नवीन जोशी

अंतरिक्ष में स्थापित अब तक की सबसे बड़ी दूरबीन ‘जेम्स वेब’ से मिले ब्रह्माण्ड के पहले चित्र जब जुलाई 2022 में जारी किए गए तो, आम जनता ने ही नहीं, विज्ञानियों ने भी उन्हें एक चमत्कार की तरह देखा। अखबारों ने उन्हें पहले पेज पर प्रकाशित किया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में  उन्हें तरह-तरह से दिखाया गया। इससे पहले ब्रह्माण्ड का नजारा दिखाने वाले सबसे बड़ी दूरबीन ‘हबल’ थी। ‘हबल’ से प्राप्त चित्रों और ‘जेम्स वेब’ से मिले चित्रों में बहुत अंतर इस मामले में है कि नए चित्र ब्रह्माण्ड  को और करीब तथा सूक्ष्मता से दिखाते हैं। इससे ब्रह्माण्ड की संरचना और उसके बहुत से रहस्यों पर नई रोशनी पड़ने की उम्मीद है। 

 

ब्रह्माण्ड बहुत पहले से मनुष्य की जिज्ञासा का केंद्र रहा है। धरती से दिखने वाले तारों को पहले-पहल इनसान ने आसमान के छेदों या उसकी छत पर टंके अथवा लटके हुए समझा था। तब उन्हें नंगी आंखों से ही थोड़ा-सा देखा जा सकता था। सूर्य और चंद्रमा समेत बाकी ग्रह-नक्षत्र पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं, यही माना जाता था। इन्हें देवता की तरह देखा और पूजा जाता था। उनसे मनुष्य डरते भी थे। ज्ञान के अभाव में अंधविश्वास और अप्रामाणिक बातें फैली हुई थीं। कालांतर में कोपरनिकस, गैलीलियो, केप्लर और न्यूटन जैसे विज्ञानियों ने अंतरिक्ष और ब्रह्माण्ड के बारे में नई वैज्ञानिक  जानकारियां दुनिया को दीं। फिर आइंस्टाइन जैसे विज्ञानी ने विज्ञान को नई प्रामाणिक जमीन पर खड़ा किया। यह सप्रमाण स्थापित हो गया कि हमारे सौरमण्डल का केंद्र सूर्य है और पृथ्वी समेत बाकी ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं। इस ज्ञान तक पहुंचने में सदियां लगीं। अब भी विज्ञान की यात्रा जारी है। ब्रह्माण्ड केबारे में निरंतर नई-नई और रोचक जानकारियां सामने आ रही हैं। तो  भी बहुत कुछ अनुत्तरित है। दुनिया भर में विज्ञानी ब्रह्माण्ड के रहस्यों को खोजने में लगे हैं। ‘जेम्स वेब’ दूरबीन से अब जो देख पाना सम्भव हुआ है, वह और नई जानकारियां देगा।

 

अंग्रेजी में जहां हमारे ब्रह्माण्ड के बारे में विस्तार से और रोचक तरीके से बताने वाली बहुत पुस्तकें हैं, वहीं हिंदी इस मामले में काफी गरीब रही है। हिंदी में विज्ञान या तो जटिल अनुवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया या फिर अबूझ तकनीकी शब्दावली में लिखा जाकर अल्मारियों में कैद रह गया। हमारे प्यारे सखा और दाज्यू देवेंद्र मेवाड़ी जैसे बहुत कम लेखक विज्ञान को सरस, सरल और रोचक बनाकर पेश करते हैं। उनसे पहले गुणाकर मुले और कुछ अन्य लेखकों का नाम इसी बाबत लिया जा सकता है।

 

‘नवारुण’ प्रकाशन से अभी-अभी प्रकाशित ‘विज्ञान और ब्रह्माण्ड’ शृंखला की चार पुस्तकों को देखकर अत्यंत प्रसन्नता इसलिए हुई इनके लेखक विज्ञानी गिरीश चंद्र जोशी ने बहुत सरल भाषा में हमारे ब्रह्माण्ड की वैज्ञानिक खोजों का इतिहास से लेकर वर्तमान तक और भविष्य की योजनाओं एवं सम्भावनाओं का भी रोचक विवरण प्रस्तुत किया है। यह सामान्य पाठकों के लिए तो सरस एवं जानकारीप्रद है ही, किशोर एवं युवा छात्रों के लिए अत्यंत उपयोगी है। शृंंखला की पहली पुस्तक “इतिहास तथा आधुनिक अवधारणा” (कुल पृष्ठ 190, मूल्य 290/-) अंतरिक्ष के बारे में मानव की आदि-जिज्ञासा एवं प्रारम्भ से पुनर्जागरण काल तक  खगोल विज्ञान के विकास के बारे में बताती है। दूसरी पुस्तक (पृष्ठ 86, मूल्य 130/-) दूरबीन के विकास और खगोल विज्ञान में उसके योगदान की विस्तार से चर्चा करती है। यहां गैलीलियो की छोटी सी दूरबीन से लेकर नवीनतम ‘जेम्स वेब’ दूरबीन तक का रोचक विवरण है। भविष्य में इस क्षेत्र में और क्या होने वाला है, इसका भी वर्णन आसान भाषा में किया गया है। तीसरी किताब “पृथ्वी तथा सौरमण्डल के सदस्य” (पृष्ठ 104, मूल्य 200/-) हमारी धरती और सौरमण्डल के अब तक ज्ञात नौ ग्रहों  के साथ ही उन ग्रहों के चंद्रमाओं या उपग्रहों से सम्बद्ध जानकारियों का खजाना है। चौथी पुस्तक “तारे, नीहारिकाएं, आकाशगंगा, मंदाकिनियां तथा ब्रह्माण्डिकी” (पृष्ठ 140, मूल्य 215/-) हमें दिखने और नहीं दिखने वाले तारों, विभिन्न आकृतियों में उनके समूहों, गतियों, दूरियों, आदि को आसानी से समझाया गया है।

 

अब तक की खोजों से सिद्ध हो चुका है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति ‘बिग बैंग’ से हुई अर्थात अनंत घनत्व वाले एक बिंदु के महाविस्फोट से निकली असीमित ऊर्जा से ब्रह्माण्ड शुरू हुआ और तब से इसका निरंतर विस्तार होता जा रहा है। ब्रह्माण्ड कोई स्थिर इकाई नहीं है, न ही इसकी सीमा है। जिस ऊर्जा से इसका जन्म हुआ वही इसे आज तक विस्तारित करती जा रही है। विज्ञानियों के मन में ये सवाल भी हैं कि क्या किसी रोज ब्रह्माण्ड का विस्तार रुक जाएगा? क्या उसके बाद यह सिकुड़ना शुरू होगा? क्या एक दिन यह उसी तरह नष्ट हो जाएगा जैसे इसकी उत्पत्ति हुई थी? ये रोचक प्रश्न हैं और विज्ञानियों के पास भी इनका कोई उत्तर नहीं है। अध्ययन और प्रयोग जारी हैं। इसी अध्ययन को ब्रह्माण्डिकी कहा गया है। ‘विज्ञान और ब्रह्मांड’ शृंखला की चारों पुस्तकें हमें विस्तार और सरलता से इसी सब के बारे में समझाती हैं।

 

डॉ जोशी प्रसिद्ध विज्ञानी डॉ डी डी पंत के शिष्य रहे हैं। लम्बे समय तक वे प्राध्यापक रहे और कई शोधों में उन्होंने हिस्सेदारी की। अवकाश ग्रहण के बाद विभिन्न देशों के पुस्तकालयों में उन्होंने ब्रह्माण्ड संंबंधी पुस्तकें देखने -पढ़ने के बाद सरल हिंदी में इन्हें लिखना तय किया। उनका यह काम हिंदी में सरस विज्ञान के प्रसार में महत्त्वपूर्ण होगा। ‘नवारुण’ पुस्तक प्रकाशन में नए मानक स्थापित कर रहा है- विषयवस्तु से लेकर डिजायन और प्रस्तुति में भी। युवा डिजायनर अर्पिता राठौर ने खूबसूरत आवरण के अलावा भीतर के पृष्ठों को भी अपने चित्रों-रेखांकनों से सजाया है।

पुस्तक प्राप्त करने के लिए 9811577426, 9990234750 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं कहानीकार हैं )

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