दयानिधि

एक नए अध्ययन में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि दुनिया भर में मनुष्य नदियों और नालों में कार्बनिक पदार्थों के विघटन की दर को बढ़ा रहे हैं। यह अध्ययन जॉर्जिया विश्वविद्यालय, ऑकलैंड विश्वविद्यालय और केंट स्टेट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के संयुक्त तत्वाधान में किया गया है।

अध्ययन में इस बात की आशंका जताई गई है कि बढ़ता अपघटन दुनिया भर के नदी, नालों में जैव विविधता के लिए खतरा पैदा कर सकता है। साथ ही यह पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन की मात्रा में भी इजाफा कर सकता है, जिससे जलवायु में बदलाव होने के आसार बढ़ जाते हैं।

नदियों या नालों में पड़ी चीजें जैसे गिरे हुए पेड़, पत्तियां आदि के सड़ने या नष्ट होने की प्रक्रिया को अपघटन कहा जाता है। मानवजनित कारणों से नदियों और नालों तक कार्बनिक पदार्थ भी पहुंच रहे हैं, जिनमें रासायनिक खाद, उर्वरक तथा केमिकल आदि शामिल हैं। साइंस पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन वैश्विक प्रयोग और पूर्वानुमानात्मक मॉडलिंग को मिलाकर यह दर्शाने वाला पहला अध्ययन है कि नदी, नालों पर मानवजनित प्रभाव दुनिया भर में जलवायु संकट को किस तरह बढ़ा सकता है।

दुनिया भर में हर किसी को साफ पानी की जरूरत होती है। जब मानवजनित गतिविधियां नदियों के काम करने के मूलभूत तरीकों को बदल देती हैं, तो यह खतरनाक होता है। अपघटन दर में वृद्धि वैश्विक कार्बन चक्र और कीटों और मछलियों जैसे जानवरों के लिए समस्या पैदा कर सकती है। नदियों में रहने वाले जीवों  के जीवित रहने के लिए जिन खाद्य संसाधनों की उन्हें आवश्यकता होती है, वे और तेजी से गायब हो जाएंगे, कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वायुमंडल में मिल जाएंगे।

अध्ययन के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग, शहरीकरण, पोषक तत्वों की बढ़ती मात्रा दुनिया भर में कार्बन चक्र को बदल रही है। नदियां और जलधाराएं बड़ी मात्रा में पत्तियों, शाखाओं और अन्य पौधों के पदार्थों को विघटित करके वैश्विक कार्बन चक्र में अहम भूमिका निभाती हैं।

आम तौर पर, यह प्रक्रिया कुछ इस तरह होती है, जब कोई पत्ता नदी में गिरता है, बैक्टीरिया और कवक उस पत्ती पर रहने लगते हैं। कीट बैक्टीरिया और कवक को खाते हैं, इसे तरह पत्ती में जमा कार्बन बढ़ता है और अधिक कीटों को जन्म देता है, आखिर में मछली कीटों को खा जाती है।

अध्ययन में पाया गया कि दुनिया के उन क्षेत्रों में यह प्रक्रिया बदल रही है, जो मनुष्यों से प्रभावित हैं। शहरीकरण और कृषि से प्रभावित नदियां पत्तियों के सड़ने की प्रक्रिया को तेजी से बदल रही हैं।

जब यह प्रक्रिया तेज हो जाती है, तो उस कीट को पत्ती से कार्बन को अवशोषित करने का मौका नहीं मिलता। इसके बजाय, कार्बन वायुमंडल में चला जाता है, जो ग्रीनहाउस गैस को बढ़ाता है और अंततः खाद्य श्रृंखला को रोक देता है। अध्ययनकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा कि जब हम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बारे में सोचते हैं, तो हम अधिकतर कारखानों के बारे में सोचते हैं।

लेकिन बहुत सारी कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जलीय पारिस्थितिकी तंत्रों से आती है, यह प्रक्रिया प्राकृतिक है। लेकिन जब मनुष्य ताजे पानी में उर्वरक जैसे पोषक तत्व मिलाते हैं और पानी का तापमान बढ़ाते हैं, तो अपघटन की दर बढ़ जाती है और वायुमंडल में अधिक सीओ2 समा जाती है। मानवजनित प्रभाव को कम करने से पानी की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है, जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने में मदद मिल सकती है.

शोधकर्ताओं ने 40 देशों के 150 से अधिक शोधकर्ताओं के साथ मिलकर दुनिया भर की 550 नदियों से आंकड़े एकत्र किए। उस आंकड़े के आधार पर, वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में नदियों और धाराओं में अपघटन दरों का पहला अनुमान लगाया, जिसमें उष्णकटिबंधीय जैसे कम अध्ययन वाले क्षेत्र भी शामिल हैं।

अध्यनकर्ताओं ने आंकड़ों को एक मुफ़्त ऑनलाइन मैपिंग टूल में संकलित किया है, जो दिखाता है कि स्थानीय जलमार्गों में विभिन्न प्रकार की पत्तियां कितनी तेजी से सड़ती हैं। अध्ययन के मुताबिक, पूर्वानुमानात्मक मॉडलिंग का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने बढ़ी हुई अपघटन दरों के लिए जिम्मेदार पर्यावरणीय कारणों की भी पहचान की, जैसे कि उच्च तापमान और पोषक तत्वों की बढ़ी हुई मात्रा।

शोधकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा, ये दोनों कारण मानवीय गतिविधियों से प्रभावित होते हैं। अपघटन पर मानवीय प्रभाव को कम करने से नदियों में अधिक कार्बन जमा रहेगी, जिससे इसको कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वायुमंडल में प्रवेश करने और जलवायु में बदलाव करने से रोका जा सकेगा।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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