विश्व आदिवासी दिवस पृथ्वी पर रहने वाले विभिन्न आदिवासी समुदायों के सम्मान और उनके सांस्कृतिक धरोहर को याद करने का एक विशेष अवसर है। हर साल 9 अगस्त को मनाया जाने वाला यह पर्व एकता और समरसता का प्रतीक है, जिसमें विभिन्न आदिवासी समुदायों के लोग सम्मिलित होते हैं और अपने भाषा, संस्कृति, और परंपराओं के माध्यम से एक-दूसरे को समझते हैं। यह दिन आदिवासी समुदायों के अधिकारों और समस्याओं को भी उजागर करने का एक मौका प्रदान करता है। इस दिन विशेष आयोजनों, सेमिनारों, कार्यशालाओं, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए आदिवासी समाज को सशक्त बनाने के लिए कदम उठाए जाते हैं। विश्व आदिवासी दिवस हमें याद दिलाता है कि हमारे भूमि पर वास करने वाले सभी समुदायों का सम्मान और समरसता से साथ रहना हमारा दायित्व है।
विश्व आदिवासी दिवस का उद्देश्य आदिवासी समुदायों के अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना और उन्हें सम्मान दिलाना है। इस दिन को समर्पित करने का मकसद सामाजिक न्याय, समरसता, और समानता को प्रोत्साहित करना है। यह अवसर विश्व भर के लोगों को एक साथ मिलकर आदिवासी समुदायों के संघर्षों और उनकी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति सम्मान दिखाने का अवसर है। विश्व आदिवासी दिवस की घोषणा दिसंबर 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ( यूएनजीए ) के द्वारा ऐलान किया गया था।
आदिवासी समृद्धि का प्रतीक
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर भाषणों, कार्यक्रमों, और सम्मान एवं पुरस्कार समारोहों का आयोजन किया जाता है। इस दिन समाज में आदिवासी समुदायों की समृद्धि और उनकी योगदान को मान्यता दिलाने का एक विशेष अवसर है।
विश्व आदिवासी दिवस कब मनाया जाता है
विश्व आदिवासी दिवस हर साल 9 अगस्त को मनाया जाता है और इस वर्ष भी विश्व आदिवासी दिवस आज 9 अगस्त यानी बुधवार के दिन मनाया जा रहा और यह दिन पूरी तरह विश्व के आदिवासियों को समर्पित किया जाता है क्योंकि आदिवासी भारतीय महाद्वीप की जनजातियों के लिए सामूहिक शब्द है और वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या में से 8.6% जनसंख्या आदिवासी है इसका मतलब कुल 104 मिलियन लोग पूरे भारत में आदिवासी हैं और इसका सबसे बड़ा जनसंख्या वाला क्षेत्र मध्य प्रदेश माना जाता है जहां पर आदिवासी की जनसंख्या अत्यधिक है एक जनगणना के मुताबिक यहां पर कुल आदिवासी संख्याओं का 20% जनसंख्या जो कि करीब 15 मिलियन 15 मिलीयन के आस पास होता है वह यहां रहते हैं विश्व आदिवासी दिवस की तारीख सन 1982 में जिनेवा में आयोजित मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण पर उप-आयोग के स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक की मान्यता में चुनी गई थी।
विश्व आदिवासी दिवस क्यों मनाया जाता है
इस पूरे विश्व में करीब 90 से अधिक देशों में आदिवासी समुदाय के लोग वास करते हैं और पूरी दुनिया में इनकी आबादी करीब 37 करोड़ के लगभग है , और जिसमें करीब 5000 अलग-अलग आदिवासी समुदाय भी हैं, और इनकी भाषाएं भी 7000 के करीब है, इतना सब कुछ होने के बाद भी आदिवासी लोगों को अपने अस्तित्व, संस्कृति, और सम्मान को बचाने के लिए कठिन से कठिन संघर्ष करने पड़ रहे हैं और इतना ही नहीं पूरे विश्व में नक्सलवाद, रंगभेद, उदारीकरण तथा अन्य कई समस्याओं से अपने अस्तित्व और सम्मान को बचाने के लिए कठिन से कठिन संघर्ष कर रहे हैं आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक आंकड़ों के अनुसार अभी झारखंड क्षेत्र की कुल आबादी मैं 28% आदिवासी समाज के लोग रहते हैं तथा इन समुदाय में कई जातियां आती हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं जैसे संथाल, बंजारा, बिहोर, चेरो, गोंड, हो, खोंड, लोहरा, माई पहाड़िया, मुंडा, ओरांव आदि 32 से अधिक आदिवासी समूह के लोग इसमें सम्मिलित हैं।
और इसी कारण से हर साल 9 अगस्त को आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसमें आदिवासी संस्कृति और उनके सम्मान को बचाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जाता है इसे संयुक्त राष्ट्र पर कई देशों की सरकारी संस्थाओं के साथ साथ आदिवासी समुदाय के लोग, वे आदिवासी संगठन के साथ मिलकर दुनिया भर में सामूहिक उत्सव का आयोजन करते हैं, जैसे नृत्य, आदिवासी दिवस पर भाषण, आदिवासी दिवस पर शायरी, आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं,
हमारे पृथ्वी पर पूरी जनजाति में से लगभग 470 मिलियन भाग स्वदेशी लोगों का है इसके अलावा पूरी दुनिया में 100 से अधिक गेर संपर्क जनजातियां है और आपके जानकारी के लिए बता दें कि पूरी दुनिया में 7000 से ज्यादा भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन इनमें से 4000 भाषाएं आदिवासी लोगों के द्वारा ही बोली जाती है इतना ही नहीं यह लोग इस प्रकृति, पहाड़ों, नदियों, पेड़ों, पर, और जानवरों की पूजा करते हैं तथा इनके पास महान पारिस्थितिक ज्ञान होता है। जनजातीय लोगों ने सहस्राब्दियों से जीवित रहने का असाधारण कौशल विकसित किया है। यह जानकर आश्चर्य होता है कि 2004 की सुनामी से अंडमान की जनजातियाँ प्रभावित नहीं हुईं। जैसे ही उन्होंने समुद्र को पीछे हटते देखा तो वे तुरंत ऊंची जमीन पर चले गए। इससे उनके पास मौजूद ज्ञान की झलक मिलती है।भारत में जनजातीय लोग कुल जनसंख्या का 8.6% हैं। भारत के संविधान में इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में दर्शाया गया है। भारत के कुछ आदिवासी समूहों में गोंड, मुंडा, हो, बोडो, भील, संथाल, खासी, गारो, ग्रेट अंडमानी, अंगामी, भूटिया, चेंचू, कोडवा, टोडा, मीना, बिरहोर और कई अन्य शामिल हैं।आदिवासी समुदाय के लोग अपने घरों, खेतों और पूजा स्थलों पर झंडा लगाते हैं। ये अन्य समुदायों से भिन्न हैं और इनमें सूर्य, चंद्रमा, तारे आदि जैसे प्रतीक हैं।
भारत में कितने आदिवासी रहते है?
भारत में 500 से अधिक जनजातीय समूहों में से, जो सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक विकास के विभिन्न चरणों में मौजूद हो सकते हैं, यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में लगभग 75 आदिम जनजातीय समूह हैं जिनके पास पूर्व-कृषि स्तर की तकनीकी क्षमता हो सकती है। कम साक्षरता, आर्थिक रूप से पिछड़ा, और स्थिर या घटती जनसंख्या। भारत में आदिम जनजातीय समूहों की कमजोरियों को देखते हुए कई मापदंडों पर विचार किया जा सकता है जो इन समूहों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हालाँकि, कुछ विशेष रूप से खतरे में पड़े समूहों के विलुप्त होने की संभावनाओं को देखते हुए, जिस मुख्य विशेषता पर विचार किया जा सकता है वह उनकी बेहद कम या घटती आबादी है।