17 मार्च : जन्मदिन विशेष

कल्पना चावला: कल्पना की उड़ान कल्पनाओं से भी ऊंची थी

मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूँ। प्रत्येक पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए ही मरूँगा.
कल्पना चावला
सभी लोगों को दुनिया में एक न एक दिन इस खूबसूरत जहां को अलविदा कहना होता है मगर दुनिया में कुछ लोग सिर्फ जीने के लिए आते हैं, मौत महज उनके शरीर को खत्म करती है.कल्पना चावला ऐसी ही बहादुर बेटी थी.वह दुनिया के लिए एक मिसाल है.

नासा वैज्ञानिक और अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का जन्म हरियाणा के करनाल में 17 मार्च 1962 को हुआ
था.उनके पिता का नाम बनारसी लाल चावला और मां का नाम संज्योती था. कल्पना चावला की प्रारंभिक पढ़ाई करनाल के टैगोर स्कूल में हुई.कल्पनाने1982में चंडीगढ़ इंजीनियरिंग कॉलेज सेएरोनॉटिकलइजीनियरिंगकी डिग्री और 1984 से टेक्सास यूनिवर्सिटी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की.1988 में उन्होंने नासा के लिए काम करना शुरू किया.

1995 में नासा ने अंतरिक्ष यात्रा के लिए कल्पना चावला का चयन किया.उन्होंने अंतरिक्ष की प्रथम उड़ान एस टी एस 87 कोलंबिया शटल से संपन्न की. इसकी अवधि 19 नवंबर 1997 से 5 दिसंबर 1997 थी. अंतरिक्षकी पहली यात्रा के दौरान उन्होंने अंतरिक्ष में 372 घंटे बिताए और पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं पूरी की.इस सफल मिशन के बाद कल्पना ने अंतरिक्ष के लिए दूसरी उड़ान कोलंबिया शटल 16 जनवरी2003 से भरी.कोलंबिया अंतरिक्ष यान में उनके साथ अन्य यात्री थे-कमांडररिकडी.हुसबंद पायलटविलियम स.मैकूल,कमांडर माइकल प . एंडरसन
इलान रामों,डेविड म . ब्राउन,.लौरेल बी.क्लार्क.1 फरवरी 2002 कोधरती पर वापस आने के क्रम में यहयान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया.देखते ही देखते अंतरिक्ष यान और उसमें सवार सातों यात्रियों के अवशेष टेक्सास नामक शहर पर बरसने लगे और सफ़ल कहलया जाने वाला अभियान भीषण सत्य बन गया.ये अंतरिक्ष यात्री तो सितारों की दुनिया में विलीन हो गए लेकिन इनके अनुसंधानों का लाभ पूरे विश्व को अवश्य मिलेगा. अन्त में एक कविता

 

कल्पना चावला के प्रति / सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
तुम्हारी तरह ओ कल्पना
सपनीली आँखोंवाली
कई लड़कियाँ होती हैं
पर उनके हाथ
नही चूम पाते चाँद-सितारे
और कभी – कभी एक टुकड़ा ज़मीन भी

तुम्हारी तरह
कई लड़कियों का बचपन
चिड़ियों संग भरता है लंबी उड़ान
चारदीवारियों में पंख फड़फड़ाते
देखा करता है अक्सर
मेहंदी –चूड़ियों से इतर भी
ढेरों सतरंगे ख़्वाब

तुम्हारी तरह
कई लड़कियाँ चाहती हैं
स्टोव या गैस की आग में झुलसाने के बजाय
एक रोमांचकारी मौत
और उतारना
अपनी जननी और जन्मभूमि का
थोड़ा-सा कर्ज

तुम्हारी तरह कई लड़कियों को
याद दिलाए जाते हैं
उनके कर्त्तव्य और संस्कार
अट्ठारह -बीस की उम्र में करने को ब्याह
पर यहीं तुममें और उनमें आ जाता है फर्क
वे चाहकर भी नहीं तोड़ पातीं
जाति-धर्म और देश के बंधन

तुम्हारी तरह
अब सीख रही हैं लड़कियाँ
बेड़ियों को खोलना
अपने सपनों के अंतरिक्ष में रखना कदम
और विनम्र चेहरे पर
बरकरार रखना हमेशा
एक सहज मुस्कराहट

 ( सुनील सिंह के फेसबुक पेज से साभार )

सुनील सिंह
विज्ञान संचारक, पटना, बिहार

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