विकास शर्मा

देश के पहले गृह मंत्री, उपप्रधानमंत्री, गुजरात में सरदार के नाम से और देश में लौह पुरुष के नाम से मशहूर सरदार वल्लभभाई पटेल ने देश के आजादी के समय बहुत ही मुश्किल समय में देश का एकीकरण करने का कार्य कर देश को नेतृत्व प्रदान किया. वे गांधी जी के प्रमुख सहयोगी और अनुयायी थे, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब वे गांधी जी को सुनने की जगह ब्रिज खेलना पसंद करते थे.

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और आजादी के बाद देश के निर्माण में सबसे बड़ा योगदान जिन लोगों ने दिया है उनमें सरदार वल्लभभाई पटेल शीर्ष में शामिल है. उन्होंने आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है. जिस तरह से उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भारत में तमाम रियासतों को मिलाकर भारत देश को एक किया था उन्हें भारत का लौह पुरुष भी कहा जाता है. सरदार वल्लभभाई पटेल का देश की आजादी  में भी कम योगदान नहीं था वे गांधी के एक अनुशासित सिपाही की तरह हर मोर्चे पर आजादी की लड़ाई में डटे रहे. पर एक समय ऐसा भी था जब वे गांधी जी को नजरअंदाज किया करते थे.

राष्ट्रीय एकता दिवस
31 अक्टूबर को सरदार पटेल का जन्म दिन है जिसे देश राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मना रहा है. देश की आजादी एक दिन में सत्ता हस्तास्तांरण ही भर नहीं था बल्कि एक बहुत ही जटिल और विस्तृत प्रक्रिया थी जिसमें बंटावारा भी शामिल था. उस संक्रमण काल में 565 अलग अलग रियासतों को देश में मिलाने जैसा कठिन कार्य भी था.  लेकिन सरदार पटेल ने अपने नेतृत्व  में इन समस्याओं से देश को पार लगा दिया.

बचपन में पढ़ाई के लिए संघर्ष
सरदार वल्लभभाई झावेरभाई पटेल का जन्म बम्बई प्रेसिडेंसी के नाडियाद में 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था जो आज के गुजरात के खेड़ा जिले में आता है. बचपन में उनका जीवन बहुत संघर्ष में गुजरा. और उनकी शुरुआती शिक्षा स्वाध्याय केजरिए हुई.  22 साल की उम्र में उन्होंने मेट्रिकुलेशन पास किया.

वकील बनने का सपना किया पूरा
वे इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर बनना चाहते थे लेकिन आर्थिक हालात प्रतिकूल होने के कारण वे ऐसा ना कर सके. उन्होंने अपनी शिक्षा के लिए खुद खर्चे उठाए. इसके लिए उन्हें अपने परिवार से दूर रहना पड़ा लेकिन उन्होंने वकालत पढ़ी और प्रैक्टिस भी की. 36 साल की उम्र में वे इंग्लैड जाकर  बैरिस्टर की पढ़ाई भी कर सके.

एक बढ़िया जीवन?
सरदार पटेल बहुत ही बेहतरीन और प्रभावी वक्ता थे. इंग्लैंड से लौटने के बाद उन्होंने अहमदाबाद को अपनी कर्मभूमि बनाया और जल्दी है उनके पास पैसों की कमी नहीं रही. वे एक शानदार और आलीशान जीवन जीने लगे. क्लब में जाकर बड़े लोगों के साथ उठना बैठना उनके साथ ब्रिज खेलना उनके जीवन का अटूट हिस्सा हो गया. एक बार तो उनके दोस्तों ने उन्हें महात्मागांधी को सुनने के लिए साथ चलने तक को कहा लेकिन उन्होंने तब ब्रिज खेलने को तरजीह देना पसंद किया.

महात्मा गांधी जी ने बदला जीवन
पटेल की राजनीति में आने की रुचि नहीं थी. 1917 में ही दोस्तों के कहने पर उन्होंने अहमदाबाद नगरपालिका का चुनाव लड़ा और जीत भी गए. लेकिन शुराआत मेंवे महात्मा गांधी में रुचि नहीं रखते थे. लेकिन गांधीजी के नील आंदोलन में गांधी जी के योगदान से प्रभावित हुए और 1917 में ही उनसे मुलाकात के बाद उनका जीवन ही बदल गया और वे देश सेवा में कूद पड़े और तड़क भड़क वाली जीवनशैली छोड़ खादी अपना कर वे पूरे गांधीवादी हो गए.

गांधी जी के नजदीक
लोगों को लगता है कि पटेल गांधी एक दूसरे को बहुत पसंद नहीं करते थे. लेकिन ऐसा नहीं था. गांधी जी के बहुत से आंदोलनों में पटेल ने गांधी जी के दाएं हाथ की तरह काम किया . 1932 में जब दोनों येदावरा जेल में थे, तब पटेल ने गांधी जी से ही संस्कृत सीखी थी. गांधी जी के आंदोलन में गुजरात में हमेशा पटेल ही ने सारे कार्य किए और जिम्मेदारियां ली थीं. पटेल 1920 से लेकर 1945 तक गुजरात कांग्रेस के प्रदेश अध्ययक्ष रहे थे. और गांधी जी के प्रमुख अनुयायियों में से एक बने रहे.

पटेल ने पूरा जीवन गांधी जी के सिद्धांतों पर गुजारा. उन्होंने अपने बच्चों और उनके परिवार को हमेशा राजनीति, खुद से और दिल्ली से हमेशा दूर रखा और कभी अपने निकट जनों को राजनीति का लाभ पहुंचने ने नहीं दिया. भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की देश के लिए लोहे का ढांचा बनाने के लिए उन्हे ही जिम्मेदार माना जाता है. 15 नवबंर 1950 को उनका निधन हो गया था.

      (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार ) 
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