ललित मौर्या
देश भर में जारी भीषण गर्मी और सूखते जल निकायों के बीच, बिहार से अच्छी खबर सामने आई है, जहां नागी और नकटी पक्षी अभयारण्यों को रामसर कन्वेंशन के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्व की आद्रभूमियों (वेटलैंड्स) के रूप में मान्यता दे दी गई है।
ये मानव निर्मित आद्रभूमियां अनगिनत वनस्पतियों के साथ-साथ कई तरह के जीवों, विशेष रूप से पक्षियों के प्राकृतिक आवास प्रदान करती हैं। गौरतलब है कि यह दोनों ही आद्रभूमियां बिहार के जमुई में स्थित हैं। इनके शामिल होने से भारत में रामसर स्थलों की संख्या बढ़कर 82 हो गई है। भारत में सबसे बड़ा रामसर स्थल पश्चिम बंगाल में सुंदरबन वेटलैंड है जो 4,230 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बेगूसराय जिले में मौजूद कंवर झील को बिहार की पहली रामसर साइट होने का गौरव प्राप्त है, जिसे 2020 में रामसर स्थल घोषित किया गया था। हालांकि डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक इस रामसर साइट की हालत यह है कि वो कभी भी सूख सकती है और वहां खेती शुरू की जा सकती है।
बता दें कि रामसर कन्वेंशन, आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसपर 1971 में ईरान के रामसर शहर में हस्ताक्षर किए गए थे।
बिहार के मुख्य वन्यजीव वार्डन पीके गुप्ता ने दो आर्द्रभूमियों को रामसर साइट के रूप में मान्यता दिए जाने पर अपनी खुशी जाहिर की। उन्होंने डाउन टू अर्थ से हुई बातचीत में कहा कि, “हमें इसकी उम्मीद थी। यह हमें राज्य में अन्य आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिए प्रेरित करेगा।” इस खबर का देश भर के पर्यावरणविदों और पक्षी विशेषज्ञों ने भी स्वागत किया है।
बिहार के पक्षी विशेषज्ञ और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य अरविंद मिश्रा ने इस पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि, “मुझे बेहद खुशी है कि नागी और नकटी पक्षी अभयारण्यों को भारत में 81वें और 82वें रामसर स्थल के रूप में नामित किया गया है। मैं इस मान्यता के लिए बिहार के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग के शीर्ष अधिकारियों को धन्यवाद देता हूं।”
सैकड़ों प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करते हैं यह अभयारण्य
मिश्रा का यह भी कहना है कि यह दोनों अभयारण्य सर्दियों में सैकड़ों प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करते हैं, जिनमें गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियां भी शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि, “करीब दो साल पहले विभाग ने बिहार में पांच आर्द्रभूमियों के लिए प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया था, जिन्हें रामसर साइट के रूप में नामित करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) को भेजा जाना था। इनमें दरभंगा में कुशेश्वर अस्थान, वैशाली में ताल बरैला, कटिहार में गोगाबील, जमुई में नागी और नकटी बांध शामिल थे।
इनमें जहां नागी पक्षी अभयारण्य 791 हेक्टेयर में फैला है, वहीं नकटी पक्षी अभयारण्य का विस्तार 333 हेक्टेयर में है। रामसर साइट इन्फॉर्मेशन सर्विस वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, ये दोनों अभयारण्य मानव निर्मित आर्द्रभूमि हैं, जिन्हें मुख्य रूप से नकटी बांध के निर्माण की मदद से सिंचाई के लिए विकसित किया गया है।
यह भी कहा गया है कि, “बांध निर्माण के बाद से, आर्द्रभूमि और इसके आस-पास के क्षेत्रों ने पक्षियों, स्तनधारियों, मछलियों, जलीय पौधों, सरीसृपों और उभयचरों की 150 से अधिक प्रजातियों के लिए आवास प्रदान किया है।” इन प्रजातियों में भारत के लुप्तप्राय महान हाथी (एलिफस मैक्सिमस इंडिकस) संकटग्रस्त देशी कैटफिश (वालगो अट्टू) जैसी प्रजातियां शामिल हैं। इन आर्द्रभूमियों का जलग्रहण क्षेत्र शुष्क पर्णपाती वन में है, जो पहाड़ियों से घिरे हैं।
1984 में, इस आर्द्रभूमि को पक्षी अभयारण्य के रूप में नामित किया गया था, क्योंकि यह कई प्रवासी प्रजातियों के लिए सर्दियों के आवास के रूप में बेहद मायने रखती है। सर्दियों के दौरान यहां 20,000 से अधिक पक्षी आते हैं, जिनमें इंडो-गंगा के मैदान पर लाल-क्रेस्टेड पोचार्ड (नेट्टा रूफिना) का सबसे बड़ा समूह भी शामिल है।
स्थानीय समुदायों की पानी से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ यह अभयारण्य पक्षियों को देखने की भी एक लोकप्रिय जगह है। 2023 एशियाई जलपक्षी जनगणना (एडब्ल्यूसी) के मुताबिक, नकटी पक्षी अभयारण्य में सबसे अधिक 7,844 पक्षी दर्ज किए गए, इसके बाद नागी पक्षी अभयारण्य में इन पक्षियों की संख्या 6,938 दर्ज की गई थी।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )