ललित मौर्या

जीवों का प्रवासन प्रकृति के अद्भुत आश्चर्यों में से एक है, लेकिन समय के साथ अपने अस्तित्व के लिए लम्बी यात्राएं करने वाले इन जीवों पर खतरा बढ़ता जा रहा है। इससे न केवल धरती बल्कि मीठे पानी में पाई जाने वाली मछलियां भी सुरक्षित नहीं हैं।

एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले कुछ दशकों में मीठे पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों की आबादी तेजी से घट रही है। इनमें सैल्मन, ट्राउट, ईल और स्टर्जन जैसी मछलियां शामिल हैं, जो अपने जीवन के विभिन्न चरणों में लम्बी यात्राएं करती हैं।

यह प्रवासी मछलियां अपने अस्तित्व के लिए मीठे पानी की धाराओं, नदियों पर निर्भर करती हैं। अपने प्रवास के दौरान इनमें से कुछ मछलियां लंबी यात्राएं करती हैं। यह छोटी धाराओं से लेकर बड़ी नदियों तक कभी-कभी तो पूरे महाद्वीप को पार कर उसी धारा में लौट आती हैं, जहां वे पैदा हुई थी।

बता दें कि बहामास के निकट अपने प्रजनन स्थल तक पहुंचने के लिए यूरोपीय ईल दो वर्षों में करीब 10,000 किलोमीटर तक की यात्रा कर सकती है। ऐसे में इन मछलियों की आबादी में आती गिरावट न केवल मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रही है, साथ ही इसके चलते लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा और जीविका पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

साफ पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों पर जारी लिविंग प्लैनेट इंडेक्स 2024 के नवीनतम अपडेट के मुताबिक 1970 के बाद से मीठे पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों की आबादी में 80 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है। मतलब की इनमें हर साल औसतन 3.3 फीसदी की दर से गिरावट आ रही है।

यह इंडेक्स और उससे जुड़ी रिपोर्ट इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन), जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन, वर्ल्ड फिश माइग्रेशन फाउंडेशन, द नेचर कन्जर्वेंसी, वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड और वेटलैंड्स इंटरनेशनल द्वारा जारी की गई है। इस इंडेक्स में मीठे पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों की 284 प्रजातियों को ट्रैक किया गया है।

इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सभी क्षेत्रों में इन प्रवासी मछलियों की आबादी में गिरावट आ रही है। लेकिन दक्षिण अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्रों में यह सबसे तेजी से घट रही है, जहां पिछले 50 वर्षों में इन प्रजातियों की आबादी में 91 फीसदी की गिरावट आई है। गौरतलब है कि यह वो क्षेत्र है जहां दुनिया में मीठे पानी का सबसे बड़ा प्रवास होता है, लेकिन बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा के चलते जिस तरह नदियों बांध, खनन और धाराओं को मोड़ने के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं के चलते पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाया जा रहा है वो इन मछलियों की आबादी में गिरावट की वजह बन रहा है।

वहीं यूरोप में मीठे पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों की आबादी में गिरावट का यह आंकड़ा 75 फीसदी दर्ज किया गया है। उत्तर अमेरिका से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो इनकी आबादी में 35 फीसदी की जबकि एशिया और ओशिनिया में 28 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि अफ्रीका में इन मछलियों की क्या स्थिति है, वो आंकड़ों की कमी के चलते स्पष्ट नहीं है।

कौन है इनकी आबादी में आती गिरावट का कसूरवार

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन दशकों से इन मछलियों की आबादी में गिरावट की प्रवृत्ति लगातार बनी हुई है। यदि वैश्विक स्तर पर इनकी प्रजातियों के रुझान देखें तो जहां 65 फीसदी प्रजातियों में गिरावट आई है, वहीं 31 फीसदी में वृद्धि हुई है।

इतिहास पर नजर डालें तो यह मछलियां सदियों से प्राकृतिक चुनौतियों से जूझने के बाद भी अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहीं हैं। लेकिन जिस तरह इंसानी गतिविधियों के चलते इनका प्रवासन बाधित हो रहा है उसका खामियाजा इनकी गिरती आबादी के रूप में सामने आ रहा है।

दरअसल, यह प्रवासी प्रजातियां इतनी लंबी दूरी तक यात्राएं करती हैं, ऐसे में उन्हें अपने लंबे सफर के दौरान मानव निर्मित अनगिनत बाधाओं और खतरों से निपटना पड़ता है। ऊपर से बदलती जलवायु और प्रदूषण नई चुनौतियां पैदा कर रहा है।

अपनी यात्रा के दौरान इन जीवों को आराम और भोजन की जरूरत होती है, लेकिन जिस तरह प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। उसकी वजह से इन्हें पर्याप्त आहार नहीं मिल पाता। ऐसी स्थिति में थकान और भूख से उनकी मौत हो सकती है।

आंकड़ों की माने तो आज मीठे पानी की करीब एक तिहाई प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि यह खतरा प्रवासी मछलियों पर कहीं ज्यादा है। देखा जाए तो इनके प्रवास के लिए धाराओं, नदियों का उन्मुक्त प्रवाह जरूरी है, लेकिन जिस तरह इन नदियों को नुकसान हो रहा है, बांध जैसी बाधाएं खड़ी की जा रही हैं और प्रवाह में गिरावट आ रही है, वो इनके अस्तित्व के लिए खतरा बन रहा है। उदाहरण के लिए यूरोप में नदियों के उन्मुक्त बहाव की राह में बांध जैसी करीब 12 लाख बाधाएं मौजूद हैं।

इसी तरह नदियों में बढ़ता प्रदूषण, इनका बेतहाशा होता शिकार और जलवायु में आता बदलाव भी इन प्रजातियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। नदियों में पानी की उपलब्धता का समय और मात्रा भी इनके प्रवासन के पैटर्न को प्रभावित कर रहा है।

इनकी गिरावट के लिए जिम्मेवार अन्य कारकों में शहरों और उद्योगों से निकला गन्दा पानी और खेतों से बहकर आने वाला पानी जिम्मेवार है, जिसमें हानिकारक कीटनाशक मौजूद होते हैं। इसी तरह जलवायु में आते बदलावों के चलते इनके आवास और पानी की उपलब्धता पर असर पड़ रहा है, जो इनके लिए खतरा बन रहा है।

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने अपने एक अन्य विश्लेषण में कहा है कि वैश्विक स्तर पर ताजे पानी में पाई जाने वाली मछलियों की करीब एक चौथाई प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यह खतरा प्रवासी प्रजातियों पर कहीं ज्यादा है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि इसके लिए प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे कारण जिम्मेवार हैं।

ऐसे में रिपोर्ट में इनकी निरंतर निगरानी के साथ-साथ नदियों के उन्मुक्त बहाव को बहाल करने पर जोर दिया है। इनके संरक्षण के प्रयासों पर ध्यान देना भी जरूरी है। साथ ही इन प्रजातियों के प्रवास के दौरान रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करना भी महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन जो आज पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है, उसके प्रभावों को सीमित करने के लिए उत्सर्जन पर लगाम जरूरी है। इसी तरह बढ़ते प्रदूषण और नदियों की जल गुणवत्ता में आती गिरावट से निपटना न केवल इन प्रजातियों बल्कि स्वयं इंसानों के अस्तित्व के लिए भी बेहद जरूरी है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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