अमृत चंद्र
न्यूरोटेक्नोलॉजी को सपने के सच होने के तौर पर देखा जा रहा है. ये हमारी क्षमताओं को बढ़ाने की संभावनाएं पैदा करता है. इससे हम अपने दिमाग को अपनी इच्छाओं के मुताबिक ढाल सकते हैं. हालांकि, इसके कुछ जोखिम भी हैं. न्यूरोटेक्नोलॉजी एथिक्स एक्सपर्ट्स इसके खतरों के बारे में बात कर रहे हैं.
मॉडर्न टेक्नोलॉजी के जरिये की रफ्तार से आगे बढ़ती दुनिया में हमारा जीवन तेजी से स्मार्ट गैजेट्स के साथ जुड़ता जा रहा है. हमारे चलने पर नजर रखने से लेकर हमारी हृदय गति की निगरानी तक ये गैजेट्स आधुनिक जीवन का खास हिस्सा बन गए हैं. लेकिन, जैसे ही हम भविष्य की ओर देखते हैं, तो हमें पता चलता है कि तकनीक का अगला लक्ष्य हमारे विचारों के क्षेत्र में घुसपैठ करना होगा. न्यूरोटेक्नोलॉजी का तेज विकास हमारे मस्तिष्क की तरंगों को पकड़ने का दावा करता है. ये हमारे विचारों की गोपनीयता को लेकर अपार संभावनाएं और चुनौतीपूर्ण चिंताएं दोनों लाता है.
न्यूरोटेक्नोलॉजी को सपने के सच होने के तौर पर देखा जाता है. ये हमारी संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ाने की आकर्षक संभावनाएं पैदा करता है. इससे हम अपने दिमाग को अपनी इच्छाओं के मुताबिक ढाल सकते हैं. यह हमारी समझ में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है. साथ ही हमारी मानसिक सेहत में बड़े सुधार कर सकता है. हालांकि, गौर से देखने पर हमें न्यूरोटक्नोलॉजी का स्याह पक्ष भी नजर आने लगता है, जो डराने वाला है. न्यूरोटेक्नोलॉजी एथिक्स एक्सपर्ट्स बदलावों को देखते हुए मानव अधिकारों के प्रति हमारे नजरिये के फिर से मूल्यांकन की अपील कर रहे हैं.
न्यूरोटेक्नोलॉजी एथिक्स एक्सपर्ट्स बता रहे खतरे
न्यूरोटेक्नोलॉजी एथिक्स एक्सपर्ट्स हमारी गोपनीयता और विचारों की आजादी के लिए न्यूरोटेक्नोलॉजी के संभावित खतरों पर जोर दे रहे हैं. चीन की हाल में आई कुछ रिपोर्ट्स ने परेशान करने वाली प्रवृत्ति का पता लगाया है. रिपोर्ट के मुताबिक, कर्मचारियों को ब्रेनवेव-स्कैनिंग कैप पहनने के लिए कहा जाता है, जिससे सरकार उनकी भावनात्मक स्थिति का डाटा हासिल कर लेती है. ये सवाल उठाता है कि हमारी सहमति के बिना हमारी भावनाओं और इरादों को किस हद तक उजागर किया जा सकता है.
कुछ गैजेट्स डिकोड कर सकते हैं हमारे विचार
मौजूदा ब्रेनवेव-सेंसिंग उपकरणों का पैमाना और सटीकता अब भी सीमित ही है. उपभोक्ताओं के पहनने लायक गैजेट्स जैसे हेडबैंड या रोजमर्रा की वस्तुओं में एंबेडेड सेंसर हमारी मानसिक स्थिति के पहलुओं जैसे ध्यान, जुड़ाव, तनाव, खुशी या उदासी को डिकोड कर सकते हैं. हालांकि, ये उपकरण हमारे दिमाग को ना तो पढ़ते हैं और ना ही जटिल विचारों को समझ पाते हैं. जब हम सोचते हैं या चीजों का अनुभव करते हैं तो वे हमारे मस्तिष्क में इलेक्ट्रिकल एक्टिविटीज का पता लगाने के लिए इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राफी (ईईजी) जैसी तकनीक पर भरोसा करते हैं.
विचारों और डिजिटल दायरे की धुंधली होती सीमा
शोधकर्ता बुनियादी भावनात्मक डिकोडिंग से आगे निकल गए हैं. स्क्रीन पर दिखाई जा सकने वाली सामग्री के साथ ब्रेनवेव डेटा को जोड़कर वे पर्यावरणीय डेटा को भी ट्रैक कर सकते हैं. ऐसे परिदृश्य की कल्पना करें, जहां विभिन्न दलों के राजनीतिक उम्मीदवारों को ब्रेन सेंसर गैजेट्स पहनाकर एक स्क्रीन पर पेश किया जाता है. यह संभावित तौर पर खास पार्टियों के लिए किसी व्यक्ति की प्रतिक्रियाओं को कैटेगरीज में बांट सकता है. हमारे व्यक्तिगत विचारों और डिजिटल दायरे के बीच की सीमा धुंधली हो रही है, जिससे हमारी संज्ञानात्मक गोपनीयता की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं.
क्या इस तकनीक से निजी नहीं रहेंगे हमारे विचार
दुनियाभर की प्रमुख तकनीकी कंपनियां साल 2025 तक संवर्धित और आभासी वास्तविकता के बीच इंटरैक्शन में क्रांति लाने की योजना के साथ रोजमर्रा के उपकरणों में ब्रेन सेंसर को इंटीग्रेट करने की दिशा में प्रगति कर रही हैं. हालांकि, ये इनोवेशन रोमांचक अवसर भी उपलब्ध कराते हैं. ये एक ऐसे भविष्य की राह खोलते हैं, जहां हमारे विचार निजी नहीं रह जाएंगे. ब्रेनवेव पैटर्न को डिकोड करने की क्षमता के साथ एक ऐसी दुनिया की कल्पना करना दूर की कौड़ी नहीं है, जहां हमारे बारे में छोटे से छोटा ब्योरा भी उजागर हो सकता है.
दिमाग को निजी रखने का मौलिक मानवाधिकार
न्यूरोटेक्नोलॉजी के दौर में लोगों की मानसिक गोपनीयता की रक्षा करना बेहद महत्वपूर्ण है. इनोवेशन में प्रगति और नैतिक विचारों के बीच संतुलन बनाए रखना काफी अहम होता है. हमें न्यूरोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र यह सुनिश्चित करते हुए आगे बढ़ना चाहिए कि हमारे विचार हमारे अपने ही बने रहें. इस तकनीक को आगे बढ़ाते समय अपने दिमाग को निजी रखने के मौलिक मानवाधिकार का सम्मान करना अनिवार्य है.