विकास कुमार

मुम्बई के एक फ्लाईओवर की ऊँचाई पर पहली बार पहुँचकर, अपने पुराने से कबाड़ साईकल पर सवार कश्मीरी महिला लाली झूमने लगती है, वह नाचने लगती है. उसके खुशी का ठिकाना नहीं है. हमने इस तरह के दृश्य तभी देखा है जब कोई माउंट एवेरेस्ट की ऊँचाई पर पहुंचा हो , कोई नया विश्व रिकॉर्ड कायम किया हो. लेकिन लाली के लिए कोई छोटी बात नही थी. यह उसकी मुक्ति का द्वार था. अब वह अकेले निर्भीक होकर हर ऊँचाई को छू सकने का दम रखती थी. अपने पति के स्कूटर पर कभी इन फ्लाईओवर से गुजरती लाली को पीछे की सीट पर नींद आ जाती थी. लेकिन भले वह आज अकेले थी,  उसे महसूस हुआ कि साईकल अब उसका सबसे भरोसेमंद साथी था, जो हर मुश्किल घड़ी में उसका साथ ना छोड़ेगा, मंजिल तक सहयात्री रहेगा. अपने आत्मीय प्रेम से साईकल को वह गले लगा लेती है।

ऐमज़ॉन प्राइम पर मॉडर्न लव : मुंबई की पहली कहानी ‘रात की रानी’  कश्मीरी प्रवासी पति-पत्नी के जोड़े पर केंद्रित है. कश्मीर में अपनी परिवार की मर्जी के विपरीत शादी करके लाली अपने पति लुतफी के साथ मुम्बई भाग आई जहाँ वह बीते 10 सालों से एक चाल में रह रहे थे. पति सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता है, लाली भी एक रईस परिवार में बावर्ची का काम करती है. दोनों ने अपनी जमापूंजी से स्लम में ही एक छोटा सा मकान बनाया था. शुरुआती दृश्य से लगता है कि वे खुशी से जीवनयापन कर रहे हैं. लेकिन एक दिन सुबह अचानक उसका पति स्कूटर के साथ गायब हो जाता है. ना ही लाली के पास पैसे होते हैं कि वह बस पकड़कर काम पर जाए. किसी तरह वह घर पर पड़े पति के पुराने साईकल पर सवाल होकर बड़ी मुश्किल से अपने मालिक के यहां पहुँचती है. लेकिन लाली को सबसे बड़ा सदमा तब लगता है, जब अपने मालिक के घर काम के दौरान लाली को पति का मैसेज आता कि अब वह इस शादी से बोर हो चुका, वह अलग रहना चाहता. लाली की दुनिया पलट जाती है. वह फूट फूट रोने लगती है. वह बाद में पति से बात करके उसे मनाने का कई बार प्रयास करती है, लेकिन पति के कान में जूं नहीं रेंगती है. ‘रात की रानी ‘ टूटते हुए घर और टूटते रिश्तों के बीच इस कश्मीरी महिला के संघर्ष और उसके जज़्बे की कहानी हैं जो काफ़ी मार्मिक तरह से बताती है, किस तरह से  विपरीत परिस्थितियों में उसने अपनी जंग खुद लड़ी. प्रेम के बीच खोए स्वतंत्रता को वापस पाने का साहसी प्रयास की कहानी  !!

भारत के जातिवादी, पित्रसतात्मक समाज को चुनौती देने की कहानी 

भारत के जातिवादी समाज में अपने से नीची जाति से लड़के से शादी करने पर लड़की को अपने परिवार और समाज से प्रताड़ना झेलनी पड़ती है. पति से अलग रहने की नौबत आ गई तो उसे ही शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है, पति से डिवोर्स हो जाए तो उसे ही कोसा जाएगा. वह अकेले रात ड्यूटी पर काम पर जाए, तो उत्तर प्रदेश की सरकार की तरह कोई महिला असुरक्षा का हवाला देकर नए कानून बनाएगा और उसे घर बैठने को कहेगा. वह देर रात अकेले घूमना-टहलना चाहे तो, उस पर बिना चरित्र वाली महिला का लेबल लगाने के लिए समाज खाली बैठा ही है. वह प्यार में पड़े, तब समाज को दिक्कत, शादी ना करना चाहे, तब भी उसी पर सवाल उठाए जाएंगे. शादी के बाद भी बच्चे पैदा करना ना चाहे, तो उसे ही शर्मिंदगी झेलनी है. हर परिस्थिति में महिला से सवाल पूछे जाएंगे, उसे ही जवाब देना है. हर लम्हा, उसे ही कठघरे में खड़ा होना है.

प्रेम से बड़ा आजादी का मूल्य ? 

लेकिन ‘रात की रानी’ में लाली पितृसत्तात्मक समाज के द्वारा तय किए गए सारे मापदंड को तोड़ती दिखती है. समाज से कम, खुद के सवालों से लड़ती ज़्यादा दिखती है. यह व्यग्तिगत लड़ाई है, खुद को साबित करने की, अपनी छिपी प्रतिभा को समझने की, आर्थिक स्वतंत्रता की. सामाजिक बंधनों, रूढ़ियों के  मानसिक कैद से बाहर निकल कर खुल कर सांस लेने का संघर्ष. टूटे घर में फिर से खुद का आशियाना बसाने की यात्रा. अंधेरे पर काबू प्राप्त करके ‘ रात रानी’ फूल के खिलने का दास्तां. आइये चलते हैं लाली के साथ इस सफ़र में : उसके शब्दो में : मैंने फ्लाईओवर क्रॉस कर लिया है, डल लेक से सीधे शंकराचार्य मंदिर , ना लेफ्ट ना राइट, सीधा टॉप.

 

प्रथम प्रकाशन Yuvaniya द्वारा, 1st June, 2022

विकास कुमार स्वतंत्र पत्रकार , रेसेअर्चेर और प्रगतशील सिनेमा आंदोलन से संबंधित. वैज्ञानिक चेतना के साथ भी जुड़े है

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