– डॉ नरेंद्र दाभोलकर
ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क (AIPSN) एवं इससे जुड़े संगठनों ने सत्ता- व्यवस्था एवं प्रतिगामी, अवैज्ञानिक सोच वाली शक्तियों, निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा अंधविश्वास, धर्मांधता, कट्टरता, नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने के विरुद्ध देश में लम्बे समय तक साइंटिफिक टेंपर कैंपेन चलाने का निर्णय लिया है। झारखंड में साइंस फॉर सोसायटी झारखंड, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, झारखंड एवं झारखंड साइंस फोरम ने झारखंड में संयुक्त रूप से वैज्ञानिक चेतना अभियान चलाने का निर्णय लिया है। देश में धर्मांधता, अंधश्रद्धा, अंधविश्वास, कुरीति एवं पाखंड के विरुद्ध संघर्ष में डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर ने अग्रणी भूमिका निभाई थी, जिसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। उल्लेखनीय है कि धार्मिक कट्टरवादियों ने उनकी नृशंस हत्या कर दी। लेकिन यह अभियान अब भी न सिर्फ जारी है बल्कि इसके दायरे का लगातार विस्तार ही हुआ है। प्रस्तुत है इस मुद्दे पर डॉ नरेन्द्र दाभोलकर का दृष्टिकोण ……खुद उनकी जुबानी …
मैं अंधविश्वास के विरोध में चल रहे आन्दोलन का एक हिस्सा हूं। वर्तमान युग में घटित घटनाएं ईश्वरीय शक्ति से, आशीर्वाद से घटित होती हैं और नियंत्रित की जाती हैं इस पर मेरा भरोसा नहीं है।
विज्ञानवादी दृष्टिकोण के आधार पर अंधविश्वास के विरोध में लड़ाई जारी रखना, और अपनी ताकत के हिसाब से आगे बढ़ते रहना, यह उज्ज्वल भविष्य का भरोसा देता है इसलिए यह प्रयास है।
अंधविश्वास का सबसे अधिक भयावह रूप तब सामने आता है जब वह मनुष्य की सबसे ताकतवर शक्ति का खात्मा कर देता है। वह शक्ति है मनुष्य की आलोचनात्मक बुद्धि और विवेक। मनुष्य जन्मम: बहुत अधिक कमजोर प्राणी है, लेकिन वह ताकतवर तब बन जाता है या सबसे अलग उसको तब माना जाता है जब उसके पास आलोचनात्मक दृष्टि और विवेकवादी शक्ति होती है। अंधविश्वास इस ताकत को ही सबसे पहले खत्म कर देता है।
अपने देश में स्त्रियां हमेशा विविध दबावों तले जीती रही हैं। इसलिए बाधा, किसी देवी या ईश्वरात्मा का शरीर पर सवार होना जैसे घटनाओं में स्त्रियों की ही अधिक संख्या होती है। भारतीय स्त्रियां पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिस्तिथियों से निर्मित कई दबावों को लम्बे समय से झेलती आ रही हैं। गरीब और पिछड़ी जाति की महिलाएं तो सबसे अधिक दूसरों पर निर्भर रहा करती हैं। इन सारी बातों के कारण स्त्रियों के शरीर में ईश्वरात्मा तथा देवी के प्रवेश के उदाहरण अधिक देखे जाते हैं।
पिता की मृत्यु के बाद लड़कों का मुंडन क्यों किया जाता है? बुद्धि जिसे माने ऐसा इसका कोई उत्तर नहीं है। जीवित मनुष्य के बालों का और मृत शरीर का किस अर्थ से सम्बन्ध है? ऐसा सवाल कोई करता नहीं है। उसके विरोध में कोई आवाज उठता नहीं और न ही बात करता है। बकरी के झुंड जैसा सारा समाज सालों से, सदियों से अनुकरण करता आ रहा है। इसके विरोध में विचारात्मक विद्रोह कौन करेगा? नेताओं और प्रमुखों को इससे कुछ लेना-देना नहीं है। उन्हें सत्ता के स्थानों में मनमुताबिक जगह मिल गई कि खुश रहते हैं।
स्वर्ग का कोई अस्तित्व नहीं है, लेकिन स्वर्गवासी पिताजी तथा पितरों की आत्मा शान्त करने के लिए अपनी बुद्धि धर्मगुरुओं के पास गिरवी रखकर अनेक प्रकार के उपाय किए जाते हैं। इस संसार में ब्राम्हण को गाय, वस्त्र, बर्तन, धन आदि दान करने से स्वर्गवासी आत्मा को शांति मिलती है और यह चमत्कार पुरोहित अपने दम पर करता है, इस प्रकार का पाखंड माहौल समाज में बनाया जाता है। कल्पना से रचे अनगिनत पोथी-पुराणों में ये सारी बकवास और पाखंडी बातें भरी पड़ी हैं।