प्रदीप

जिस वैज्ञानिक ने बताया कि सोना, लोहा, पारा आदि धातुएं तत्त्व हैं न कि यौगिक. जिसने बताया कि पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से मिल कर बना है, जिसने हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की पहचान कर उनका नाम दिया उसे रसायन के जनक एंटोनी लारेंट लेवॉजिए को मृत्‍युदंड दे दिया गया जबकि वे अपने शोध को पूरा करने के लिए कुछ वक्‍त मांग रहे थे! उनकी मौत के डेढ़ साल सरकार ने माना कि लेवॉजिए पर लगाए गए सारे आरोप गलत थे और उनको दोषी ठहराना एक भूल थी!

अमूमन सभी वैज्ञानिक और इतिहासकार इस बात पर एकमत हैं कि सही मायनों में 18 वीं सदी में आधुनिक रसायन विज्ञान की आधारशिला रखी गई. यह वह दौर था जब रसायन विज्ञान के क्षेत्र में कई तरह की भ्रांतियां और जड़-मान्यताएं प्रचलित थीं. उस समय रसायन विज्ञान के क्षितिज पर एक ऐसा व्यक्ति उदित हुआ जिसने अपनी गहन अंतर्दृष्टि से तमाम पूर्वाग्रहों और अवैज्ञानिक मान्यताओं का खंडन करते हुए रसायन विज्ञान का कायाकल्प ही कर दिया. उस व्यक्ति का नाम था – एंटोनी लारेंट लेवॉजिए.

लेवॉजिए को आधुनिक रसायन विज्ञान का जनक माना जाता है. रसायन विज्ञान के क्षेत्र में उनका वही स्थान है जो भौतिकी के क्षेत्र में सर आइजक न्यूटन और जीव विज्ञान में चार्ल्स डार्विन का है. आज रासायनिक प्रयोगों का वैज्ञानिक पद्धति से विश्लेषण करने की अद्भुत क्षमता रखने वाले इसी महान रसायनशास्त्री की पुण्यतिथि है. 1794 में आज ही के दिन लेवॉजिए पर राष्ट्रद्रोह का मनगढ़ंत आरोप लगाकर गिलोटिन से उनके सिर को कलम कर दिया गया था. लेवॉजिए की मौत के साथ उनके द्वारा रसायन विज्ञान में लाई क्रांति रुकी नहीं और वह निरंतर प्रगति करते हुए आज अणुओं-परमाणुओं की दहलीज तक जा पहुंची है.

एंटोनी लारेंट लेवॉजिए का जन्म 26 अगस्त,1743 को पेरिस (फ्रांस) के एक समृद्ध परिवार में हुआ था. उनके पिता जीन एंटोनी लेवॉजिए पेरिस के पार्लियामेंट में संसदीय सलाहकार थे. उनकी मां एमिली पंक्टिस लेवॉजिए पेरिस के एक समृद्ध अधिवक्ता की पुत्री थीं. लेवॉजिए 5 साल के ही थे जब उनकी मां की मृत्यु हो गई. उसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी बुआ और दादी ने मिलकर किया. बुआ और दादी ने कभी भी उन्हें मां की कमी महसूस नहीं होने दी, लिहाजा उनका बचपन काफी आनंदमय बीता.

लेवॉजिए को अच्छी शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से उनके पिता ने 11 साल की उम्र में उनका दाखिला पेरिस विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित माजरीन कॉलेज में करवाया. वहां उन्होंने गणित, रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और खगोल विज्ञान के साथ-साथ साहित्य, भाषा और दर्शन का भी अध्ययन किया. उनकी रुचि विज्ञान में थी लेकिन उनके पिता ने उन्हें स्पष्ट आदेश दिया कि वे अपनी पारिवारिक परंपरा का निर्वहन करते हुए कानून की डिग्री हासिल करें और वकील का प्रतिष्ठित पेशा अपनाएं.

लेवॉजिए को अपने पिता के जिद के आगे झुकना पड़ा. उन्होंने कानून का अध्ययन किया और 1763 में कानून की डिग्री ली. एक साल बाद उन्हें वकालत करने का लाइसेंस भी मिल गया लेकिन उन्होंने कभी भी बतौर वकील काम नहीं किया क्योंकि उनकी दिलचस्पी वकालत में नहीं, विज्ञान में थी. सबसे पहले उन्होंने वकालत के अपने पारिवारिक पेशे को त्याग कर प्रसिद्ध फ्रांसीसी भू-विज्ञानी जीन एटिने गुएटार्ड के मार्गदर्शन में भू-विज्ञान का अध्ययन किया. गुएटार्ड के साथ लेवॉजिए ने फ्रांस के विभिन्न स्थानों की यात्रा की और खनिजों का अध्ययन किया. लेवॉजिए ने फ्रांस का खनिज मानचित्र और उनका लेखाजोखा तैयार करने में गुएटार्ड की मदद की.

लेवॉजिए ने गुएटार्ड से सावधानीपूर्वक प्रयोग करने और सुनियोजित ढंग से आंकड़ों का विश्लेषण करने की सीख ली. उन्होंने अपने घर में ही एक प्रयोगशाला बनवाई और विभिन्न खनिजों व चट्टानों का रासायनिक विश्लेषण करना शुरू कर दिया. 1764 में जिप्सम से प्लास्टर ऑफ पेरिस बनाने की विधि पर उन्होंने अपना पहला शोधपत्र एक फ्रांसीसी जर्नल में प्रकाशित करवाया.

22 साल की उम्र में उन्होंने जैतून के तेल की मदद से पेरिस जैसे बड़े शहरों की सड़कों को रोशन करने की योजना पर एक निबंध लिखा. इस निबंध के लिए उन्हें ‘रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ ने स्वर्ण पदक से सम्मानित किया. इसके बाद उन्होंने अपनी रुचि के विभिन्न विषयों पर अध्ययन किया. उनकी महत्वाकांक्षा रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज का सदस्य बनने की थी लेकिन एकेडमी के सदस्यों को दिया जाने वाला मामूली वेतन उनके उस जीवन शैली के लिए काफी कम थी जिसके वे आदी थे और उन्हें अपनी निजी प्रयोगशाला के रखरखाव के लिए भी पैसों की जरूरत थी. इसलिए वे आय के अन्य स्रोतों की भी तलाश में थे. बहरहाल, रसायन विज्ञान और भू-विज्ञान में उनके उल्लेखनीय शोध कार्यों की बदौलत 1768 में 25 साल की उम्र में उन्हें रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज के लिए चुन लिया गया.

1768 में ही लेवॉजिए ने सरकार (सम्राट) की ओर से कर (टैक्स) व शुल्क वसूलने वाली ‘फर्मे जनरेल’ नामक एक संस्थान में व्यावसायिक हिस्सेदारी खरीदी. लेवॉजिए हर तरह से न्यायप्रिय और उदार थे लेकिन यह संस्था इन दोनों में से कुछ भी नहीं थी. यह संस्था गरीबों और किसानों से मनमाने और क्रूर ढंग से कर वसूलने के लिए कुख्यात थी. इस तिरस्कृत संस्था का सदस्य बनने के पीछे लेवॉजिए का मकसद अपने प्रयोगों के लिए धन इकट्ठा करना था. यह उनके मुख्य काम यानी अनुसंधान के लिए पैसे उपलब्ध कराती थी.

1771 में 28 साल की उम्र में लेवॉजिए ने ‘फर्मे जनरेल’ के अपने एक वरिष्ठ सहकर्मी की 14 वर्षीय बेटी मैरी एनी पिएरेटे पॉल्ज से शादी कर ली. मैरी एनी सही मायने में ‘ब्यूटी विथ ब्रेन’ की अद्भुत मिसाल थीं. लेवॉजिए के शोध कार्यों में मैरी एनी की काफी अहम भूमिका थी. वे अपने पति को प्रयोग करने, उनके आंकड़े लेने और उनके व्यवस्थित विश्लेषण में मदद करने के साथ-साथ लैटिन और अंग्रेजी में छपे शोधपत्रों का अनुवाद भी करतीं थीं. इसलिए विज्ञान में लेवॉजिए और मैरी एनी दोनों के योगदान को जोड़कर समझा जाना चाहिए.

एक कर प्रशासक के रूप में काम करते हुए लेवॉजिए एक बहुत ही धनी व्यक्ति बन गए. अपने शिखर पर उनकी आय डेढ़ लाख लीवा प्रति वर्ष थी. आज के हिसाब से यह राशि लगभग 1 अरब 23 करोड़ रूपए होगी! उन्होंने विज्ञान के हित में अपनी आय को काफी उदारता के साथ खर्च किया. उन्होंने अपने पैसे का इस्तेमाल फ्रांस में एक बहुत महंगी और परिष्कृत प्रयोगशाला खोलने के लिए किया ताकि इच्छुक वैज्ञानिक वित्तीय और अकादमिक बाधाओं के बिना शोध कर सकें.

लेवॉजिए को आमतौर पर रसायन विज्ञान में उनके योगदान के लिए जाना जाता है, लेकिन वे ताउम्र विभिन्न सामाजिक जिम्मेदारियों से भी जुड़े रहे. लेवॉजिए एक मानवतावादी थे् वे अपने देश के लोगों की बहुत परवाह करते थे और हमेशा कृषि, उद्योग और विज्ञान द्वारा आम लोगों की आजीविका में सुधार लाने की कोशिशों में जुटे रहते थे. उन्होंने अनेक प्रशासनिक भूमिकाएँ भी निभाईं जैसे – बारूद विभाग के प्रमुख के रूप में काम, तस्करी रोकने के लिए पेरिस के चारों ओर एक दीवार के निर्माण की देखरेख, माप-तोल में एकरूपता लाने की समिति के सचिव के रूप में काम (मीट्रिक प्रणाली की खोज). इसके अलावा वे कृषि, सुरक्षा, जन-स्वास्थ्य और शिक्षा से संबंधित समितियों के भी सदस्य रहे.

लेवॉजिए को आधुनिक रसायन विज्ञान का संस्थापक कहा जाता है. स्वाभाविक रूप से उनसे पहले रसायन विज्ञान में अनेक खोजें हुईं थीं, लेकिन उनके प्रयासों के फलस्वरूप ही रसायन विज्ञान मध्ययुगीन कीमियागीरी (अल्केमी) की जड़ दार्शनिक मान्यताओं से मुक्त होकर आधुनिक रूप अख़्तियार कर सका. वैसे तो लेवॉजिए के अनुसंधानों और खोजों की सूची काफी लंबी है, लेकिन उनके कुछ प्रमुख शोधों के बारे में हम आगे संक्षेप में चर्चा करेंगे.

22 साल की उम्र में उन्होंने जैतून के तेल की मदद से पेरिस जैसे बड़े शहरों की सड़कों को रोशन करने की योजना पर एक निबंध लिखा. इस निबंध के लिए उन्हें ‘रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ ने स्वर्ण पदक से सम्मानित किया. इसके बाद उन्होंने अपनी रुचि के विभिन्न विषयों पर अध्ययन किया. उनकी महत्वाकांक्षा रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज का सदस्य बनने की थी लेकिन एकेडमी के सदस्यों को दिया जाने वाला मामूली वेतन उनके उस जीवन शैली के लिए काफी कम थी जिसके वे आदी थे और उन्हें अपनी निजी प्रयोगशाला के रखरखाव के लिए भी पैसों की जरूरत थी. इसलिए वे आय के अन्य स्रोतों की भी तलाश में थे. बहरहाल, रसायन विज्ञान और भू-विज्ञान में उनके उल्लेखनीय शोध कार्यों की बदौलत 1768 में 25 साल की उम्र में उन्हें रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज के लिए चुन लिया गया.

1768 में ही लेवॉजिए ने सरकार (सम्राट) की ओर से कर (टैक्स) व शुल्क वसूलने वाली ‘फर्मे जनरेल’ नामक एक संस्थान में व्यावसायिक हिस्सेदारी खरीदी. लेवॉजिए हर तरह से न्यायप्रिय और उदार थे लेकिन यह संस्था इन दोनों में से कुछ भी नहीं थी. यह संस्था गरीबों और किसानों से मनमाने और क्रूर ढंग से कर वसूलने के लिए कुख्यात थी. इस तिरस्कृत संस्था का सदस्य बनने के पीछे लेवॉजिए का मकसद अपने प्रयोगों के लिए धन इकट्ठा करना था. यह उनके मुख्य काम यानी अनुसंधान के लिए पैसे उपलब्ध कराती थी.

1771 में 28 साल की उम्र में लेवॉजिए ने ‘फर्मे जनरेल’ के अपने एक वरिष्ठ सहकर्मी की 14 वर्षीय बेटी मैरी एनी पिएरेटे पॉल्ज से शादी कर ली. मैरी एनी सही मायने में ‘ब्यूटी विथ ब्रेन’ की अद्भुत मिसाल थीं. लेवॉजिए के शोध कार्यों में मैरी एनी की काफी अहम भूमिका थी. वे अपने पति को प्रयोग करने, उनके आंकड़े लेने और उनके व्यवस्थित विश्लेषण में मदद करने के साथ-साथ लैटिन और अंग्रेजी में छपे शोधपत्रों का अनुवाद भी करतीं थीं. इसलिए विज्ञान में लेवॉजिए और मैरी एनी दोनों के योगदान को जोड़कर समझा जाना चाहिए.

एक कर प्रशासक के रूप में काम करते हुए लेवॉजिए एक बहुत ही धनी व्यक्ति बन गए. अपने शिखर पर उनकी आय डेढ़ लाख लीवा प्रति वर्ष थी. आज के हिसाब से यह राशि लगभग 1 अरब 23 करोड़ रूपए होगी! उन्होंने विज्ञान के हित में अपनी आय को काफी उदारता के साथ खर्च किया. उन्होंने अपने पैसे का इस्तेमाल फ्रांस में एक बहुत महंगी और परिष्कृत प्रयोगशाला खोलने के लिए किया ताकि इच्छुक वैज्ञानिक वित्तीय और अकादमिक बाधाओं के बिना शोध कर सकें.

लेवॉजिए को आमतौर पर रसायन विज्ञान में उनके योगदान के लिए जाना जाता है, लेकिन वे ताउम्र विभिन्न सामाजिक जिम्मेदारियों से भी जुड़े रहे. लेवॉजिए एक मानवतावादी थे् वे अपने देश के लोगों की बहुत परवाह करते थे और हमेशा कृषि, उद्योग और विज्ञान द्वारा आम लोगों की आजीविका में सुधार लाने की कोशिशों में जुटे रहते थे. उन्होंने अनेक प्रशासनिक भूमिकाएँ भी निभाईं जैसे – बारूद विभाग के प्रमुख के रूप में काम, तस्करी रोकने के लिए पेरिस के चारों ओर एक दीवार के निर्माण की देखरेख, माप-तोल में एकरूपता लाने की समिति के सचिव के रूप में काम (मीट्रिक प्रणाली की खोज). इसके अलावा वे कृषि, सुरक्षा, जन-स्वास्थ्य और शिक्षा से संबंधित समितियों के भी सदस्य रहे.

लेवॉजिए को आधुनिक रसायन विज्ञान का संस्थापक कहा जाता है. स्वाभाविक रूप से उनसे पहले रसायन विज्ञान में अनेक खोजें हुईं थीं, लेकिन उनके प्रयासों के फलस्वरूप ही रसायन विज्ञान मध्ययुगीन कीमियागीरी (अल्केमी) की जड़ दार्शनिक मान्यताओं से मुक्त होकर आधुनिक रूप अख़्तियार कर सका. वैसे तो लेवॉजिए के अनुसंधानों और खोजों की सूची काफी लंबी है, लेकिन उनके कुछ प्रमुख शोधों के बारे में हम आगे संक्षेप में चर्चा करेंगे.

इस दु:खद घटना के डेढ़ साल बाद फ्रांस सरकार ने अपनी जांच में लेवॉजिए पर लगाए गए आरोपों को मनगढ़ंत पाया और उनकी निजी वस्तुओं को उनकी विधवा मैरी एनी पिएरेटे को एक पत्र के साथ सौंप दिया गया, जिसमें लिखा था कि लेवॉजिए को दोषी ठहराना एक भूल थी! बहरहाल, भले ही कुछ उन्मादियों के सनक की वजह से उनकी जान चली गई, लेकिन उनके जाने से रसायन विज्ञान में उनके द्वारा लाई गई क्रांति रुकी नहीं और वह आज भी उन्हीं के पदचिह्नों पर चलते हुए तेजी से आगे बढ़ रही है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं )

(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )

Spread the information

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You missed