डी एन एस आनंद
समाज में मौजूद अवैज्ञानिक सोच अंधश्रद्धा एवं अंधविश्वास को दूर कर, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास एवं विस्तार के लिए जारी ऑनलाइन राष्ट्रीय परिचर्चा – युवा -संवाद की छठी कड़ी पिछले दिनों 4 अगस्त को संपन्न हुई। परिचर्चा का विषय था – “भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51ए (एच) और मौजूदा परिदृश्य में हमारी भूमिका”। उक्त ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड ने किया था। उल्लेखनीय है कि यह भारतीय संविधान का 75वां वर्ष है तथा साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड इसे वैज्ञानिक चेतना वर्ष के रूप में मना रही है। इस क्रम में यह भी गौरतलब है कि संविधान ने वैज्ञानिक मानसिकता के विकास को नागरिकों का मौलिक कर्तव्य निरूपित किया है।
वैसे इसी महीने 20 अगस्त को डॉ नरेन्द्र दाभोलकर स्मृति दिवस भी है, जिसे ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क के आह्वान पर देशभर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिवस के रूप में मनाया जाता है। नेटवर्क ने देशभर में एक अगस्त से 20 अगस्त तक वैज्ञानिक चेतना अभियान चलाने का निर्णय लिया। यह परिचर्चा भी उसकी एक अहम कड़ी थी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रमुख शिक्षाविद एवं विज्ञान संचारक डॉ अली इमाम खां ने की जबकि समन्वयन एवं संचालन डी एन एस आनंद ने किया। परिचर्चा पैनल में शामिल थे – संजय किशोर (उद्घोषक, आकाशवाणी, पटना), अमरपाल सिंह (खगोलविद, तारामंडल गोरखपुर), डॉ वाई के सोना ( सचिव छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा) एवं नरेश कुमार, समाज विज्ञानी, रोहतक, हरियाणा।
विषय प्रवेश करते हुए साइंस फॉर सोसायटी झारखंड के महासचिव डी एन एस आनंद ने कहा कि आजादी के करीब 75 वर्षों के बाद तथा 21 वीं सदी के विज्ञान तकनीक के मौजूदा दौर में भी देश में अंधश्रद्धा एवं अंधविश्वास का बोलबाला है, जिसे सत्ता, व्यवस्था एवं रूढ़िवादी ताकतों का सहयोग एवं संरक्षण भी प्राप्त है। यह भारतीय संविधान का 75वां वर्ष है जिसे साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड वैज्ञानिक चेतना वर्ष के रूप में मना रही है। संविधान ने अनुच्छेद 51ए (एच) में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास को नागरिकों का मौलिक कर्तव्य निरूपित किया है। बेहद जरूरी है कि देश को अवैज्ञानिक सोच, अंधश्रद्धा एवं अंधविश्वास के दायरे से बाहर निकाल कर संविधान सम्मत, धर्मनिरपेक्ष, तर्कशील, समतामूलक, आत्मनिर्भर भारत का निर्माण हो। देश में जारी वैज्ञानिक चेतना अभियान के जरिए वस्तुत : यही प्रयास किया जा रहा है। यह वैज्ञानिक चेतना अभियान के तहत जारी परिचर्चा राष्ट्रीय युवा संवाद की छठी कड़ी है तथा यह सिलसिला लगातार जारी रहेगा।
परिचर्चा की शुरुआत करते हुए वक्ता पैनल के सदस्य एवं आकाशवाणी, पटना, बिहार के उद्घोषक संजय किशोर ने कहा कि वैज्ञानिक चेतना का विकास पहले खुद से होना चाहिए। उन्होंने कहा कि विज्ञान महज किताबी ज्ञान नहीं है, सिर्फ प्रयोगशाला की चीज नहीं है बल्कि रोजमर्रा के जीवन से इसका गहरा रिश्ता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति का जीवन एवं व्यवहार समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास का प्रभावशाली माध्यम है।
उन्होंने कहा कि देश में वैज्ञानिक चेतना की बहुत जरूरत है पर सच्चाई यह है कि पढ़े-लिखे लोगों में भी वैज्ञानिक चेतना का घोर अभाव है। प्रभावशाली स्थानों पर काबिज वही लोग समाज में प्रेरक माने जाते हैं। इसमें मीडिया की भी अहम भूमिका होती है। उन्होंने कहा कि प्रभावशाली जन अभियान ही समाज एवं देश में वैज्ञानिक चेतना के विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
परिचर्चा के दूसरे वक्ता थे खगोलविद एवं वीर बहादुर सिंह तारामंडल, गोरखपुर, यूपी से सम्बद्ध अमरपाल सिंह। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 51ए (एच) बेहद महत्वपूर्ण है तथा देश के प्रत्येक नागरिक को समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के अपने संविधान सम्मत मौलिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज तो साइंटिफिक कम्युनिटी वाले लोग भी अवैज्ञानिक सोच रखते हैं। मीडिया में विज्ञान परक खबरें बेहद कम, जबकि अंधश्रद्धा, अंधविश्वास फैलाने वाली बहुत अधिक प्रकाशित प्रसारित होती हैं। लोगों में सदियों से बैठा डर उन्हें उस दिशा में धकेलता है। उन्होंने कहा कि आंख मूंदकर किसी बात को मान लेने की जगह सवाल पूछने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोई भी बात समाज पर थोपी नहीं जा सकती इसलिए लोगों को तार्किक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
परिचर्चा के अगले वक्ता थे छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा के सचिव, कोरबा के डॉ वाई के सोना। उन्होंने कहा कि समाज के इलीट वर्ग में भी अवैज्ञानिक सोच मौजूद है। उन्होंने कहा विभिन्न समस्यायों से घिरे एवं विविध चुनौतियों का सामना कर रहे लोग सहज ही अंधविश्वास का मकड़जाल फैलाने वाले बाबाओं, ओझाओं के चंगुल में फंस जाते हैं। उन्होंने अंधविश्वास उन्मूलन के लिए छत्तीसगढ़ में उनकी संस्था द्वारा आयोजित की गई विभिन्न गतिविधियों की जानकारी देते हुए कहा कि वहां बच्चों, महिलाओं समेत समाज के कमजोर वर्गों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास एवं विस्तार के लिए हर संभव प्रयास जारी है। उन्होंने बच्चों को प्रकृति से जोड़ने, स्वच्छता को लेकर जागरूकता पैदा करने एवं तार्किक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए लोगों को प्रेरित करने पर बल दिया।
परिचर्चा में अपनी बात रखते हुए पैनल के एक अन्य सदस्य, रोहतक, हरियाणा के शिक्षाविद एवं समाज विज्ञानी नरेश कुमार ने कहा कि अभी समाज में बहुत कुछ ठीक नहीं चल रहा है अतः यह जरूरी है कि देश में मौजूद अंधविश्वास का खात्मा हो तथा मानववाद व खोजी प्रवृत्ति के विकास को बढ़ावा मिले। उन्होंने कहा कि यदि हम रोजमर्रा के जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाएं तो अवैज्ञानिक सोच एवं अंधविश्वास को पराजित कर सकते हैं। यह हमारा दायित्व है अत : इसे आगे ले जाने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। उन्होंने काफी लम्बे समय से बच्चों के बीच जारी अपने काम के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि हमें धर्मांधता, संकीर्णता एवं पाखंड के खिलाफ खुलकर खड़े होना चाहिए ताकि देश में संविधान सम्मत, वैज्ञानिक दृष्टिकोण संपन्न, धर्मनिरपेक्ष एवं समतामूलक समाज का निर्माण किया जा सके।
अपने अध्यक्षीय भाषण में, वर्तमान परिदृश्य में वैज्ञानिक चेतना अभियान को जरूरी बताते हुए डॉ अली इमाम खां ने कहा कि समाज की मौजूदा स्थिति को समझने एवं उसके हस्तक्षेप की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जब हम वैज्ञानिक चेतना की बात करते हैं तो हमें समाज के विलीव सिस्टम से टकराना पड़ता है। इसमें बाजार की भी अहम भूमिका होती है। मुनाफे के लिए बाजार इसे बढ़ावा देता है। मौजूदा चुनौतियों को देखते हुए इस दिशा में काम कर रहे विभिन्न संगठनों, समूहों में बेहतर समन्वय जरूरी है। साथ ही वैज्ञानिक सोच को पब्लिक डोमेन में प्रभावशाली ढंग से ले जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमारे सामने अवैज्ञानिक सोच, अंधविश्वास के दुष्चक्र को तोड़ने एवं नवाचार को अपनाने, आगे बढ़ाने तथा खुद करके सीखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि रेशनल मूवमेंट के सामने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास एवं विस्तार में लगे व्यक्तियों, समूहों के बेहतर, प्रभावशाली नेटवर्किंग एवं उससे आम आदमी, श्रमशील समूहों को जोड़ने की चुनौती हमारे सामने है है तथा साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड इसी दिशा में प्रयासरत है।