रिचार्ड महापत्रा

सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी ) को 2030 तक पूरा करने में मुश्किल से छह साल  बचे हैं। इस बीच दुनिया भर के देश अभूतपूर्व कर्ज तले दब गए हैं। कर्ज का भुगतान कई देशों का एक प्रमुख व्यय है। यह उन्हें स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं पर पर्याप्त खर्च का अवसर नहीं दे रहा है।

इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनैंस के अनुसार, वैश्विक ऋण (परिवारों, व्यवसायों और सरकारों के ऋण सहित) 2024 में 315 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का तीन गुना है।

वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम के अध्यक्ष बोरगे ब्रेंडे इस बोझ को समझाते हुए कहते हैं, “आज दुनिया में हम जैसे लगभग 8.1 बिलियन लोग रहते हैं। अगर हम उस ऋण को व्यक्ति के हिसाब से विभाजित करें, तो हममें से प्रत्येक पर लगभग 39,000 डॉलर का ऋण होगा।”

ऋण या उधार लेना व्यक्तिगत, संस्थागत और राष्ट्रीय व्यय को वित्तपोषित करने का एक स्थापित तरीका है। लेकिन अब यह असहनीय स्तर पर पहुंच गया है जहां उधारकर्ता राजस्व का अधिकांश हिस्सा उधारी चुकाने के लिए ब्याज के रूप में देता है।

कुल वैश्विक ऋण में घरेलू ऋण 59.1 ट्रिलियन डॉलर, व्यावसायिक ऋण 164.5 ट्रिलियन डॉलर और सार्वजनिक ऋण (सरकारों का उधार) 91.4 ट्रिलियन डॉलर है। बहुत से लोग इस ऋण की तुलना लगभग दो शताब्दियों पहले नेपोलियन युद्धों के दौरान लिए गए ऋण से करते हैं। बढ़ता सार्वजनिक ऋण चिंताजनक है जिसके लिए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से सख्त चेतावनी की आवश्यकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि विकास क्षेत्रों पर सार्वजनिक खर्च को इसके द्वारा रोका जा रहा है।

5 जून को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने एक नई मूल्यांकन रिपोर्ट “ ए वर्ल्ड ऑफ डेब्ट 2024 : ए ग्रोइंग बर्डन टु ग्लोबल प्रोस्पेरिटी” में कहा है कि सार्वजनिक ऋण का स्तर न केवल ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया है, बल्कि विकासशील और गरीब देशों में विकास पर होने वाले खर्च को भी खतरे में डाल रहा है।

वैश्विक सार्वजनिक ऋण (सरकारों द्वारा घरेलू और बाहरी ऋण दोनों) में भारी वृद्धि दर्ज की गई है। 2023 में यह 97 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होगा, जो 2022 की तुलना में 5.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर अधिक है। विकासशील देशों की कुल वैश्विक ऋण में हिस्सेदारी 30 प्रतिशत है। इन देशों की ऋण वृद्धि दर विकसित देशों की तुलना में दोगुनी है।

ऋण तब जोखिम बन जाता है जब उसे लेने वाले देश के पास ऋण चुकाने की क्षमता नहीं होती। ऐसी स्थिति में देश को विकास कार्यक्रमों के लिए बजट में कटौती करते हुए सिर्फ ऋण चुकाने के लिए धन का इस्तेमाल करना पड़ता है। जिन देशों के पास ऋण चुकाने की सबसे कम क्षमता है, वही सबसे कर्जदार देश भी हैं। संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आकलन में कहा गया है कि 2023 में विकासशील देशों ने ब्याज-भुगतान में 847 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए, जो 2021 की तुलना में 21 प्रतिशत अधिक है। इन देशों के लिए ब्याज दर भी अमेरिका की ब्याज दर से चार गुना अधिक है।

यह ऋण देशों के खातों में दिखाई देता है। उदाहरण के लिए अफ्रीका में जहां ऋण तेजी से बढ़ रहा है, वहां 60 प्रतिशत से अधिक ऋण-जीडीपी अनुपात वाले देशों की संख्या 2013-2023 के दौरान 6 से बढ़कर 27 हो गई है। लगभग 27 अफ्रीकी देश केवल ऋण के ब्याज भुगतान के लिए सरकारी निधि का 10 प्रतिशत खर्च करते हैं।

विकास व्यय पर इसका प्रभाव स्पष्ट है। संयुक्त राष्ट्र के आकलन में कहा गया है कि वर्तमान में लगभग 3.3 बिलियन लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहां ऋण के ब्याज का भुगतान शिक्षा या स्वास्थ्य पर खर्च से अधिक है। अफ्रीका में ब्याज पर प्रति व्यक्ति खर्च 70 अमेरिकी डॉलर है, जो शिक्षा पर प्रति व्यक्ति खर्च 60 अमेरिकी डॉलर और स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति खर्च 39 अमेरिकी डॉलर से अधिक है।

विकासशील देशों पर बढ़ता सार्वजनिक ऋण विकास पर होने वाले खर्च की रूपरेखा कई मायनों में बदल सकता है। पहला, पिछले दो वर्षों में विकास सहायता (विकास कार्यों पर खर्च) में कटौती हुई है। दूसरा, रियायती ऋण विकास सहायता की जगह ले रहे हैं, जिससे विकासशील देशों का ऋण भी बढ़ रहा है। वर्ष 2012 में विकासशील देशों को दी जाने वाली सहायता में ऋण की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत थी जो वर्ष 2022 में 34 प्रतिशत तक पहुंच गई है। तीसरा, कर्ज का भार कम करने के लिए राहत व अन्य कार्यों के लिए विकासशील देशों को दिए जाने वाली सहायता भी कम हुई है। यह 2012 में 4.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी जो 2022 में 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर रह गई है।

इसमें कोई शक नहीं है कि वैश्विक ऋण एक ऐसा जाल बन गया है, जिसमें विकासशील देश ही फंस रहे हैं। सतत विकास लक्ष्यों को पूरा न कर पाने के अन्य कारणों में भारी ऋण सबसे प्रमुख कारण के रूप में उभर रहा है। अगर विश्व चर्चित ऋण माफी समझौते पर सहमत होता है तो हालात बेहतर होे सकते हैं।

         (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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