विकास शर्मा
एक नई स्टडी में एक साइंटिस्ट ने प्रयोगों के जरिए यह जानने का प्रयास किया कि बिल्लियां कितना लचीलापन दिखा सकती हैं. प्रयोग के नतीजों में पाया गया है कि वे एक तरह पदार्थ की बर्ताव करती हैं और खुद को बहुत छोटे छेद से भी आसानी से निकाल सकती हैं.
आपको बिल्ली कितना ज्यादा नाजुक लगती हैं? क्या कभी आपको उनका बर्ताव पानी की तरह लगा है. जी हां पर क्या इससे ये साबित होता की वे तरल पदार्थ की तरह की हैं. या तरल की तरह बर्ताव करती हैं. हम बिल्लियों को तो अक्सर तरल वस्तु के रूप में सोच सकते हैं और सोचते भी हैं. लेकिन सच ये भी है कि उन्हें भी अपनी इस काबिलियत का खासा अहसास है. पर अब साइंस ने अब इसे प्रभावी रूप से साबित कर दिया है. वे व्यवहारिक तौर पर एक तरह से तरल ही होती हैं.
छोटे छेदों से गुजर जाती हैं
जब बिल्लियों को एक के बाद एक छोटे छेदों की एक सीरीज का सामना करना पड़ता है, तो वे तरल की तरह अपना रास्ता बनाने में सक्षम होती हैं. वहीं जब छेद आराम के लिए बहुत छोटा होता है तो वे झिझकती हैं. यह सुझाव देता है कि तरल पदार्थों के कुछ गुणों को दिखाने के साथ-साथ, बिल्लियों में अपने आकार के बारे में खुद को ही अलग तरह का अहसास होता है.
रिसर्च में हुई इस काबिलियत की पड़ताल
हंगरी में ईटवोस लोरैंड विश्वविद्यालय के एथोलॉजिस्ट पीटर पोंगराज़ ने यह पड़ताल की और नतीजे हासिल किए. यह खोज बिल्ली की आत्म-भावना के बारे में हमारी समझ को बढ़ाती है. यह किसी विशेष प्रजाति की संज्ञानात्मक क्षमताओं का आकलन करते समय एक महत्वपूर्ण तरीका है.
क्या पहले भी हो चुकी है इस तरह की रिसर्च?
ऐसा नहीं है कि बिल्लियों की तरलता पहले विज्ञान की नज़र में नहीं थी. 2014 में, भौतिक विज्ञानी मार्क-एंटोनी फर्डिन के एक पेपर ने दिखाया कि, समय के साथ, बिल्लियां उन कंटेनरों के आकार के अनुरूप रिसती हैं जिनमें वे रहती हैं. यह एक तरह से बिल्लियों को बिना आकार के ठोस पदार्थों की श्रेणी में रख सकता है. ऐसे आकार न तो पूरी तरह से ठोस होते हैं और ना ही पूरी तरह से तरल होते हैं.
प्रयोग की चुनौती
बिल्लियों का अध्ययन करना थोड़ा कठिन है, क्योंकि वे बहुत अड़ियल होती हैं. कुत्ते इंसानों की उनसे कही गई चीज़ों को करने में बहुत खुश होते हैं, लेकिन बिल्लियां केवल वही करती हैं जो वे चाहती हैं. और बिल्लियों को प्रयोगशाला सेटिंग पसंद नहीं है.
कैसे किया प्रयोग
इसलिए, पोंगराज़ ने बिल्लियों के लिए अधिक आरामदायक वातावरण के अनुकूल एक प्रयोग तैयार किया, बुडापेस्ट में उनके अपने घरों में उन्हें उनके कामों के लिए ले गए. सेटअप में कटे हुए छेद वाले बोर्ड शामिल थे, पहली सीरीज में अलग-अलग चौड़ाई थी, और दूसरी में अलग-अलग ऊंचाई थी. चयनित 38 बिल्लियों में से केवल 30 ने ही वास्तव में प्रयोग पूरा किया, लेकिन उनकी भागीदारी के परिणाम बहुत ही स्पष्ट थे.
क्या रहा बिल्लियों का बर्ताव
अधिकांश छेदों के लिए, बिल्लियां बिना किसी हिचकिचाहट के दूसरी तरफ़ अपने मालिक के पास पहुंच गईं, तब भी जब छेद उनके शरीर की चौड़ाई का आधा था. लेकिन, अलग-अलग ऊंचाई के पैनलों के लिए, अगर छेद उनके कंधों की ऊंचाई से छोटा था, तो बिल्लियां हिचकिचाहट दिखाती थी. ऐसे में वैकल्पिक समाधान भी तलाशती थीं. यह व्यवहार लंबी बिल्लियों में ज्यादा दिखा. यह सुझाव देता है कि शरीर के आकार के बारे में जागरूकता निर्णय लेने में एक भूमिका निभाती है.
क्या रहे नतीजे
ये नतीजे बताते हैं कि बिल्लियां छेद के बड़े या छोटे होने और छेद की ऊंचाई को अलग-अलग तरीके से समझती हैं. पोंग्राज़ लिखते हैं, “नतीजे से संकेत मिलता है कि बिल्लियों को एक लंबे लेकिन संकीर्ण छेद से खुद को निचोड़ने की तुलना में, एक छोटे छिद्र से रेंगना अधिक कठिन लग सकता है. उनकी खास शारीरिक विशेषताएं इस सिद्धांत का समर्थन करती हैं.” “इसके अलावा, बिल्लियां अधिक सावधानी से व्यवहार कर सकती हैं जब उन्हें बहुत छोटे छेद में अपना आसन नीचे करना पड़ता है, क्योंकि वे इस हालत में अधिक असुरक्षित महसूस कर सकती हैं.” शोध iScience में प्रकाशित हुआ है.
(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )