विकास कुमार

“The True Revolutionary is led by a feeling of great love”- Che Guevara

क्यूबन क्रांतिकारी चे गुवेरा ने एक सच्चे क्रांतिकारी को परिभाषित करते हुए कहा था ” एक सच्चा क्रांतिकारी प्रेम की भावना से प्रेरित होता है , प्यार की सच्ची भावना ही उसे क्रांति की ओर अग्रसर करती है. लेकिन क्या प्यार और क्रांति के बीच भी कोई अन्तर्विरोध है ? इसके अलग अलग रास्ते हैं, या इसमें संगम संभव है ? फिल्म के एक किरदार के शब्दों में , “क्या प्यार इंसानों द्वारा एक दूसरे को धोखा देने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला उपकरण है ? क्रांति के लिए प्रतिबद्ध कॉमरेड के रास्ते में प्यार एक भटकाव, या मुख्या किरदार वेन्नेला के शब्दों में “प्यार से ही क्रांति संभव है,”.

1990s का दशक था, तेलंगाना में नक्सल आंदोलन अपने चरम पर था. सत्ता और पुलिस द्वारा आम लोगों पर जुल्म का कहर था. पुलिस और नक्सल के आपस के मुठभेड़ आम बात थी . बंदुकों का बोलबाला था , लोगों की खून सस्ती थी. दमन और विद्रोह की इसी पृष्ठभूमि में तेलंगाना के छोटे से गाँव की एक मासूम लेकिन जिद्दी लड़की जब जाने-अनजाने एक नक्सली कमांडर द्वारा रचित क्रन्तिकारी कविताएँ पढने लगती है , तो वह उससे बेइंतहां प्यार करने लगती है. जिस तरह मीरा ने कृष्ण के प्यार को पाने के लिए अपना घर को त्याग दिया था , वेम्मला भी उससे प्रेरित होकर अपने प्रेम की तलाश में निकल जाती है. नदी, पहाड़, घने जंगल, सुदूर गाँव का कठिन रास्ता है, पुलिस द्वारा प्रताड़ना है , क्रान्तिकारियों द्वारा उसे हतोत्साहित किया जाता है कि वह घर वापस लौट जाए , लेकिन वेम्माला अपने दृढ संकल्प पर कायम है. क्या ‘ वेन्नेला’ का निस्वार्थ प्यार अपने अंजाम तक पहुचेगा ?  

देर रात का वक्त , घने जंगलों में पुलिस और नक्सलियों के बीच में मुठभेड़ जारी है. दोनों के आपसी हमले में निर्दोष ग्रामवासी भी फंसे हुए हैं. इसी बीच एक प्रेग्नेंट महिला की चीख सुनाई देती है. वह डिलीवरी के नजदीक है लेकिन इस खूनी संघर्ष के बीच परिवार उसे अस्पताल ले जाने में असमर्थ है. तभी एक नक्सली महिला, जो एक डॉक्टर भी है उस  परिवार के पास जाती है और ऑपरेशन करके उस महिला की सफ़ल डिलीवरी कराती है. बच्ची का पिता महिला का धन्यवाद देते हुए कहता है की वह बच्ची का नामकरण करे. महिला पूर्णिमा की रोशनी को देखते हुए नवजात बच्ची का नाम ‘ वेन्नेला’ रखती है यानी ‘चंद्रमा की रौशनी’. लेकिन नामकरण के चंद लम्हे बाद ही नक्सली महिला की मौत पुलिस के गोली द्वारा हो जाती है. जंग में कई लोगो की जान जाती है, लेकिन इस जंग में वेन्नेला का जन्म हुआ. 

‘ वेन्नेला’ की जिद्दी और बगावती तेवर बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं. बचपन मे ही जब उसके कृष्ण रूपी गुड़िया को उसकी माँ कुएं में फेक देती है. पल भर में  वेन्नेला अपनी गुड़िया को बचाने के लिए कुँए में कूद जाती है. किसी तरह उसकी जान बचती है.

वेन्नेला के पिता गाँव में “ओग्गु कथा’ आर्टिस्ट है. बचपन से ही पिता के गीत उसे  मोहित करते हैं। एक दिन ‘ वेन्नेला’ को अपने एक दोस्त से वामपंथी विचारधारा पर आधारित किताबों के बारे में मालूम होता है, जिसके रखने पर प्रतिबंध है. इन किताबों को पढ़ने की उसकी उत्सुकता बढ़ती है. किताब मिलने के बाद, वह घर जाकर उसे पढ़ने लगती है और उसकी दुनिया ही पलट जातीं है, जब उसे समाज के बारे में एक नया दृष्टिकोण मिलता है. वह दोस्तों से कुछ और किताबें मंगवाती है, इसी बीच उसे शीर्ष नक्सल कमांडर रवन्ना के क्रांतिकारी कविताएं पढ़ने का मौका मिलता है. इन कविताओं में शोषण से मुक्ति का रास्ता का जिक्र है, अन्याय और दमन की दुनिया में बराबरी का संदेश. ये कविताएं उसके लिए प्रेरणादायक थीं. रमन्ना के प्रति उसके हृदय में प्रेम के बीज अंकुरित हो चुके थे. 

गाँव में एक नाटक के मंचन के दौरान वह मीरा की प्रेम कहानी सुनती है , किस तरह अंध प्रेम में खोई मीरा, सांसारिक मोह से दूर जाकर अपने प्रेमी कृष्ण की तलाश में अपने घर परिवार को छोड़कर, उसे ढूंढने निकल पड़ी थी. इस कहानी का मनोवैज्ञानिक प्रभाव वेलम्मा पर भी पड़ता है. वह भी अपने प्रेमी की तलाश में निकलने का निर्णय ले लेती है. इसी बीच ‘ वेन्नेला’ की शादी अपने एक रिश्तेदार के बेटे से तय हो जाती है. लेकिन ‘ वेन्नेला’  शादी से इनकार करती है. वह यह बात जाकर लड़के और उसके परिवार वाले से भी कहती है कि वह किसी दूसरे लड़के से प्रेम करती है, और यह शादी संभव नहीं है. एक दिन अचानक ‘ वेन्नेला’ मीरा की तरह अपने सच्चे प्रेम की तलाश में निकल पड़ती हैं.

लंबी मशकत के बाद वह किसी तरह रवन्ना से मिलने में कामयाब होती है. लेकिन रवन्ना के अंदर सिर्फ क्रांति की चिंगारी है. उसके लिए प्यार मोहब्बत एक बीमारी है. वह वेलम्मा को सलाह देता है कि वह अपना कीमती समय शोषित महिलाओं को शिक्षित करने पर दे. उनके हक़ अधिकारों के लिए लड़े. लेकिन वेलम्मा टस से मस नहीं होती है. वह उससे कहती है कि एक दिन उसका प्यार उसके जीवन का हिस्सा जरूर बनेगा. कई उतार चढ़ाव से भरी उसकी कहानी में बड़ा मोड़ तब आता है जब टीचर शकुंतला की बातों से प्रभावित होकर वह नक्सल आंदोलन के साथ जुड़ने का निर्णय लेती है. अब प्यार और क्रांति, दोनों उसका लक्ष्य है. अपने साथियों के विरोध के बावजूद, रमन्ना वेलमम्मा को अपनी टीम में शामिल करने के लिए राजी हो जाता हैं. क्या कठोर रमन्ना के अंदर भी प्रेम के बीज लगाने में ‘ वेन्नेला’  कामयाब हो पाएगी ? या ‘ वेन्नेला’ के कारण रवन्ना को नई मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा ? क्या‘ वेन्नेला’ का प्रेम नक्सल अंदोलन की हिंसक प्रवृत्ति को आईना दिखा पाएगा ? वेन्नेला के प्रेम की यात्रा के साथ साथ फ़िल्म नक्सल आंदोलन के विभिन्न अंतर्विरोधों को भी समझने की कोशिश करती है.

फ़िल्म तेलंगाना में 1990 के दौर में सामाजिक राजनीतिक परिस्थिति का काफी संजीदगी से चित्रण करती है. शासक वर्ग और पुलिस का गठजोड़ से आम लोगों पर दमन जारी था. नक्सली होने के आरोप में निर्दोष लोगों का फ़र्ज़ी एनकाउंटर आम बात थी. पुलिस निम्न जाति के लिए जातिसूचक गाली का प्रयोग करने से कतराती नहीं थी. यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए न्याय पाने का कोई दरवाज़ा नहीं था. शासक वर्ग की इसी हिंसा के विरोध में नक्सलियों को समाज के शोषित दलित,आदिवासियों का समर्थन प्राप्त था. बड़े जमीनदारों से वे ज़मीन हड़प कर गरीबों में बाटते थे. दूसरी तरह समानांतर कोर्ट भी स्थापित करते दिखते हैं, जिसमें दोषियों को सरेआम गोली मार दी जाती थी, ताकि दूसरे लोगों में भय पैदा हो. पुलिस द्वारा कई कोवेर्ट ऑपरेशन किया जाता है,दूसरी तरफ पुलिस के इनफॉर्मर इन नक्सली समूह में आसानी से शामिल हो जाते हैं. फ़िल्म की शुरूआत में जहाँ, निर्देशक का नक्सल आंदोलन के प्रति संवदेना साफ झलकती है, दूसरी तरफ जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है, निर्देशक आंदोलन की कमजोरियों को ईमानदारी से बताने से भी घबराते नहीं. विभिन्न विचारधाराओं का संघर्ष फ़िल्म के एक सीन में साफ झलकता है जब पुलिस और नक्सलियों के मुठभेड़ के बाद, नक्सली एक पुलिसवाले को अपने कब्जे में लेने में सफल हो जाते है. ग्रुप का एक सदस्य पुलिसवाले को अत्याचारी वर्ग का हिस्सा बताकर उसे जान से मारने पर अमादा था, दूसरी तरफ ‘वेन्नेला’ निहत्थे पुलिस को मारने के खिलाफ खड़ी होती हैं. वह पार्टी मैन्युअल की याद दिलाती है, की निहत्थे आदमी को मारना गलत है. नक्सली समूह पर खून लेने का जुनून सवार था, और इसके विपरीत ‘ वेन्नेला’ के अंदर मानवीय संवेदना हावी होना कई नैतिक प्रश्नों को टटोलता है. बाद में ग्रुप का कमांडर रवन्ना ‘ वेन्नेला’  का पक्ष लेता हैं और उसे जिंदा छोड़ देता हैं.

नक्सल अंदोलन पर शीर्ष भूमिका में ऊंची जाति के लोगों का कब्जा होने का आरोप लगता रहा है. फ़िल्म का एक सीन इसी को चित्रित करने का कोशिश करता है जब बैकवर्ड समाज से संबंधित एक पुलिसवाला, जो नक्सल आंदोलन के साथ संवेदना तो रखता है, लेकिन यह बात भी दोहराता है कि नक्सल आंदोलन में निचले कैडर में दलित, आदिवासी, बैकवर्ड बहुसंख्यक हैं जो इस संघर्ष में लड़ते हुए अपनी जान गवाते हैं, दूसरी तरफ शीर्ष भूमिका में उच्ची जाति के लोगों की जान पर आंच भी नहीं आती. 

वेणु उडुगुला द्वारा निर्देशित इस फिल्म  विराट पर्वम का शीर्षक भारतीय महाकाव्य महाभारत की चौथी पुस्तक से लिया गया है जिसमें पांडवों के वनवास को शामिल किया गया है।  जंगल में वनवास के दौरान ही पांडव अपने अंतिम युद्ध की तैयारी करते हैं। 

वेंनेला का किरदार आदिवासी अभिनेत्री और सुपरस्टार साई पल्लवी ने काफी प्रभावशाली ढंग से निभाया है.  प्यार, क्रोध, उदासी, गुस्से , प्रतिरोध जैसे अनेक मानवीय संवेदनाओं को साईं पल्लवी बखूबी से निभाती दिखती है. किरदार में काफ़ी मासूमियत है, लेकिन जिद्दीपना भी. अपने फैसले पर निडर, वह किसी भी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहती है. एक घटना में जब नक्सलियों को पुलिस घेर लेती है, वेन्नेला बम से पुलिस पर हमला करती है और उनकी जान बचाती है. दर्शक के तौर पर आप इस किरदार से काफी कनेक्ट कर पाते है.

नक्सली लीडर ‘रवन्ना’ के रोल में राणा दुग्गबती भी काफ़ी प्रभावशाली है. इससे पहले भी उन्होंने इस तरह के कई किरदार निभाए हैं. रवन्ना के किरदार को भी वे न्याय देते हुए दिखते हैं. जहाँ राणा बात नहीं करते, उनकी आँखें कई कहानियां बयान करती हैं. फिल्म का यादगार दृश्य है जब कई साल बाद वेंनेला की मदद से रमन्ना की मुलाकात अपनी माँ से होती है. एक कठोर शख्स , जो पूरी फिल्म में अपनी संवेदना को दर्शाने से बचता है, माँ के सामने भावुक दिखता है. टीचर और नक्सल अंदोलन की विचारक शकुंतला की भूमिका में नन्दिता दास ने कमाल का अभिनय निभाया है. एक मुश्किल सीन में वह अपने अभिनय का लोहा तब दिखती है, जब रवन्ना को ढूंढते हुए उसके पास आई वेंनेला को बताती हैं की उसने भी प्रेमी के तलाश में घर छोड़ा था, लेकिन प्रेमी के एनकाउंटर में मृत्यु के बाद वह पति के विचारों को उसके लेखन के माध्यम से आगे बढ़ा रही है. फ़िल्म का मजबूत पक्ष में से एक इसका कैमरावर्क है. Dani Sanchez-Lopez; Divakar Mani के कैमरा का जादू हर सीन में दिखता है. लाइट और शेड के बेहतरीन इस्तेमाल से वे वेंनेला की यात्रा को अच्छे तरीक़े से कैप्चर करते हैं. कैमरा के अलावा फ़िल्म का संगीत भी काफी अच्छा है.  तेलंगाना की लोक संगीत का इस्तेमाल, फ़िल्म की कहानी को उसकी जड़ों से जोड़ता है. जहाँ डॉयलॉग नहीं भी है, वहां संगीत किरदारों के मनोभाव को बड़ी शानदार तरीक़े से बयान करता है. फ़िल्म की एडिटिंग थोड़ी चुस्त ज़रूर हो सकती थी.

विराट पर्वम’ 1992 में वारंगल में एक सत्य घटना से प्रेरित है. इस घटना के केद्र में रही सरला ने साईं पल्लवी के चरित्र वेनेला को प्रेरित किया. लेकिन फिल्म में प्रेम कहानी काल्पनिक है. प्रेम कहानी को केंद्र में रखने पर तेलंगाना में नक्सल आंदोलन की कहानी पीछे जरूर छूटी है. आंदोलन की विभिन्न जटिलताओं को बारीकी से बताया जा सकता था. फिल्म आंदोलन के सिर्फ  सतह को छूती दिखती है. इन कमियों के बावजूद ‘ विराट पर्वम’ तेलुगु सिनेमा में नई लकीर खींचती दिखती है. नक्सल आन्दोलन की पृष्ठभूमि में केन्द्रित ज़्यादातर फिल्में सत्ता पक्ष के प्रोपोगंडा के तौर पर दिखती हैं तथा जनमुद्दों से ज्यादा नक्सल को खलनायक बताने में तुली रहती हैं, जबकि दूसरी तरफ़ कुछ फिल्में नक्सल को जन नायक के तौर पर पेश करती हैं तथा आंदोलन की खामियां दिखाने से बचती हैं. विराट पर्वम में निर्देशक ने कोशिश की है कि किरदारों और घटनाओं को ईमानदारी से पेश किया जाए, फ़िल्म तेलंगाना के इतिहास के एक अध्याय का विश्लेषक दस्तावेज तो नहीं , लेकिन इस और इशारा जरूर करती है, यह आन्दोलन क्यों आज प्रासंगिक नहीं रहा. हिंसा और बंदूक की नोक से सामाजिक परिवर्त्तन का दावा किया जा सकता है लेकिन वेनेला का ‘’प्रेम‘’ ही सबसे बड़ा हथियार है जिससे देश और संविधान को बचाया जा सकता है. जनता से प्रेम और क्रांति के बड़े  दावे करने वाले क्रन्तिकारी ‘वेनेला’ के प्रेम को फिल्म के अंत तक एक साजिश और संदेह की नज़र से देखते रहे. वे उसके नि:स्वार्थ प्यार को क्यों नहीं समझ पाए, यह एक बड़ा सवाल है. 

विकास कुमार स्वतंत्र पत्रकार , रेसेअर्चेर और प्रगितिशील सिनेमा आंदोलन से जुड़े है . वैज्ञानिक चेतना टीम के साथ भी जुड़े है

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