विकास शर्मा

54 साल पहले अमेरिका ने चांद पर पहला कदम रखने में अभूतपूर्व सफलता हासिल की थी. वहीं भारत ने हाल ही में चंद्रमा पर अपने पहला रोवर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए दूसरी बार भेजा है और इस बार सफलता की उम्मीदें कहीं ज्यादा है. चंद्रमा के लिहाज से भारत और अमेरिका के रास्ते अलग ही रहे और दुनिया की अब भारत से भी काफी उम्मीदें हैं.

 

20 जुलाई 1969 का दिन अंतरिक्ष की दुनिया, खास तौर से चंद्रमा के लिए एतिहासिक दिन था. यही वह दिन था जब अमरिका के नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चंद्रमा की सतह पर कदम रख कर इतिहास रच दिया था. इसी दिन की याद में संयुक्त राष्ट्र ने हर साल को अंतरराष्ट्रीय मून डे के तौर पर मनाने का फैसला किया था. इस दिन अमेरिका के नासा का अपोलो 11 यान चंद्रमा पर पहुंचा था और नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज एल्ड्रिन चंद्रमा की सतह पर उतरे और उस स्थान को ट्रन्क्वेलिटी बेस नाम दिया गया है. ऐसे में अमेरिका और भारत की चंद्रमा के लिए कितने आगे बढ़ रहे है यह जानना भी जरूरी है.

 

आज चंद्रमा पर ही है दुनिया का ध्यान
आज भारत सहित दुनिया के कई देश चंद्रमा अपने अभियान भेजने में लगे हैं. आज इस दिन की बरसी पर इस साल चंद्रमा को लेकर दुनिया में खासी हलचल है. अभी भारत का चंद्रयान-3 अभियान चंद्रमा की ओर बढ़ रहा है. रूस अपने अगले लूना यान की तैयारी में हैं और अगले साल  तक नासा का आर्टिमिस 2 अभियान भी पूरा हो चुका होगा. जिसके बाद आर्टिमिस -3 अभियान के जरिए पहली महिला और गैर श्वेत पुरुष को चंद्रमा की सतह पर लंबे समय के लिए भेजा जाएगा.

 

दो साल पहले ही मून डे की शुरुआत
हैरानी की बात लग सकती है लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने साल 2021 में ही “इंटेरनेशनल कोऑपरेशन इन पीसपुल यूजेस ऑफ आउटर स्पेस” अपने 76/76  संकल्प अपनाने के साथ ही इंटरननेशनलन मून डे को मनाने का ऐलान किया था. संयुक्त राष्ट्र ने कहा था चंद्रमा के अन्वेषण के प्रयास जारी रहते हुए यह दिवस  दुनिया के इतिहास की याद दिलाने का साथ भविष्य के प्रयासों पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करेगा.

 

उन दिनों अंतरिक्ष क्षेत्र का माहौल
यह अभियान कई लिहाज से खास माना जाता है. शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ और अमेरिका के बीच स्पेस रेस में पहली बार अमेरिका सोवियत संघ से आगे निकल सका. नहीं तो चाहे पहला अंतरिक्ष यान हो या पहली अंतरिक्ष यात्रा दोनों में सोवियत संघ ही आगे रहा था. यहां गौर करने वाली बात यह है कि उस दौर में इन दोनों देशों के अलावा दुनिया का कोई भी देश चंद्रमा तो दूर अंतरिक्ष में भी उपग्रह भेजने सोच नहीं पाता था.

 

चंद्रमा पर पहली लैंडिंग
अपोलो अभियान की परिकल्पना 1961 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने की थी. अभियान का मूल लक्ष्य चंद्रमा पर इंसान को भेज कर सही सलामत पृथ्वी पर वापस लाना था. इसमें चंद्रमा पर सुरक्षित लैंडिंग ही अपने आप में एक बहुत ही मुश्किल काम था. इसके बाद अमेरिका को सफलता 20 जुलाई 1969 को अपोलो 11 के चंद्रमा पर पहुंचने पर मिली.

 

अपोलो अभियान की लगातार सफलता
चंद्रमा पर आर्मस्ट्रॉन्ग और बज ने चंद्रमा पर 21 घंटे का समय गुजारा और चंद्रमा से 21.5 किलो के नमूने जमा किए. इस दौरान चंद्रमा की  कक्षा में माइकल कोलिन्स कोलंबिया कमांड मॉड्यूल में मौजूद थे. जिससे जुड़ने के बाद तीनों ने पृथ्वी पर वापसी की. इसके बाद 1972 छह और अपोलो अभियान में कुल 12 अमेरिकी नागरिकों ने चंद्रमा की यात्रा की.

 

आर्टिमिस अभियान और उसका मकसद
1972 के बाद नासा ने 2017 में आर्टिमिस अभियान की परिकल्पना की और 2024 तक चंद्रमा पर पहली महिला के साथ पहले गैरश्वेत पुरुष को चंद्रमा की सतह पर उतारने का लक्ष्य बनाया. तीन चरणों के इस अभियान का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है. लेकिन अभियान की अंतिम तारीख 2025 से भी आगे चली गई है.

वहीं भारत की बात करें तो भारत ने सबसे पहले चंद्रयान 1 अभियान 2008 में लॉन्च किया था जिसने चंद्रमा पर पानी की उपस्थिति  के प्रमाण हासिल किए. इस अभियान के साथ इसरो ने मून इम्पैक्ट प्रोब को भी चंद्रमा की सतह पर उतरा था. चंद्रयान 1 की सफलता से उत्साहित होकर इसरो ने चंद्रयान 2 को 2019 में प्रक्षेपित किया जिसके साथ एक लैंडर, रोवर और ऑर्बिटर भेजा गया. लेकिन इसके लैंडर सॉफ्ट लैंडिंग में असफल रहा. अब चंद्रयान 3 14 जुलाई को सफल प्रक्षेपण के बाद चंद्रमा की ओर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग के लिए अग्रसर है.

     (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )

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