माइकल एंजिलो इटली के एक प्रसिद्ध मूर्तिकार, चित्रकार, वास्तुकार, और उच्च पुनर्जागरण के तौर के प्रख्यात कवि थे. लॉरेटियन पुस्तकालय में मेनेरनिस्ट शैली की डिजाइन उन्हीं की देन थी. वे पहले ऐसे पश्चिमी कलाकार थे जिसकी जीवनी उसी के जीवनकाल में ही छप गई थी और वह भी एक नहीं बल्कि दो जीवनियां प्रकाशित हुई थीं. उनके बाद कलाओं में हमेशा ही हर कलाकार की उत्कृष्टता का पैमाना माइकल एंजिलो ही थे.
अमेरिका के गांधी कहे जाने वाले मार्टिन लूथर किंग जूनियर का एक प्रसिद्ध वक्तव्य है, “अगर किसी आदमी को सड़क साफ करने को कहा जाए तो उसे सड़क ऐसे साफ करनी चाहिए जैसे माइकल एंजेलो ने पेंटिंग की थी, बिथोविन ने संगीत दिया था… उसे सड़क ऐसे साफ करनी करनी चाहिए कि अगर देवता भी वहां से गुजरें तो गर्व से कहें कि यहां वह व्यक्ति रहता है जो बहुत शानदार तरीके से सड़क साफ करता है.” इस कथन में माइकल एंजेलो ने का जिक्र है. 6 मार्च को इटली के इस महान कलाकार की जन्मतिथि है. आइए, जानते हैं कि माइकल एंजेलो महान क्यों माने जाते हैं और वे अपने समकालीनों से कितने अलग या विशेष थे.
कई कलाओं के धनी
माइकल एंजिलो इटली के एक प्रसिद्ध मूर्तिकार, चित्रकार, वास्तुकार, और उच्च पुनर्जागरण के तौर के प्रख्यात कवि थे. उन्हें उनके जीवनकाल का सबसे महान कलाकार तो माना ही जाता था. बल्कि वे सर्वकालिक महान कलाकारों की श्रेणी में अब भी रखे जाते हैं. उनका जिस विषय में भी दखल था बहुत ही गहरा था यह तक कि पुनर्जागरण के दौर के लियोनार्डी दा विंची से भी उनकी तुलना की जाती थी और उसने कभी उन्हें कम भी नहीं माना जाता था.
पीढ़ियों से बैंकर था परिवार
माइकल एंजेलो डि लोडोविको बुआना रोत्ती का जन्म 6 मार्च 1475 को एरेजो टस्कानी के पास वाल्तिबेरेनिया स्थित कैपेरेस, जिसे आज कैपेरेस माइकल एंजिलो कहा जाता है, नाम के गांव में हुआ था. कई पीढ़ियों तक उनका परिवार फ्लोरेंस में एक छोटे बैंक का संचालन करता था. बैंक के नाकाम होने पर उनके पिता लुडोविको डी लियोनार्डो बुोनारोतोसी सिमोनी कुछ समय एक सरकारी पद पर रहे. छह साल की उम्र में ही उनकी मां का साया उनके सिर से उठ गया था.
चित्रकारी और पत्थरों से वास्ता
माइकल का बचपन फ्लोरेंस में ही बीता. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा में कोई रुचि नहीं दिखाई लेकिन चर्चों से चित्रों की प्रतिलिपि बनाने और चित्रकारों के साथ रहना खूब पसंद किया. पिता की संगमरमर की खदानें थी जिससे उनकी पत्थरों में भी जल्दी ही दिलचस्पी पैदा हो गई थी फ्लोरेंस शहर उस समय कला व अघ्ययन का इटली में सबसे बड़ा केंद्र पहले से ही था जिसका फायदा माइकल एंजिलो को मिला.
जल्दी ही मिली शोहरत
उन्हें एक मूर्तिकार के तौर पर जल्दी ही पहचान मिल गई. उसने शुरुआती श्रेष्ठ कार्यों ने उन्हें बहुत प्रसिद्धि दलाई. पेइटा और डेविड नाम की उनकी मशहूर मूर्ति उन्होंने 30 साल की उम्र में ही बना दी थी. एक महान चित्रकार होने के बाद भी माइकल एंजेलो खुद को एक चित्रकार कभी नहीं माना. रोम में सिस्टिन चैल की छत पर जेनेसिस का दृश्य और उसकी वेदी की दीवार पर द लास्ट जजमेट की भित्तीचित्रों का निर्माण किया जिसे देखने के लिए आज भी दूर दूर से लोग आते है.
जीवनकाल में ही दो जीवनियां
माइकल एंजेलो अपने युग की कलाओं को नई ऊंचाइयां देने का काम किया है. लॉरेटियन पुस्तकालय में मेनेरनिस्ट शैली की डिजाइन उन्हीं की देन थी. वे पहले ऐसे पश्चिमी कलाकार थे जिसकी जीवनी उसी के जीवनकाल में ही छप गई थी और वह भी एक नहीं बल्कि दो जीवनियां प्रकाशित हुई थीं. उनके बाद कलाओं में हमेशा ही हर कलाकार की उत्कृष्टता का पैमाना माइकल एंजिलो ही थे.
पिएटा और डेविड
माइकल एंजेलो की मूर्तियों में से पिएटा में वर्जिन मेरी” को यीशु के शव के सामने शोक मनाते हुऐ दिखाया गया है। माइकल एंजेलो “पिएटा” के निर्मीत होने पर 24 साल की उम्र के थे. पिएटा को जल्दी ही दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक माना जाने लगा था. इसके अलावा डेविड नाम की कलाकृति एक नग्न पुरुष की है जो आत्मविश्वास के साथ खड़ा है. इस मूर्ति की बारीकियां और सटीकता काबिले तारीफ है जिसकी वजह से यह सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक मानी जाती है.
1505 में, रोम के नए पोप जूलियस द्वितीय ने बुलाया और पोप के मकबरे के निर्माण का आदेश माइकल एंजेलो को दिया. इसमें चालीस मूर्तियों को पांच सालों में बनाया जाना था. माइकल एंजेलो ने मकबरे पर 40 साल तक काम किया था, लेकिन वे तब भी अपने काम से संतुष्टि नहीं हुए थे. इसी दौरान उन्होंने सिस्टिन चैपल की छत को चार साल में चित्रित किया था. इतनी प्रसिद्धि और अमीरी होने के बाद भी माइकल एंजिलो एक गरीब आदमी की ही तरह रहते थे और उन्हें अकेलापन ज्यादा अच्छा लगता था. वे खुद को साधारण व्यक्ति ही मानते थे. उनका कहना था कि अगर लोगों को पता चल जाए कि उन्हें अपने काम के लिए कितनी मेहनत की है तो लोग उनकी तारीफ करना छोड़ देंगे.
(‘न्यूज 18 हिन्दी’ से साभार )