भारत में मकर संक्रांति का पर्व हर साल 14 या 15 जनवरी को आता है. इसका वैज्ञानिक, खगोलीय और जलवायु रूप से विशेष महत्व है और इसे मनाने की तारीख कभी 14 जनवरी तो कभी 15 जनवरी के होने के पीछे पश्चिमी कैलेंडर और भारतीय पंचांग के बीच कुछ अवधारणात्मक अंतर है.

मकर संक्रांति भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए एक विशेष महत्व का दिन होता है. खुद भारत में ही इस मौके पर अलग अलग संस्कृतियों में इसे अलग नाम के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. लेकिन मकर संक्राति कई लिहाज से काफी अलग और महत्वपूर्ण हो जाती है इसलिए इस दिन का केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि इसका वैज्ञानिक, खगोलीय और जलवायु महत्व भी है. इस दिन का संबंध पृथ्वी के मौसम परिवर्तन काल, से भी है तो वहीं इसकी तरीख की भी अपनी अहमियत है जो अमूमन 14 या 15 जनवरी ही रहती है जिसका भी एक कारण है.

क्या है मकर संक्रांति?
पृथ्वी को ब्रह्माण्ड का केंद्र माना जाए तो आभारी रूप से  एक साल में सूर्य पृथ्वी का एक पूरा चक्कर लगाता दिखाई देता है. जबकि वास्तविकता में ऐसा पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा कारण होता है क्योंकि पृथ्वी के चक्कर लगाने से सूर्य के पीछे की पृष्ठभूमि बदलती है और ऐसा लगता है की सूर्य अलग अलग तारामंडल से गुजरता दिखाई देता है. पूरे चक्कर को 12 भागों में बांटा गया है और जिस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता दिखता है.

तो मकर संक्रांति अलग क्यों
सूर्य की  परिक्रमा करते समय पृथ्वी और सूर्य के पीछे की राशि के बदलाव के दौरान पृथ्वी के अक्ष का झुकाव एक सा रहता है, लेकिन उसके कारण एक गोलार्द्ध छह महीने सूर्य के सामने तो दूसरे छह महीने पीछे रहता है. इस वजह से पृथ्वी पर सूर्य की किरणों का कोण बदलता रहता है और सूर्य छह महीने उत्तर की ओर तो छह महीने दक्षिण की ओर जाने का आभास देता है. इसी को हिंदू धर्म में उत्तरायण और दक्षिणायण कहते हैं और मकर संक्रांति में सूर्य दक्षिणायण उतरायाण काल में जाना माना जाता है.

मौसम के बदलाव का संकेत भी
इसी वजह से मकर संक्रांति के बाद उत्तरी गोलार्ध में सूर्य उत्तर की ओर जाने लगता है और भारत सहित उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी कम होने लगती है और गर्मी बढ़ने लगती है. ऐसा 21 जून तक होता है जिसके बाद से क्रम उल्टा होने लगता है. लेकिन भारत में मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व ज्यादा है. और यह तारीख14 या 15 जनवरी को पड़ती है.

21 दिसंबर नहीं, 14-15 जनवरी क्यों
वैज्ञानिक तौर पर देखें को वास्तव में यह तारीख 21 दिसंबर को होनी चाहिए जब सूर्य वास्तव में उत्तर की ओर खिसकना शुरू होता है. लेकिन भारत और उत्तरी ध्रुव के मध्य अक्षांशीय देशों में यह प्रभाव मकर संक्रांति पर ज्यादा प्रभावी माना जाता है. इस अंतर की एक वजह है कि जहां तकनीकी तौर पर उत्तरायण 21 दिसंबर को शुरू होता है. वहीं हिंदू पंचांग में मकर संक्रांति से उत्तरायण को प्रभावी माना गया है. फिलहाल यह अंतर 24 दिन का है और पृथ्वी की घूर्णन के अक्ष में हर 1500 साल में होने वाले बदलाव की वजह से यह अंतर दिखता है. अब से 1200 साल बाद यह तारीख फरवरी के महीने में खिसक जाएगी.

यही तारीखें क्यों?
भारत में सामान्यतः सभी त्यौहार चंद्रमा के चक्र के अनुसार होते हैं जिसकी वजह से अंग्रेजी कैलेंडर की वजह से उनकी तारीख हर साल काफी बदल जाती है. यही वजह है कि होली, दिवाली, जैसे त्योहार अलग अलग तारीखों पर पड़ते हैं. लेकिन केवल मकर संक्रांति ही ऐसा त्योहार है जो सामान्यतः 14 या 15 जनवरी को पड़ता है जो कि सूर्य की चाल के आधार पर होता है और अंग्रेजी कैलेंडर का आधार भी सूर्य की चाल ही है.

पर 14 या 15 का अंतर क्यों?
दरअसल मकर संक्राति का नियम यह है कि जिस समय सूर्य का सूर्यास्त के बाद मकर राशि में प्रवेश होता है उसके अगले दिन ही मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. 2001 से लेकर 2007 तक ऐसा 14 जनवरी को दिन में हो रहा था. लेकिन 2008 को यह 14-15 जनवरी को रात को 12.07 मिनट पर संक्रमण हुआ जिससे संक्राति का पर्व उस साल 15 जनवरी हो गया. हर साल यह समय 6 घंटे 9 मिनट आगे खिसकता है और चार साल में यह 24 घंटे 36 आगे खिसकता है, लेकिन लीप वर्ष आने के कारण यह 24 घंटे पीछे खिसक जाता है यानि हर चार साल में 36 मिनट आगे खिसकता है जिससे कुछ सालों में संक्रांति की तारीख आगे खिसक जाती है.

साल 2009 से 2012 तक संक्रांति का दिन 14-14-15-15 था. यह सिलसिला 2048 तक चलेगा इसके बाद 14-15-15-15 हो जाएगा. फिर 2089 से 15-15-15 -15 हो जाएगा. ऐसा हर 40 साल में होता रहेगा. लेकन साल 2100 लीपवर्ष होने के बावजूद 400 से विभाजित होने के कारण लीपवर्ष नहीं माना जाएगा इसलिए यह पैटर्न चार साल में पीछे नहीं खिसकेगा इसलिए 2100 से 2104  यह पैटर्न 16-16-16-16 हो जाएगा. इस बदलाव की वजह पृथ्वी के घूर्णन अक्ष की सूर्य और चंद्रमा के गुरुत्व के कारण होने वाली डगमगाहट है.

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