विकास शर्मा

एक्सपर्ट्स का कहना है कि इंसान की उम्र के साथ समय को लेकर उसकी समझ धीमी पड़ जाती है. इसके कई कारण होते हैं जिनमें दिमाग की तंत्रिकाओं के मार्गों का कमजोर होना सबसे प्रमुख है. फिर भी उनका मानना है कि चेतना को बढ़ा कर और कुछ सक्रिय उपाय अपना कर इसे रफ्तार को वापस हासिल किया जा सकता है.

क्या आपने कभी पीछे मुड़कर देखा है और महसूस किया है कि जैसे-जैसे साल रातों-रात गायब हो गए? कभी आपको भी लगा है कि कुछ घंटे कुछ ही पलों में खत्म हो गए हैं? ऐसा है तो आप अकेले नहीं हैं. हम में से कई लोग देखते हैं कि जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, समय के बारे में हमारी धारणा बदलती है. दिन और साल तेज़ी से बीतते प्रतीत होते हैं, जिससे हम सोचते हैं कि आखिर क्या बदल गया. क्या यह सिर्फ़ हमारी व्यस्त ज़िंदगी है, या हमारे दिमाग में कुछ और भी गहरा चल रहा है?

बदल जाती है हमारी धारणा
हमारे दिमाग में बहुत कुछ चल रहा है. इसमें हमारे दिमाग में सूचनाओं को प्रोसेस करने के तरीके में बदलाव से लेकर हमारे दैनिक जीवन को आकार देने वाली दिनचर्या तक शामिल हैं. ड्यूक विश्वविद्यालय में दशकों के अनुभव वाले शोधकर्ता एड्रियन बेजान इस घटना पर एक आकर्षक नजरिया पेश करते हैं. उनका सुझाव है कि उम्र बढ़ने के साथ हमारे दिमाग और शरीर में होने वाले शारीरिक बदलाव के कारण समय के बारे में हमारी धारणा बदल जाती है.

दो तरह के समय
कुछ दिन दूसरों की तुलना में लंबे या छोटे क्यों लगते हैं? और जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, समय उड़ता हुआ क्यों लगता है? ऐसे सवालों के जवाब जानने के लिए हमें दो तरह के समयों को समझना होगा. “घड़ी का समय” और “मन का समय”. बेजान के अनुसार, मापने योग्य घड़ी के समय और हमारे दिमाग के अनुभव किए जाने वाले समय के बीच अंतर है. वे बताते हैं, “मापनीय ‘घड़ी का समय’ मानव मन के अनुभव किए जाने वाले समय के समान नहीं है. ‘मन का समय’ छवियों का एक क्रम है, यानी प्रकृति के प्रतिबिंब जो संवेदी अंगों से उत्तेजनाओं से पोषित होते हैं.”

धीमी होती जाती है रफ्तार
सरल शब्दों में, हमारा दिमाग हम जो देखते हैं, सुनते हैं और अनुभव करते हैं, उसके आधार पर मानसिक तस्वीरों की एक सीरीज को प्रोसेस करता है. जब हम युवा होते हैं, तो हमारा दिमाग इन छवियों को अधिक तेज़ी से प्राप्त करता है और प्रोसेस करता है. जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, तंत्रिका मार्गों के क्षरण जैसे शारीरिक परिवर्तनों के कारण यह प्रोसेसिंग धीमी हो जाती है.

तो फिर कुछ दिन लंबे क्यों लगते हैं?
क्या आपने देखा है कि नए अनुभवों या उत्पादकता से भरे दिन लंबे लगते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि आपका दिमाग ज़्यादा जानकारी प्रोसेस कर रहा है और ज़्यादा मानसिक तस्वीरें बना रहा है. जब आप अच्छी तरह से आराम करते हैं, तो आपका दिमाग ज़्यादा कुशलता से काम करता है, जिससे आप अपने आस-पास की दुनिया को ज़्यादा समझ पाते हैं.

दिनचर्या के आधार पर समय की धारणा
मिशिगन विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की प्रोफेसर सिंडी लस्टिग एक और नजरिया पेश करती हैं. वे बताती हैं कि जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमारा जीवन अक्सर अधिक नियमित होता जाता है. लस्टिग कहती हैं, “जब हम बड़े होते हैं, तो हमारा जीवन दिनचर्या के इर्द-गिर्द अधिक चलता होता है, और बड़ी ऐतिहासिक घटनाएं कम होती हैं, जिनका उपयोग हम ‘हमारे जीवन के समय’ के तमाम दौर को सीमांकित करने के लिए करते हैं.”

कब तेजी से गुजरता लगता है समय?
कम नए अनुभवों के साथ, हमारा दिमाग समान दिनों और हफ्तों को एक साथ जोड़ देता है. इससे ऐसा महसूस हो सकता है कि समय अधिक तेज़ी से बीत रहा है क्योंकि एक अवधि को दूसरे से अलग करने के लिए कम यादगार घटनाएं होती हैं.

क्यों लगता है ऐसा?
बेजान कहते हैं कि उम्र के साथ ही दिमागी छवियों में बदलाव के दर की समझ भी कम होती जाती है. समय के साथ जैसे ही हमारे तंत्रिका मार्ग ख़राब होते जाते हैं, हमारे मस्तिष्क को नई जानकारी को प्रोसेस करने में अधिक समय लगता है. इससे घड़ी की एक ही अवधि में हम दिमाग में कम छवियां बना पाते हैं जिससे समय तेजी से गुजरता दिखता है.

कैसे बदल सकते हैं ये समझ?
सवाल ये है कि क्या हम किसी सक्रियता से हमारी समय की समझ को बदल सकते हैं या नहीं? शायद इसका जवब चेतना और हमारे रूटीन को तोड़ने में है.  जीवन में विविधता और मस्तिष्क को चुनौती देकर हम अपने अंदर युवावस्था के दौर की समय की समझ को लौटा सकते हैं.  नई रुचियां  या नई जगह पर जाने से ऐसा होता है, लोग ऐसा कहते पाए गए हैं.

कुल मिला कर जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती है हमारे दिमाग की सूचनाओं को प्रोसेस करने की दर धीमी होती है जाती है. और इसका कारण तंत्रिका मार्गों का कमजोर होना होता है. लेकिन फिर भी हम कई प्रकार से सक्रिय होकर इसे कुछ हद तक सही कर सकते हैं. यह अध्ययन यूरोपीय रीव्यू जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

       (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )

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