14 अप्रैल 1891 को जन्मे डॉ. भीमराव अंबेडकर का आज ही के दिन यानी 6 दिसंबर 1956 को 65 साल की उम्र में निधन हो गया था। उन्हें बाबासाहब अंबेडकर भी कहा जाता था। वे एक विद्वान, न्यायविद, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और महिलाओं और श्रमिकों के अधिकारों का समर्थन करते हुए अछूतों (दलितों) के प्रति सामाजिक भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाया।

वह स्वतंत्र भारत के पहले कानून और न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माता थे। अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट हासिल की। अपने शुरुआती करियर में वह एक अर्थशास्त्री, प्रोफेसर और वकील थे। बाद में  वे राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हुए। वह भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रचार और वार्ता में शामिल हुए। उन्होंने राजनीतिक अधिकारों और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत की। 

‘हिंदू के रूप में हरगिज नहीं मरूंगा’

14 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपना लिया। उन्होंने हिंदू धर्म और हिंदू समाज को सुधारने, समता तथा सम्मान प्राप्त करने के लिए तमाम प्रयत्न किए, परंतु सवर्ण हिंदुओं का ह्रदय परिवर्तन न हुआ। उन्होंने कहा कि हमने हिंदू समाज में समानता का स्तर प्राप्त करने के लिए हर तरह के प्रयत्न और सत्याग्रह किए, परंतु सब निरर्थक सिद्ध हुए। हिंदू समाज में समानता के लिए कोई स्थान नहीं है। ऐसे धर्म का कोई मतलब नहीं जिसमें मनुष्यता का कुछ भी मूल्य नहीं। 13 अक्टूबर 1935 को अंबेडकर ने धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की। उन्होंने कहा, ‘हालांकि मैं एक अछूत हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन मैं एक हिंदू के रूप में हरगिज नहीं मरूंगा!’ 

मरणोपरांत मिला भारत रत्न 

बाद में 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर शहर में भीमराव अंबेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक धर्मांतरण समारोह का आयोजन किया। उन्होंने कहा था, ‘मैं बुद्ध के धम्म को सबसे अच्छा मानता हूं। इससे किसी धर्म की तुलना नहीं की जा सकती है। यदि एक आधुनिक व्यक्ति जो विज्ञान को मानता है, उसका धर्म कोई होना चाहिए, तो वह धर्म केवल बौद्ध धर्म ही हो सकता है। सभी धर्मों के घनिष्ठ अध्ययन के पच्चीस वर्षों के बाद यह दृढ़ विश्वास मेरे बीच बढ़ गया है।’ बाबासाहब को 1990 में भारत रत्न से मरणोपरांत सम्मानित किया गया।

डॉक्‍टर भीमराव अंबेडकर समाज में दलित वर्ग को समानता दिलाने के लिए जीवनभर संघर्ष करते रहे. उन्‍होंने दलित समुदाय के लिए एक ऐसी अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की, जिसमें कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों का ही कोई दखल न हो. 1932 में ब्रिटिश सरकार ने अंबेडकर की पृथक निर्वाचिका के प्रस्‍ताव को मंजूरी दे दी, लेकिन इसके विरोध में महात्‍मा गांधी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया. इसके बाद अंबेडकर ने अपनी मांग वापस ले ली. बदले में दलित समुदाय को सीटों में आरक्षण और मंदिरों में प्रवेश करने का अध‍िकार देने के साथ ही छुआ-छूत खत्‍म करने की बात मान ली गई.

डॉक्‍टर भीमराव अंबेडकर को डायबिटीज की बीमारी थी. अपनी आख‍िरी किताब ‘द बुद्ध एंड हिज़ धम्‍म’ को पूरा करने के तीन दिन बाद 6 दिसंबर, 1956 को दिल्‍ली में उनका निधन हो गया. उनका अंतिम संस्‍कार मुंबई में बौद्ध रीति-रिवाज के साथ हुआ. उनके अंतिम संस्‍कार के समय उन्‍हें साक्षी मानकर करीब 10 लाख समर्थकों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी.

Spread the information