साथ ही हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि डिजिटल स्तर पर मानव अधिकार संरक्षित रहें, तकनीक इंसानों के भले के लिए ही काम करती रहे और सभी लोग तनकनीक से जुड़े रहने में समक्ष बने रहें.

(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )

Spread the information

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *