ललित मौर्या
रिपोर्ट के मुताबिक एशिया, यूरोप, अफ्रीका और मध्य पूर्व के क्षेत्रों में इसकी मृत्युदर का बोझ सबसे अधिक है. दुनिया में कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (सीवीडी) यानी ह्रदय और रक्त वाहिकाओं सम्बन्धी बीमारियां तेजी से अपने पैर पसार रही है। देखा जाए तो यह कोई ऐसी बीमारियां नहीं, जिनसे बचा न जा सके लेकिन विडम्बना देखिए कि इसके बादजूद वैश्विक स्तर पर इन बीमारियों से होने वाली मौतें लगातार बढ़ रही हैं।
इस बारे में जारी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले 32 वर्षों में इन बीमारियों से होने वाली मौतों में 59.7 फीसदी का इजाफा हुआ है। गौरतलब है कि जहां 1990 में कार्डियोवैस्कुलर डिजीज की वजह से 1.24 करोड़ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, वहीं 2022 में मौतों का यह आंकड़ा बढ़कर 1.98 करोड़ पर पहुंच गया था।
वहीं यदि विश्व स्वस्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी आंकड़ों पर गौर करें तो 2019 में इन विकारों के चलते 1.79 करोड़ लोगों की असमय मृत्यु हो गई थी। जोकि वैश्विक स्तर पर होने वाली कुल मौतों का करीब 32 फीसदी है। इनमें से करीब 85 फीसदी मौतों की वजह ह्रदय आघात और स्ट्रोक थी। आंकड़ों की मानें तो आज यह बीमारियां दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों की जान ले रहीं हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में इन ह्रदय और रक्त वाहिकाओं सम्बन्धी बीमारियों के करीब 34 फीसदी शिकार, 70 वर्ष की आयु से छोटे थे। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि ह्रदय और अन्य बीमारियों का खतरा केवल बुजुर्गों और उम्र दराज लोगों तक ही सीमित नहीं है। आज बच्चे और युवा भी इन बीमारियों के चपेट में आ रहे हैं। इसके लिए कहीं न कहीं बढ़ता प्रदूषण, खानपान, खराब जीवनशैली जैसे कारक भी जिम्मेवार हैं।
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी की यह स्पेशल रिपोर्ट जर्नल ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी में प्रकाशित हुई है। अपनी इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया के 21 क्षेत्रों में 1990 से 2022 के बीच ह्रदय और रक्त वाहिकाओं सम्बन्धी बीमारियां की स्थिति और उनके जोखिम से जुड़े कारकों के प्रभावों की जांच की है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कार्डियोवैस्कुलर डिजीज कोई एक बीमारी न होकर ह्रदय और रक्त वाहिकाओं सम्बन्धी विकारों का एक समूह है, जिसमें ह्रदय आघात और स्ट्रोक समेत कई बीमारियां और विकार शामिल हैं।
यही वजह है कि शोधकर्ताओं ने इस रिसर्च में हृदय और रक्त वाहिकाओं सम्बन्धी 18 स्थितियों पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने इस रिपोर्ट में मृत्यु दर और विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों से जुड़े अनुमान पेश किए हैं। साथ ही इस रिपोर्ट में कार्डियोवैस्कुलर डिजीज के जोखिम से जुड़े 15 प्रमुख कारकों और उनके साथ बीमारियों के संबंधों की जांच भी शोधकर्ताओं ने की है। इनमें वायु प्रदूषण, लेड का जोखिम, कम और अत्यधिक तापमान, रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल का स्तर, शरीर का वजन, रक्त शर्करा, आहार, धूम्रपान, सेकंड हैंड स्मोक, बॉडी मास इंडेक्स, शराब का सेवन और शारीरिक गतिविधियां जैसे कारक शामिल थे।
खानपान और खराब जीवनशैली में बदलाव से बदल सकती है तस्वीर
रिपोर्ट में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक एशिया, यूरोप, अफ्रीका और मध्य पूर्व के क्षेत्रों में इसकी मृत्युदर का बोझ सबसे अधिक है। वहीं उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, खानपान सम्बन्धी जोखिम और वायु प्रदूषण अभी भी इसके प्रमुख कारण बने हुए हैं।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि ह्रदय रोग अभी भी सभी कार्डियोवैस्कुलर डिजीज में सबसे ज्यादा लोगों की जान ले रहा है। यदि औसत रूप से देखें तो ह्रदय रोगों की मृत्यु दर प्रति लाख आबादी पर 108.8 है। इसके बाद इंटरसेरीब्रल हेमोरेज और इस्केमिक स्ट्रोक से होने वाली मृत्यु दर सबसे ज्यादा है।
वहीं उच्च रक्तचाप, सभी सीवीडी में विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षो पर सबसे ज्यादा प्रभाव डाल रहा है, जो वैश्विक स्तर पर प्रति लाख लोगों पर 2,564.9 रिकॉर्ड किया गया। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2015 से 2022 के बीच दुनिया के 204 में से 27 देशों या क्षेत्रों में इनसे होने वाली मौतों में इजाफा दर्ज किया गया है।
आंकड़ों के मुताबिक पूर्वी यूरोप में इन बीमारियों से होने वाली मौतों की दर सबसे ज्यादा है जो प्रति लाख लोगों पर 553 रिकॉर्ड की गई है। इतना ही नहीं रिपोर्ट में खानपान की खराब आदतों को इससे जुड़े समस्याओं का सबसे बड़े कारणों में से एक माना है। इसी तरह वायु प्रदूषण और पर्यावरण से जुड़े अन्य कारक भी इसके बढ़ने की बड़ी वजह हैं।
यह कोई ऐसी बीमारियां नहीं, जिनका इलाज हमेशा दवाओं में हो। यदि खानपान के साथ-साथ जीवनशैली में सुधार किया जाए तो काफी हद तक इन बीमारियों से बचा जा सकता है। इसी तरह बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम और बेहतर वातावरण भी इनके खतरों को कम कर सकता है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )