विकास शर्मा
आईएडी यानि इलनेस एंजायटी डिसऑर्डर से ग्रस्त लोगों को हायपोकॉन्ड्रियाक्स भी कहते हैं. इस तरह के लोगों को हमेशा यही चिंता रहती है कि वे किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं. अध्ययन में पाया गया है कि ऐसे लोग चिंता ना करने वालों की तुलना में जल्दी मर जाते हैं.
शारीरिक सेहत के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देने की बहुत जरूरत है. लोग अक्सर मानसिक सेहत को नजरंदाज करते हैं. लाइफ स्टाइल, तनावपूर्ण जिंदगी, खानपान जैसी कई बातें सेहत खराब करने लगती हैं. जामा साइक्रैट्री में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि है कि जो लोग अपनी सेहत की बहुत ज्यादा चिंता करते हैं, वे उनसे पहले मरते हैं जो मस्त जीवन जीते हैं. इस तरह के लोगों को हायपोकॉन्ड्रियाक्स कहा जाता है. इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इसी मानसिक विकार और उससे जुड़ी समस्याओं की पड़ताल की.
खास तरह का विकार
मनोचिकित्सक आमतौर पर हायपोकॉन्ड्रियाक शब्द के इस्तेमाल से बचते हैं, इसकी जगह वो इलनेस एंजायटी डिसऑर्डर (आईएडी) शब्द का उपयोग करना पसंद करते हैं. आईएडी को ऐसी मानसिक सेहत स्थिति के तौर पर परिभाषित किया जाता है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति सेहत की बहुत ज्यादा चिंता करता है. रोचक बात यह है कि अधिकांश मामलों में उन्हें किसी भी तरह की गंभीर सेहत की समस्या नहीं होती.
डॉक्टरों के चक्कर
इस तरह की सोच वाला व्यक्ति अस्पताल और डॉक्टर के चक्कर लगाता रहता है. बार बार की जांच और पड़ताल के बाद भी इसकी संभावना अधिक होती है कि उन्हें कोई गंभीर दिक्कत नहीं होती. इस विकार से पीड़ित व्यक्ति बहुत सा समय और पैसा स्वास्थ्य जांच, चिकित्सा आदि में खर्च करता रहता है.ऐसे लोगों को डॉक्टर भी नजरंदाज करने ही लगते हैं, आसपास के लोग भी उनसे कटने लगते हैं.
कैसे किया अध्ययन
स्वीडन के शोधकर्ताओं ने करीब 42 हजारों लोगों की दो दशक की सेहत संबंधी जानकारी की पड़ताल की, जिसमें से एक हजार लोग आईएडी से पीड़ित पाए गए. देखा गया कि इस विकार वाले लोगों में मरने का जोखिम ज्यादा होता है. औसतन पाया कि चिंता ना करने वालों की तुलना में, चिंता करने वाले 05 साल पहले मरते हैं.
मौतों के कारण?
इतना ही नहीं, ऐसे लोगों में प्राकृतिक और अप्राकृतिक दोनों तरीकों से मौत का जोखिम ज्यादा था. प्राकृतिक कारणों से मरने वाले आईएडी वाले लोग रक्तवाहिका, सांस और अन्य कारणों से मरे लेकिन कैंसर से उनकी मौतें नहीं हुईं. वहीं अप्राकृतिक कारणों में प्रमुख वजह आत्महत्या भी रही, जिनकी संख्या गैर आईएडी वालों की तुलना में चार गुना अधिक थी.
मनोविकारों से नाता
आईएडी का मनोरोग विकारों से अधिक गहरा संबंध है. जिस तरह से मनोरोगों में आत्महत्या का जोखिम बढ़ जाता है. आईएडी से ग्रस्त लोग खुद को खारिज महसूस करते हैं. हीन भावना से भरते जाते हैं. उनमें बेचैनी और निराशा छाने लगती है. कई बार इसके नतीजे आत्महत्या के रूप में भी सामने आते हैं.
आईएडी विकार उन लोगों में अधिक देखा जाता है जिनके परिवार में कोई सदस्य गंभीर रूप से बीमार रहता हो. चूंकि अधिकांश गंभीर रोगों में जीन की भूमिका होती है, तो एक कारण यह भी हो सकता है कि आईएडी से ग्रस्त लोगों में छोटे जीवन की अवधि वाले जीन हों. ऐसे में डॉक्टरों को सावधानी से आईएडी के रोगियों का इलाज करने की जरूरत है.
(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )