एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला में कोई प्रयोग करता है तो उसके सामने एक स्पष्ट लक्ष्य होता है, कुछ नया सीखने का या कुछ नया खोजने का। इससे उसे जानकारी रूपी नई संपत्ति मिलती है। वह इस संपत्ति को पाने के बाद इसके प्रयोग करने के बारे में सोचता है ।वह इसको तकनीक में ढालकर व्यवसाय कर सकता है। इससे और आगे बढ़े हुए ज्ञान की ओर जा सकता है। इसके प्रयोग का प्रकार चाहे कैसा भी हो यह जानकारी सार्वजनिक होती है।यह और आगे ज्ञान का आधार बनती है। यह बच्चों के लिए शिक्षा का पाठ्यक्रम बनती है। यह जानकारी मानवजाति की धरोहर बन जाती है। इससे मानव सभ्यता व संस्कृति आगे बढ़ती है।

जब कोई जादूगर इन्हीं जानकारियों के आधार पर स्टेज पर कोई प्रयोग करता है तो वह इस प्रयोग को प्रत्यक्ष नहीं करता। वह इसे रूपांतरित करता है। इसमें अपनी कला का पुट देता है। वह इसमें सौंदर्यशास्त्र के रंग भरता है ।इनमें ध्वनि, प्रकाश, संगीत व साज-सज्जा की चासनी डालता है ।वह जनमानस का मनोरंजन करता है ।इससे वह अपनी रोजी-रोटी भी देखता है। वह एक प्रयोग की नाना प्रकार की प्रस्तुतियां देता है ।वह अपनी कल्पना के मिश्रण से कला को नई उच्चाइयाँ प्रदान करता है। इतना ही नहीं ,कई बार जादूगरों ने कुछ बड़े काम भी किए हैं। उन्होंने वैज्ञानिकों की सहायता भी की है। जब प्रसिद्ध भौतिकविद नरसिंहमैया ,साईं बाबा की चालाकी को समझने में असमर्थ रहे तो उन्होंने जादूगर पीसी सरकार की सहायता से ही इन्हें समझा था। यूरी गैलरी की Psycho Kinetic Power पीके पावर का पर्दाफाश भी जादूगर जेम्स रैंडी ने ही किया था, जबकि बहुत से वैज्ञानिक इसे समझने में असमर्थ रहे थे।
लेकिन जब कोई स्वयम्भू देव पुरुष इसी प्रकार का कोई प्रयोग करता है तो उसके अपने लक्ष्य भी स्पष्ट होते हैं ।वह इनकी रहस्यमयी व्याख्या करता है। इनके पीछे के कारण को दिव्य शक्ति या कोई सिद्धि बताता है। वह हमारी आस्था का दोहन करता है और इस प्रकार व्यक्तियों का ब्लैकमेल करता है। वह अपने स्वार्थ सिद्ध करता है। वह शोषण करता है ।वह अपने भक्त बनाता है ।वह आमजन को ज्यादा अंधविश्वासी बनाता है। वह मानवजाति की तरक्की में इस प्रकार बड़ी बाधा बनता है। आम आदमी इन्हें समझते नहीं । वे इनसे भय खाते हैं ।इन्हें जांचने या पड़ताल करने की उनकी हिम्मत नहीं होती और न ही उनकी क्षमता कि वे ऐसा कर सकें ।अज्ञानता उनके आड़े आती है ।


ऐसा वातावरण हम अपने आसपास बहुधा देखते हैं। यहाँ कभी गणेश जी दूध पीते हैं तो कहीं मूर्तियां रोती हैं ।कहीं चोटियां कटती है तो कहीं घरों में आग लगने की घटनाएं घटती हैं। कहीं देवियां प्रकट होती हैं तो कहीं ओपरी -पराई के साए मंडराते हैं ।कहीं कोई भभूत बाँटता होता है तो कहीं कोई तिलस्मी ताबीज देता है ।कहीं कोई समाधि लेता फिरता है तो कहीं कोई नबज़ बंद कर दिखाता है ।।
हमारा समाज इन सब घटनाओं का गवाह है ।हमारा समाज कम पढ़ा- लिखा है ।हमारी शासन व्यवस्था सामाजिक सुरक्षा की गारंटी कम देती है ।रूढ़िवाद की जड़े मजबूत हैं। यह सब ऐसे चमत्कारों को फलने -फूलने के लिए उर्वरा जमीन तैयार करते हैं। इनसे मनुष्य अपना आत्मविश्वास खो बैठता है ।व्यक्ति का विवेक जाता रहता है ।वह स्वयं को अदृश्य शक्ति के हाथों कठपुतली मान बैठता है ।वह और दरिद्रता में धंसता चला जाता है।

ऐसे में वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी जिम्मेवारी बनती है कि वे ऐसी घटनाओं पर अधिक ध्यान दें।वे इनके पीछे छिपे विज्ञान से जनता को अवगत कराएं ।यदि वैज्ञानिक ऐसा नहीं करते हैं तो अधिकांश लोग इस बात को मूक सहमति मान बैठते हैं ।वैज्ञानिकों की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे ऐसी घटनाओं से होने वाले नुकसान से जनता को बचाएं ।यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो जालसाजों के और हौसले बुलंद होते हैं ।हम प्राय देखते हैं कि अधिकांश पढ़े- लिखे व्यक्ति चुप रहना पसंद करते हैं जोखिम उठाना नहीं चाहते ।हम रणनीतिक तरीके से काम कर सकते हैं। हम विज्ञान संप्रेषण के और तौर तरीके प्रयोग कर सकते हैं ।ऐसा करके हम वैज्ञानिक मानसिकता का प्रचार- प्रसार करने का अपना संवैधानिक और नैतिक दायित्व ही निभाते हैं, हम किसी पर एहसान नहीं करते हैं। यदि कोई जानकार व्यक्ति यह कहकर चुप रहता है कि मैं ही क्यों, तो यह उसका पलायनवादी नजरिया है ।अंधविश्वास एक भयंकर जंगल की आग है। यह समाज के लिए हानिकारक है। आज नहीं तो कल इसकी तपन को सब महसूस करेंगे और कर भी रहे हैं ।

इसलिए चमत्कारों का पर्दाफाश करना एक माननीय जिम्मेवारी है। इस क्षेत्र से जुड़े कार्यकर्ताओं और स्रोत व्यक्तियों को चाहिए कि वे सब कुछ स्पष्ट करें जैसे ,कब ,किसने और कहां -कहां किन चमत्कारों से कितनी जनता को ठगा या बेवकूफ बनाया ।किस वैज्ञानिक ने कब और कैसे उनका पर्दाफाश किया। ऐसा करने में उन्हें किस- किस प्रकार की दिक्कतें आई आदि -आदि ।कई बार हमारे साथी आधी -अधूरी जानकारी ही सामने रखते हैं ।इससे यह गतिविधि सस्ता मनोरंजन बन कर रह जाती है और गंभीर बहस नहीं बनती।

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