विकास शर्मा

नील आर्म्सट्रांग को बचपन से ही उड़ने का शौक तो था ही. यह सपना बचपन से पूरा होने भी लगा था. 16 साल की उम्र में ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लायसेंस हासिल किया. नेवी में जाकर कोरिया युद्ध में फाइटर प्लेन उड़ाया. सिविलियन पायलट के रूप में चुने जाने के बाद नासा के अपोलो अभियान सके जरिए चंद्रमा पर पहुंचे.

चांद पर जाने की ख्वाहिश किसकी नहीं होती. बचपन से ही इंसानों के लिए चंद्रमा जैसा चमकिला खगोलीय पिंड बहुत ही आकर्षक लगता है. उसे छूने की ख्वाहिश हर बच्चे की होती है. फिर जब बच्चा थोड़ा सा बड़ा होता है वह उड़ कर चंद्रमा तक पहुंचने के सपने देखता है. हजारों सालों से इंसानों ने चांद पर कदम रखने के सपने को नहीं छोड़ा और फिर 20 जुलाई को यह सपना पूरा किया अमेरिका के नील आर्मस्ट्रांग ने. वे आज भी कई युवाओं के लिए आदर्श हैं जो अंतरिक्ष अनुसंधान में अपना करियर बनाना चाहते हैं. 5 अगस्त को आर्म्सट्रांग के  जन्मदिन है उनकी पहले पायलट और फिर चंद्रयात्री बनने की कहानी कम रोचक नहीं है.

उड़ने का सपना पनपा
नील आर्मस्ट्रॉन्ग का जन्म ओहियो को वापाकाओनेटा में 5 अगस्त 1930 को हुआ था.  उनकी मां का नाम वायला लुई एदेल था. उनके पिता स्टीफन कोयनिंग आर्मस्ट्रांग ओहियो राज्य सरकार में ऑडिटर थे. तीन भाई बहनों में सबसे बड़े नील को बचपन से ही हवा में उड़ने का बहुत शौक था. छह साल की उम्र में उन्हें विमान में उड़ने का अनुभव हुआ. कुछ सालों बाद ही उन्होंने विमान उड़ाने का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया.

फिर सपनों को मिलती गई परवाज
15 साल की उम्र में खुद विमान उड़ाने का अनुभव हासिल कर लिया था. फिर  स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट लेकर ड्राइविंग लाइसेंस पाने से पहले ही  वे पायलट बन गए थे. 17 साल की उम्र में उन्होंने एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की. स्नातक की पढ़ाई पूरी करने से पहले उन्होंने एक साल यूएस नेवी में एविएटर के तौर पर सेवा की.

उड़ानों का अनुभव लेते रहे आर्मस्ट्रांग
1950 में वे उन्होंने पूर्ण क्वालिफाइड नेवल एविएटर का दर्जा लेकर कई तरह की उड़ानों के अनुभव लिया जिसमें फाइटर बॉम्बर भी शामिल था. अगले साल कोरिया युद्ध में टोही विमान भी उड़ाया था. कोरिया युद्ध के बाद वे नील आर्मस्ट्रांग यूनाइटेड स्टेट नेवी रिजर्व में एन्साइन बने. यहां उन्होंने 8 साल 1960 तक रिजर्व मे रहे.

अंतरिक्ष यात्री बनने में बाधा
इस बीच नौसेना से लौट कर आर्मस्ट्रांग ने वापस पुरुडु यूनिवर्सिटी में अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1955 में उन्हें एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में विज्ञान स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली. फिर 1958 में अमेरिकी एयर फोर्स के मैन इन स्पेस सूनेस्ट कार्यक्रम में उनका चयन हुआ पर वह कार्यक्रम ही  रद्द हो गया. नील आर्मस्ट्रांग केवल सिविलयन टेस्ट पायलट ही थे. यानि उनके पास अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए जरूरी योग्यताएं नहीं थी.

फिर किस्मत ने दिया साथ
उनकी किस्मत अच्छी थी कि जब 1962 में प्रोजेक्ट जेमिनी के लिए आवेदन मंगाए तो उसके लिए सिविलयन टेस्ट पायलटों को योग्य माना गया था. सितंबर 1962 को ही उन्हें नासा ने बुला लिया. आर्मस्ट्रांग जल्दी ही नासा एरोनॉट्सकॉर्प के चुन लिए गए. वे इस समूह में चुने गए दो सिविलयन पायलट में से एक थे. इसके बाद जेमिनी अभियान नील को तीन बार अंतरिक्ष गए.

पीछे मुड़कर नहीं देखा
फिर आर्मस्ट्रांग यहां से नहीं रुके, अपोलो-1 अभियान के बाद ही वे 18 अंतरिक्ष यात्रियों के दल में शामिल कर लिए गए जिसे चंद्रमा पर जाना था. अंततः अपोलो-11 के क्रू के लिए भी आर्मस्ट्रॉन्ग को कमांडर चुन लिया गया. बताया जाता है कि इसके पीछे उनके विनम्र स्वभाव की बहुत बड़ी भूमिका थी.

20 जुलाई 1969 को वे चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री बन गए. लेकिन वे लोकप्रियता की चकाचौंध से पूरी तरह से दूर रहे. पृथ्वी पर लौटने के बाद वे दो साल तक नासा में रहे और उसके बाद उन्होंने ओहियो में इंजिनियरिंग का शिक्षण कार्य किया. 1980 में उन्होंने शिक्षण कार्य भी छोड़ दिया. वे हमेशा सार्वजनिक कार्यक्रमों और इंटरव्यू से बचते रहे. 82 साल की उम्र में उन्होंने 25 अगस्त 2012 को ओहियो में अंतिम सांस ली.

    (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )
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