डी एन एस आनंद

साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड द्वारा राष्ट्रीय वैज्ञानिक चेतना अभियान के तहत आयोजित ऑनलाइन विचार गोष्ठी ‘युवा संवाद’ 19 मई को संपन्न हो गई।
गोष्ठी का विषय था – ‘बच्चों और युवाओं के साथ संवाद : क्या और कैसे ? हमारे अनुभव और सुझाव”. उल्लेखनीय है कि यह भारतीय संविधान का 75वां वर्ष है तथा साइंस फॉर सोसायटी झारखंड इसे वैज्ञानिक चेतना वर्ष के रूप में मना रही है। इसके तहत विभिन्न समसामयिक विषयों पर राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन किया जा रहा है तथा यह इसकी तीसरी कड़ी थी जिसमें देश के विभिन्न राज्यों/भागों में, बच्चों एवं युवाओं के बीच लम्बे समय से कार्यरत संगठनों के प्रतिनिधियों ने चर्चा में भाग लेकर अपने अनुभवों को साझा किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ अली इमाम खां, (प्रमुख शिक्षाविद एवं विज्ञान संचारक), अध्यक्ष साइंस फॉर सोसायटी झारखंड ने की तथा समन्वयन एवं संचालन डी एन एस आनंद, महासचिव साइंस फॉर सोसायटी झारखंड ने किया।
वक्ता पैनल में शामिल थे विकास कुमार (मीडियाकर्मी एवं सोशल एक्टिविस्ट) जमशेदपुर, झारखंड
निसार अली (नाचा शैली के प्रमुख लोक कलाकार, गायक, अभिनेता, इप्टा नाचा थिएटर) रायपुर, छत्तीसगढ़, डॉ कुमारी निमिषा (वरिष्ठ विज्ञान संचारक,
असिस्टेंट प्रोफेसर, साइंस फॉर सोसायटी, बिहार)
अरविंद तिवारी, वरिष्ठ शिक्षक, प्रमुख जन संचारक, जमशेदपुर झारखंड, निकिता सिंह, रिसर्च इंटर्न, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी वाराणसी उत्तर प्रदेश एवं नितीशा खलखो असिस्टेंट प्रोफेसर बी एस के कॉलेज मैथन धनबाद झारखंड।

विषय प्रवेश के तौर पर डी एन एस आनंद ने भारत में जन विज्ञान आंदोलन की पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए 1987 के देश व्यापी भारत जन ज्ञान विज्ञान जत्था के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क (AIPSN) के राष्ट्रीय वैज्ञानिक चेतना अभियान की चर्चा करते हुए कहा कि मौजूदा हालात में जब अवैज्ञानिक सोच, अंधश्रद्धा, अंधविश्वास को विज्ञान सम्मत कहकर पेश किया जा रहा है तथा इसे सत्ता व्यवस्था का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष समर्थन हासिल है, यह जरूरी है कि लोगों के बीच वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा लोकतांत्रिक चेतना के विकास एवं विस्तार के लिए हर संभव प्रयास किया जाए। उन्होंने कहा कि देश में अवैज्ञानिक सोच को बढ़ावा एवं संरक्षण भारतीय संविधान की भावना के विरुद्ध है, जिसने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास को, देश के सभी नागरिकों का मौलिक कर्तव्य निरूपित किया है।

विकास कुमार

चर्चा की शुरुआत करते हुए मीडियाकर्मी विकास कुमार ने मौजूदा, तेजी से बदलते, दौर में युवाओं के साथ संवाद को बेहद जरूरी बताया। उन्होंने इस दिशा में सामाजिक परिवर्तन शाला द्वारा ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी एवं वंचित समूहों के युवाओं के बीच लगातार आयोजित की जा रही प्रशिक्षण शिविरों की जानकारी दी तथा इससे मिले अनुभवों को साझा किया। उन्होंने कहा कि संवाद बच्चों की रुचि एवं स्तर को ध्यान में रखते हुए हो तथा अधिक सुनाने की बजाए धैर्य पूर्वक उन्हें सुना जाना चाहिए। उन्होंने क्रिएटिविटी एवं तकनीकी दक्षता पर जोर देते हुए कार्यक्रम की निरंतरता पर जोर दिया। उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों एवं युवाओं के बीच संवादहीनता की स्थिति को चिंता जनक बताया तथा गतिविधियों में मौजूद कमियों को दूर करने तथा युवा नेतृत्व विकास पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत बताई।

निसार अली

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए छत्तीसगढ़ के नाचा शैली के प्रमुख लोक कलाकार निसार अली ने कहा कि दरअसल आज बाजार के लिए विज्ञान का बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है। देश में सामाजिक सद्भाव बढ़ाने वाले राष्ट्रीय पदयात्रा कार्यक्रम,”ढ़ाई आखर प्रेम” के अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने सार्थक बदलाव के लिए लोगों के बीच जाने तथा लोगों से सीखने पर बल दिया।‌ उन्होंने कार्यक्रम को सरल, सहज, रुचिकर बनाने पर जोर देते हुए संदेश के लिए तैयार की जाने वाली सामग्री पर खास ध्यान देने को कहा तथा छोटी छोटी क्रिएटिव एक्टिविटी एवं सांस्कृतिक जत्थों के जरिए अधिकाधिक लोगों तक जाने पर बल दिया। उन्होंने इस दिशा में कार्यरत विभिन्न संगठनों, लोगों के बीच आपसी संवाद बढ़ाने एवं अनुभव साझा करने के लिए इस प्रकार के और अधिक कार्यक्रम के आयोजन पर बल दिया।

डॉ कुमारी निमिषा

कार्यक्रम की अगली वक्ता थीं पटना, बिहार की वरिष्ठ विज्ञान संचारक, असिस्टेंट प्रोफेसर एवं साइंस फॉर सोसायटी, बिहार से जुड़ी डॉ कुमारी निमिषा। उन्होंने कहा कि हम बच्चों को समझ नहीं पाते, पढ़ाई को महत्व देते हैं पर उनकी रचनात्मक क्षमता के विकास की अनदेखी करते हैं। दरअसल बच्चों की रूचि को समझने एवं उस पर ध्यान दिए जाने एवं उनका विश्वास जीतने की जरूरत है। विज्ञान को रटने नहीं समझने की जरूरत है तथा इस मामले में गार्जियन का सपोर्ट जरूरी है। उन्होंने काउंसिलिंग की जरूरत एवं उनके मेंटल हेल्थ पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि बदलते दौर के साथ युवाओं की पढ़ने से दूरी बनी, उसमें रुचि कम हुई पर विडियो देखने की ललक बढ़ी है। स्वभावत : वे दिमागी एफर्ट नहीं लगाना चाहते जो कि बेहद जरूरी है। यही नहीं, उनका सोशल मीडिया से जुड़ाव बढ़ा है पर वे लगातार अकेले होते जा रहे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बढ़ती भूमिका की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मेंटल हेल्थ पर काम करने एवं उनमें रुचि जगाने की जरूरत है तथा इसके लिए रूचिपूर्ण तरीका विकसित किया जाना भी बेहद जरूरी है।

निकिता सिंह

चर्चा को आगे बढ़ाया बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की छात्रा, रिसर्च इंटर्न निकिता सिंह ने। उन्होंने कहा कि भारत एक युवा देश है तथा वे ही देश के भविष्य हैं अतः बच्चों, युवाओं पर काम करने की बहुत जरूरत है। उन्होंने कहा कि बदलते दौर, तकनीकी विकास एवं सोशल मीडिया के उभार ने हालात को बदल कर रख दिया है। बच्चों में एडिक्शन की हद तक मोबाइल से जुड़ाव है, इसलिए उन्हें मोबाइल से दूर करना तो संभव नहीं है, पर मोबाइल में घुस कर तथा बेहतर कंटेंट देकर हालात को बदलने का प्रयास किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि लोगों, खासकर बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास एवं विस्तार के लिए वैज्ञानिक चेतना अभियान को व्यापक बनाने की जरूरत है। उन्होंने इससे संबंधित सामग्री को रुचिकर बनाए जाने पर बल देते हुए इस काम के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के अधिकतम, बेहतरीन एवं प्रभावशाली इस्तेमाल पर भी बल दिया।

अगली वक्ता के रूप में असिस्टेंट प्रोफेसर नितिशा खलखो ने आदिवासी समुदाय के बच्चों एवं युवाओं के साथ बढ़ती संवादहीनता की स्थिति के लिए इस समुदाय में शिक्षा की बदहाली एवं इस क्षेत्र में वर्चस्ववादी ताकतों के बढ़ते प्रभाव को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि मुट्ठी भर लोगों की प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे की हवस ने पूरी दुनिया को युद्ध की आग में झोंक दिया है। प्रकृति परक आदिवासी जीवन शैली पर खतरा बढ़ा है तथा ठगी और लूट की संस्कृति आगे बढ़ी है। इस क्रम में साइंस एवं तकनीक को भी टूल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि साइंस का इस्तेमाल आम आदमी के हितों की रक्षा एवं उनकी आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाना चाहिए। विज्ञान ध्वंस नहीं सृजन के लिए हो तथा इसका इस्तेमाल लोगों की तार्किक समझ बढ़ाने एवं मानवता की रक्षा के लिए किया जाना चाहिए।

अरविंद तिवारी

अगले वक्ता के रूप में चर्चा को आगे बढ़ाया बच्चों के साथ बेहतर संवाद की दिशा में लम्बे समय से काम कर रहे, जमशेदपुर झारखंड के प्रमुख शिक्षक एवं जन संचारक अरविंद तिवारी ने। अपने कार्यस्थल टांगराईन स्कूल के अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में स्थिति सचमुच भयावह है। दरअसल भूख, गरीबी, कुपोषण, बीमारी, बदहाली ने हालात को विकट बना कर रख दिया है। उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास, विज्ञान संचारकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि लोगों के बीच अंधविश्वास फैलाने वाली ताकतें अधिक सक्रिय हैं जबकि वैज्ञानिक चेतना के विकास पर अपेक्षाकृत कम काम हो रहा है। अतः जरूरी है कि बच्चों – युवाओं के बीच पढ़ने की संस्कृति को आगे बढ़ाया जाए तथा इसके लिए सोशल मीडिया समेत हर प्लेटफॉर्म का बेहतर एवं अधिकतम प्रभावशाली इस्तेमाल किया जाए। उन्होंने कहा कि लोगों का भरोसा जीता जाना चाहिए एवं छोटी-छोटी गतिविधियों के जरिए समाज के अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने एवं उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।

अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ अली इमाम खां ने कहा कि पैनल के सभी सदस्य इस बात से सहमत हैं कि आज समाज में संवादहीनता की स्थिति है। यह सचमुच चिंताजनक है।
उन्होंने कहा कि दरअसल लोगों से उनकी समस्याओं, चुनौतियों पर संवाद हो तो लोगों का विश्वास हासिल होगा। बच्चों एवं युवाओं में सवाल पूछने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सवाल दरअसल सामाजिक गैर-बराबरी से जुड़ा है, मानवीय गरिमा से जुड़ा है।
उन्होंने वैज्ञानिक चेतना अभियान के लिए बच्चों, युवाओं के बीच रचनात्मक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा दिए जाने एवं अद्यतन तकनीक के बेहतर इस्तेमाल पर बल दिया। उन्होंने कहा कि समाज में वैज्ञानिक चेतना के विकास का मामला महज विज्ञान विषय से जुड़ा नहीं है बल्कि सभी विषयों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है। उन्होंने छोटे छोटे विज्ञान परक, साहित्यिक, सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से लोगों के बीच जाने, उन्हें सुनने एवं दोनों की समझ के आधार पर कार्यक्रम तय करने पर बल दिया। इस क्रम में उन्होंने कार्यक्रम की निरंतरता बनाए रखने पर भी जोर दिया।
अंत में साइंस फार सोसायटी, झारखंड से लम्बे समय से जुड़े रहे राज्य के प्रमुख एकेडमिक व्यक्तित्व, शिक्षाविद प्रोफेसर एम रजीउद्दीन के दुखद निधन पर गहरा शोध व्यक्त किया गया एवं उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।

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