विकास शर्मा
मेघनाद साहा ऐसे वैज्ञानिक थे जिनका बचपन बहुत ही गरीबी के कारण संघर्षपूर्ण रहा और वे अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर खगोल विज्ञान के एक महान वैज्ञानिक बने. उनका नाम के साहा समीकरण वैज्ञानिकों को तारों के वर्गीकरण में मददगार होती है. इसके अलावा उन्होंने भारत में बहुत से वैज्ञानिक संस्थानों के स्थापना करवाई और वे भारत के नदी परियोजनाओं के नियोजन में भी योगदान दिया था.
आधुनिक भारत के इतिहास में कई महान वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होंने साधारण परिस्थितियों में ही बड़ी उपलब्धियां साहिल की हैं. उन्हें बचपन से ही परिवार की गरीबी के कारण पढ़ने में संघर्ष करना पड़ा था, लेकिन पढ़ाई में रुचि और मेहनत के दम पर वे आगे बढ़ते रहे और विज्ञान की दुनिया में अपना नाम कमाया. उन्होंने खुद को विज्ञान के अध्ययन तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि देश में विभिन्न विज्ञान संबंधी संस्थानों और सोसाइटी आदि की स्थापना की और देश में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, औद्योगिकरण और नदी घाटी परियोजनाओं के नियोजन कार्य में भी योगदान दिया. उनका जीवन देशे के बच्चों और युवाओं के लिए एक प्रेरणा, एक मिसाल है.
गरीब परिवार में जन्म
मेघनाद साहा का जन्म 6 अक्टूबर 1893 को ब्रिटिश इंडिया की बंगाल प्रेसिंडेंसी के ढाका जिले के शिओरतोली गांव में हुआ था जो आज के बांग्लादेश के गाजीपुर जिले के कालियाकैर उपजिला में पड़ता है. उनके पिता जगन्नाथ साहा पंसारी की दुकान चलाते थे. उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था. वे आठ भाई बहनों में पांचवी संतान थे.
शिक्षा के लिए संघर्ष
घर का परिवार बड़ा होने के कारण साहा को गरीबी के कारण बचपन में बहुत ही संघर्ष करना पड़ा था. इस कारण उनके भाई बहनों को स्कूल की पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. उन्हें या तो पिता की दुकान चलाने में मदद करनी होती थी या पिर फैक्ट्री में मजदूरी करनी पड़ी थी. लेकिन इन हालात के बावजूद साहा की किस्मत में कुछ और लिखा था.
बड़े भाई की मदद
पढ़ाई में होशयार होने के कारण साहा को गरीबी डिगा नहीं सकी. प्राथमिक शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने महसूस किया कि पास के माध्यमिक शाला के लिए उन्हें रोज करीब 10 किलोमीटर की यात्रा करनी होगी. लेकिन जब उनके बड़े भाई जयनाथ ने उनकी पढ़ाई में रुचि देखी, उन्होंने उनके रहने और पढ़ाई का खर्चा उठाने का फैसला किया.
पढ़ाई में नहीं आने दी रुकावट
अनंत कुमार दास के डॉक्टर ने उन्होंने इस शर्त पर अपने घर रहने दिया कि वे उनकी घरेलू कार्यों में मदद करेंगे. साहा ने गायों की देखभाल करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1905 में ढाका जाकर सिटी कॉलिगेट स्कूल में दिखिला लिया. यहां भी उनके भाई जगन्नाथ ने मदद की और अपने 20 रुपये की मासिक तनख्वाह में से पांच रुपये भाई को देने शुरू किए. तमाम संघर्षों के बाद भी वे हमेशा अच्छे नतीजे लाते रहे.
बीएससी से डॉक्टर ऑफ साइंस
साहा ने 1911 में इंटर की परीक्षा पास की और फिर प्रेसिडेंसी कॉलेज से जुड़े जहां उन्हें प्रफुल्ल चंद्र रे और जगदीश चंद्र बसु ने पढ़ाया. गणित में बीएससी करने के बाद उन्होने एप्लाइड गणित में कलकत्ता यूनिवर्सिटी से एमएससी की. 1916 में साहा कलकत्ता के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंस में एप्लाइड मैथेमैथिक्स विभाग में लेक्चरर नियुक्त हुए. इसके बाद 1919 में उन्होंने डॉक्टर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की और फिर तारकीय स्पैक्ट्रम की वर्गीगरण के निबंध के लिए उन्हें प्रेमचंद रायचंद स्टूडेंटशिप प्रदान की गई.
इस स्कॉलरशिप के कारण साहा को दो साल के लिए यूरोप जाने का मैका मिला, लंदन में ब्रिटिश खगलोविद एल्फ्रेड फाउसलर के साथ कुछ दिन बिताने का बाद वे बर्लिन चले गए. जहां उन्होंने नेबोल पुरस्कार विजेता वाल्दर नेर्नेस्ट के साथ काम किया. 1923 में वे इलाहबाद यूनिवर्सिटी में भौतिकी के प्रोफेसर बने जहां वे 15 साल तक काम करते रहे. इसी दारन उनके थर्मल आयनाइजेशन समीकरण को मान्यता मिली.
साहा को सबसे अधिक उनकी थर्मो आयोनाइजेशन समीकरण के लिए जाना जाता है जो साहा समीकरण के नाम से जानी जाती है. इसके जरिए वैज्ञानिक स्पैक्ट्रम के आधार पर तारों का वर्गीकरण कर सकते हैं. साहा ने 1952 में उत्तर पश्चिम कलकत्ता से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा और जीत कर सासंद भी बने इसके बाद उन्होंने देश के लिए शिक्षा, शरणार्थी, पुनर्वास, परमाणु ऊर्जा , बहुउद्देशीय नदी परियोजनाओं, बाढ़ नियंत्रम और दूरगामी नियोजन जैसे क्षेत्रों में भी योगदान दिया.