विकास शर्मा
राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस के मौके पर भारत में इस साल “वैक्सीन वर्क फॉर एवरीवन” थीम रखी गई है जिससे देश का टीकाकरण तंत्र को और ज्यादा कारगर बना कर यह सुनिश्चित किया जा सके कि जरूरी टीके देश के हर शिशु और बच्चे को लग रहे हैं और इस कार्य मे लगे लोगों की अहमियत को जनता समझ सके.
इंसान के सेहतमंद रहने के कई पहलू हैं. एक तो वह ऐसा जीवन जिए जिससे उसे कोई रोग ही ना हो यह सीधा लाइफस्टाइल से संबंधित है. दूसरा पहलू है रोग और उसका इलाज. किसी भी रोग से निपटने के भी दो तरीके होते हैं. एक तो उसका उपचार है जिसमें दवा देकर रोग ठीक किया जा सके. वहीं दूसरे तरीके में शरीर को इतना ताकतवर बनाया जाया कि वह खुद ही अपनी प्रतिरोधक क्षमता के बल पर रोग से लड़ सके. इसमें एक कारगर उपाय वैक्सीन है. 16 मार्च को भारत में राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस मनाया जा रहा है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन तक बहुत अहमियत देता है.
कोविड महामारी के खास सबक
टीकाकरण की अहमियत एक बार फिर हाल ही में दुनिया को समझ में आई जब उसके जरिए दुनिया को कोविड-19 जैसी महामारी से बचाया जा सकता है. इस लाइलाज वायरस संक्रमण से लड़ने की इंसान के पास पहले से ही कारगर क्षमता नहीं थी और जानकारी के अभाव में लाखों करोड़ों लोगों की जान चली गई. लेकिन महामारी के टीकों ने दुनिया को इससे उबरने में बहुत मदद की और हमें कई अहम सबक भी.
क्यों मनाया जाता है यह दिवस
लेकिन हमें यह बात ध्यान में रखनी होगी कि कोविड-19 केवल एक उदाहरण है. हर साल 16 मार्च को देश में राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस जिसे राष्ट्रीय प्रतिरोध क्षमता दिवस भी कहते हैं, इसको मनाने का उद्देश्य देश में टीकाकरण की प्रकिया और उसके तंत्र के महत्व को पहचानना और उसके ज्यादा कारगर बनाने की दिशा में प्रयास करना है.
टीके और उसकी जागरूकता का महत्व
दुनिया सहित भारत में भी नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों को कई खतरनाक बीमारियों के टीके लगाए जाते हैं लेकिन टीकाकरण की सुविधा भारत जैसे देश में हर शिशु और बच्चे तक पहुंचाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है. कोविड महामारी ने हमें सिखाया है कि इसी वजह गरीबी उतनी नहीं है जितनी की जागरूकता और शिक्षा क्योंकि कई शिक्षित और आर्थिक रूप से सक्षम लोग भी कोविड के टीके के प्रति असंवेदनशील और लापरवाह देखे गए हैं.
क्या है उद्देश्य
राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का उद्देश्य एक ऐसा शक्तिशाली और कारगर तंत्र विकसित करना है जिससे सभी बच्चों और शिशुओं को सभी जरूरी टीके लगना सुनिश्चित किया जा सके. सौभाग्य से भारत का इस मामले में रिकॉर्ड, सौ फीसद लक्ष्य हासिल ना करने के बाद भी, बहुत अच्छा है. हमारे देश के टीकाकरण काफी सफल रहे हैं जो दुनिया के कई बड़े देशों के लिए भी एक सबक है.
भारत की सफलता
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत ने साल 2017 से 2020 के बीच 32.4 करोड़ बच्चों को एमआर टीकाकरण किया है जिससे देश में मिजील्स और रेबुला बीमारी का उन्मूलन हो सके. टीकाकरण मूल रूप से संक्रमित रोगों को फैलने से रोकने के लिए शरीर के प्रतिरोधी क्षमता को ताकतवर बनाने के किया जाता है. हर रोग का अलग टीका या वैक्सीन होती है. इससे शरीर के प्रतिरोधी तंत्र को एक तरह का प्रशिक्षण मिलता है कि वह अमुक रोग से कैसे लड़े.
कैसे काम करता है टीका
टीके शरीर में संक्रामक रोगाणु को पहचानने की क्षमता विकसित करने के लिए होते हैं जिससे शरीर उससे लड़ने मे सक्षम हो सके इसके लिए टीका शरीर में एंटीबॉडी बनाता है. लेकिन चूंकि टीके में केवल कमजोर या मृत रोगाणु होते हैं उससे शरीर संक्रमित नहीं होता है. टीका दवाई या उपचार से कई गुना बेहतर होता है क्योंकि इससे इंसान की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है.
इस साल देश में राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस की थीम, “वैक्सीन वर्क फॉर एवरी”वन यानी “टीका हरएक के लिए काम करे” रखी गई है. इसके तहत इस बात पर जोर दिया जाएगा कि लोग समझें कि टीका कैसे बनता, उसे कौन लोग बनाते हैं, सभी तक उसे पहुंचाने में किन लोगों की भूमिका होती है और उसका महत्व बहुत ही ज्यादा क्यों होता है क्योंकि टीकाकरण का लक्ष्य पूरा होने में जरा सी कमी पूरी मेहनत को बेकार कर सकती है.
(‘न्यूज 18 हिन्दी’ से साभार )