तुर्की में आए भूकंपों की वजह से आई तबाही ने दुनिया को हैरान किया है. इस तरह की तीव्रता के आए भूंकपों में से ये सबसे ज्यादा तबाही मचाने वालों में से एक माना जा रहा है. वैसे तो भूकंप के कारण आई तबाही में कई कारक शामिल होते हैं, लेकिन आमतौर पर भूकंप की तीव्रता से ही इसके नुकसान पहुंचाने की क्षमता का अंदाजा लगाया जाता है जिसमें भूकंप के केंद्र की भी भूमिका होती है.
तुर्कीये में आए भूकंप के बाद राहत कार्यों के लिए दुनिया भर से सहायता पहुंच रही है. जैसे जैसे मलबे से लोगों को निकाला जा रहा है, मरने वालों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है. सोमवार को सुबह 7.8 तीव्रता और फिर अगले दिन, 7.6 और 6.0 तीव्रता के भूकंपों ने तुर्किये और उसके आसपास के इलाकों को हिला कर रख दिया था, जिससे तुर्किये और सीरिया में खास तौर से भारी तबाही मची है. इसमें खास बात यह है कि इस जितनी तीव्रता के ये भूकंप थे, उससे कहीं ज्यादा इनकी तबाही ने दुनिया भर को हैरान और दशहत में डाला हुआ है. भूकंप की तीव्रता को कैसे मापा जाता है यह समझना भी जरूरी है.
अलग था इस बार का भूकंप
जहां तक नुकसान के लिहाज से भूकंप को देखने की बात है तो पहले यह देखा जाना चाहिए कि यह भूकंप इसी तीव्रता के बाकी भूकंपों से काफी अलग था. सबसे पहले यह सुबह के समय आया था जब अधिकांश नहीं बल्कि सभी लोग अपने घर में ही थे. दूसरी बात यह थी तुर्किये में एक ही नहीं बल्कि तीन भूकंपों ने इतनी तबाही मचाई है.
तीन उतनी ही तीव्रता के भूकंप
यहां आए तीनों भूकंप के ही समग्र प्रभाव का इतना ज्यादा विनाशकारी असर देखने को मिला है. एक भूकंप के तेज झटके का बाद हलके झटके के भूकंपों का आना सामान्य बात है. लेकिन तुर्किये में दूसरा झटका भी लगभग उतना ही तेज था और इतनी ही नहीं तीसरा झटका भी तेज ही था जिससे बाद के हलके झटकों जिन्हें ऑफ्टर शॉक कहते हैं, की श्रेणी रखा जाएगा.
क्या होता है भूकंप
भूकंप अचानक ही बिना किसी चेतावनी के आते हैं. कई तकनीकों ने कुछ ही मिनट पहले इनकी पूर्वसूचना हासिल करने का दावा किया है लेकिन यह काफी नहीं है. इनसे जमीन में बहुत ही प्रचंड और अचानक से कंपन होता है जो पृथ्वी की पर्पटी पर तैर रही टेक्टोनिक प्लेट बीच टकराव की वजह से होता है. इसकी वजह से जमीन कांपती है, भूस्खलन, हिमस्खलन, जंगल में आग और महासागरों में सुनामी तक आ जाती है जिससे तबाही होती है.
विनाश के कारक
किसी भूकंप की तबाही कई कारकों पर निर्भर करती है. इनमें इसकी तीव्रता, अवधि, स्थानीय भूगर्भीयता, दिन का समय जब वजह आया है, इमारतों की डिजाइन और मजबूती, और जोखिम प्रबंधन यहां तक कि भूकंप का केंद्र और उसका अभिकेंद्र यानि एपीसेंटर की भी अपनी भूमिका होती है.
फोकस और एपीसेंटर
पृथ्वी के अंदर सतह के नीचे जिस स्थान या बिंदु से भूकंप के कंपन या उसकी तरंगों की शुरुआत होती है उसके केंद्र या फोकस कहते हैं. वहीं इसी केंद्र ठीक ऊपर सतह पर जो बिंदु होता है उसके अभिकेंद्र या एपिसेंटर कहते हैं. इसी बिंदु पर सबसे ज्यादा तीव्रता वाली तंरगें पहुंचती हैं और इससे दूरी होने पर उनका प्रभाव कम होता जाता है. अगर केंद्र 70 किलोमीटर की गहराई से कम होता है तो वह उथला या शैलो भूंकप कहा जाता है. तुर्किये-सीरिया के मामले में भी ऐसा ही था.
तो कैसे होता है मापन
भूकंप का आना वास्तव में ऊर्जा का फैलाव ही होता है जो भकूंपीय तरंगों के जरिए होता है. ये तरंगों वास्वत में ध्वनि तरंगें ही होती हैं. इन तरंगों के मापन के लिए सीज्मोग्राफ नाम के उपकरण का उपयोग है जो कंपनों की डिजिटल ग्राफिक रिकॉर्डिंग, जिसे सीस्मोग्राम कहते हैं, देता है. इसी ग्राफ में ऊपर नीचे होती रेखाओं की तुलना कर ही भूकंप की तीव्रता एक सूत्र का जरिए निकाली जाती है.
वास्तव में भूकंप की मात्रा को एक संख्या से ही प्रदर्शित किया जाता है जिसकी कोई ईकाई नहीं होती इसलिए इसके पैमाने या सूत्र के आधार पर ही इसकी तीव्रता बताई जाती है इसमें सबसे लोकप्रिय रिकटर स्केल है. जो कि एक सूत्र ही है जिसके जरिए मात्रा का तुलनात्मक पता चलता है. जैसे 7.8 का भूकंप 6.0 से ज्यादा तीव्र या घातक था. इसी से तीव्रता का भी अंदाजा लगाया है. जहां मात्रा को 1 से 10 के बीच की संख्या में प्रदर्शित किया जाता है तो वहीं तीव्रता को 1 से 12 के बीच में प्रदर्शित किया जाता है.