विकास शर्मा

शहीदे आजम भगत सिंह की जयंती एक ऐसा अवसर है जब यह जाना और समझा जाना चाहिए कि कैसे एक व्यक्ति ने भारत के लोगों को देश के प्रति खास तरह की जागरूकता पैदा करने के लिए क्रांतिकारी होते हुए भी बलिदान का एक अनोखा रास्ता चुना और उनकी सोच किस तरह के विचारों से प्रभावित थी क्या वे कम्युनिस्ट थे, मार्कवादी थे, सोशलिस्ट थे या सिर्फ के देशभक्त राष्ट्रवादी क्रांतिकारी.

इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अद्भुत योगदान देने वाले क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह केवल अंग्रेजों से बदला लेने वाले सशस्त्र क्रांतिकारी नहीं थे. कई ऐसे मौके आए हैं जब पता चलता है कि वे केवल भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के अलावा भी बहुत कुछ चाहते थे. कुछ लोग उन्हें राष्ट्रवादी क्रांतिकारी कहना पसंद करते हैं तो कुछ का कहना है कि उनकी सच पूरी तरह से कम्युनिस्ट हो चुकी थी तो कुछ उनके सोशलिस्ट होने का दावा करते हैं. सच ये है कि उन्हें आज के दौर की तरह किसी एक विचार धारा से बांधना सही नहीं होगा. लेकिन यह समझना और जानना भी जरूरी है कि उनकी सोच पर किस तरह के विचारों का प्रभाव था और वे खुद को कैसा दर्शाना चाहते थे.

शोध का विषय
सरदार भगत सिंह केवल एक शस्त्र उठाने वाले क्रांतिकारी ही नहीं थे. उनकी देशभक्ति और देश के युवाओं को प्रभावित करने वाली विचारधारा पर आज भी शोध का विषय है. बचपन से ही उन्हें अंग्रेजों के जुल्म देखे ते देशभक्त क्रांतिकारियों के बीच रहने से उनके मन में अंग्रेजों के बुरे बर्ताव की जानकारी मिलती रही जिससे उनके मन में अंग्रेजों के प्रति गुस्सा पनपा. लेकिन उनके मन में अंग्रेज के प्रति गुस्से से कहीं ज्यादा देश प्रेम और आजादी पाने की लालसा थी.

देशभक्त परिवार में जन्म
भगत सिंह का जन्म पंजाब के लयालपुर के बांगा (अब पाकिस्तान में) गांव के एक सिख परिवार में 28 सितंबर 1907 को हुआ था. एक धारणा के मुताबिक उनकी जन्मतिथि 27 सितंबर को मानी जाती है. उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था. पिता किशन सिंह अंग्रेजों और उनकी शिक्षा को नापसंद करते थे. उनके चाचा खुद एक क्रांतिकारी थे. भगत सिंह  की शुरुआती पढ़ाई बांगा में गांव के स्कूल में हुई. इस बाद लाहौर के दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूल में उनका  दाखिला कर दिया गया.

मां से मिली थी देशभक्ति की सोच
भगत सिंह के मन में आजादी और देश प्रेम के सोच सबसे पहले उनकी मां से मिली थी. उनके बाल मन में पिता और चाचा के बीच बातचीत को लेकर सवाल उठते थे. ऐसे में उनकी मां ही उनकी सारे सवालों का जवाब दिया करती थीं. मां की शिक्षाएं और उनके प्रति प्रेम भगत सिंह केपूरे जीवनकाल में दिखाई देता रहा.

खास लोगों का असर
भगत सिंह लाला लालपत राय को बहुत मानते थे. लालाजी का भी भगतसिंह को बहुत ही स्नेह दिखाया करते थे. लालाजी एक तरह से भगत सिंह के परिवार के सदस्य के ही तरह थे. लालाजी की आर्यसमाजी सोच का असर भी भगतसिंह पर देखने को मिलता था. वहीं चाचा अजीत सिंह के संपर्क में आने से उन्हें गदर आंदोलन की जानकारी मिली थी. गांधी के विचार असहयोग आंदोलन से काफी पहले देश भर में फैल रहे थे. लेकिन जलियांवाला बाग हत्याकांड ने तो जैसे भगतसिंह के लिए अहिंसा के सारे रास्ते बंद कर दिए.

क्रांतिकारियों के रास्ते पर
गांधी जी के असहयोग आंदलोन के वापस लिए जाने का भगत सिंह पर वैसा ही असर हुआ है जैसा कि उस दौर के युवाओं पर हुआ और उन्होंने भी क्रांतिकरियों का रास्ता अपनाते हुए सचिंद्रनाथ सान्याल और राम प्रसाद बिस्मिल की हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) की सदस्यता ले ली. जिसकी कोई विशेष विचारधारा नहीं थी, बल्कि अंग्रेजों से आजादी हासिल करने की तीव्र छटपटाहट थी.

रूसी क्रांति ने जगाई थी उम्मीदें
1924 में  रूस में बोल्शेविक क्रांति ने देश के बहुत क्रांतिकारियों को आकर्षित किया उन्हें लगा कि क्रांति हासिल करने का यह एक कारगर तरीका है. भगत सिंह सहित बहुत से लोग दिल्ली में जमा हुए और उन्होंने 1928 में अपने संगठन का नाम एचआरए से हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) रख लिया, हालांकि काकोरी ट्रेन एक्शन के बाद संगठन नाम बदलने की भी जरूरत पैदा हो गई थी.

इससे पहले भगत सिंह ने अक्टूबर क्रांति और लेनिन के बारे में काफी कुछ पढ़ा था और उससे प्रभावित भी रहे. वे कई मौकौं पर राष्ट्रवाद, अराजकता, अहिंसा, आतंकवाद, धर्म, धार्मिकता और सम्प्रदायवाद की आलोचना की थी. वे अपने अध्ययन से इस नतीजे पर पहुंचे थे कि एक क्रांतिकारी के लिए तार्किकता और स्वतंत्र विचारशीलता बहुत जरूरी है. इसी वजह से उन्हें ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकारने में संकोच जाहिर किया और अज्ञानता के खिलाफ संघर्ष की पैरावी की. वे बचपन में एक आर्यसमाजी के तौर पर गायत्री मंत्र पढ़ा करते थे, लेकिन बाद में आदर्शवादी क्रांतिकारी, फिर मार्क्सवादी बनते हुए एक विचारधारा के बंधन से मुक्त क्रांतिकारी हो गए थे.

     (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )

 

Spread the information