संजय श्रीवास्तव

क्वांटम फिजिक्स के बारे में कहा जा रहा है कि ये असंभव को संभव बनाने वाली विधा है, ऐसी विधा भी जो खुद साइंस की बहुत सी अवधारणों को पलट देती है, इसे साइंस में चमत्कार की तरह माना जा रहा. 2025 के भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट और जॉन मार्टिनिस को मिला है. ये तीनों साइंटिस्ट माइक्रोस्कोपिक क्वांटम टनलिंग पर काम कर रहे थे. पिछले कुछ समय से आप क्वांटम फिजिक्स की चर्चाएं सुन रहे होंगे. आखिर क्या है ये. क्यों इसे भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है. ये भी कहते हैं कि क्वांटम फिजिक्स साइंस की भी बनी बनाई परिपाटियों को तोड़ती है और उसके रिजल्ट किसी चमत्कार से कम नहीं लगते.

क्वांटम फिजिक्स या क्वांटम यांत्रिकी विज्ञान की वह शाखा है जो प्रकृति के सबसे छोटे कणों – इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, फोटॉन और परमाणुओं के व्यवहार को समझाती है. जब हम “माइक्रोस्कोपिक क्वांटम फिजिक्स” की बात करते हैं, तो हमारा इशारा उन क्वांटम प्रभावों की ओर है जो दैनिक जीवन के क्लासिकल भौतिकी के नियमों से अलग सूक्ष्म स्तर पर प्रकट होते हैं. क्लासिकल फिजिक्स का मतलब जैसे न्यूटन के नियम, जो बड़े पैमाने पर काम करते हैं – एक गेंद का गिरना या कार का गति करना. लेकिन जब हम परमाणु या उसके छोटे कणों तक पहुंचते हैं, तो दुनिया अजीब हो जाती है.

इस सूक्ष्म जगत में कण लहरों की तरह व्यवहार करते हैं.इसे “वेव-पार्टिकल ड्यूलिटी” कहते हैं. प्रकाश कभी कण (फोटॉन) लगता है तो कभी लहर सरीखा. क्वांटम फिजिक्स के मूल सिद्धांतों में अनिश्चितता का सिद्धांत (हाइजेनबर्ग का) प्रमुख है, जो कहता है कि किसी कण की स्थिति और गति को एक साथ पूर्ण सटीकता से नहीं मापा जा सकता. एक कण एक साथ कई अवस्थाओं में रह सकता है. यानि ये असंभव को संभव करने वाली फिजिक्स भी है.
क्वांटम फिजिक्स के बारे में सोचना 20वीं सदी की शुरुआत में शुरू हुआ. वर्ष 1900 में मैक्स प्लैंक ने ऊर्जा के क्वांटम (छोटे-छोटे पैकेट) की अवधारणा दी. फिर बोहर ने परमाणु मॉडल (1913), और हाइजेनबर्ग-श्रोडिंगर ने अपने नियम और समीकरण दिए.
माइक्रोस्कोपिक स्तर पर ये नियम इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सभी आधुनिक तकनीकें – ट्रांजिस्टर, लेजर, एमआरआई इन्हीं पर आधारित हैं लेकिन लंबे समय तक वैज्ञानिकों का सपना रहा कि क्या ये क्वांटम प्रभाव बड़े पैमाने (मैक्रोस्कोपिक) पर दिख सकते हैं या नहीं. यही वह बिंदु है जहां हालिया नोबेल पुरस्कार दिया गया.

क्या है क्वांटम फिजिक्स

क्वांटम फिजिक्स पदार्थ और ऊर्जा के सबसे सूक्ष्म मूलभूत स्तर का अध्ययन है, जो यह समझने की कोशिश करता है कि हमारे ब्रह्मांड की छोटी से छोटी इकाई जैसे इलेक्ट्रॉन, फोटॉन कैसे व्यवहार करते हैं और किन नियमों का पालन करते हैं. इसमें पदार्थ के दोहरे व्यवहार व अनिश्चितता सिद्धांत जैसे अजीब सिद्धांत शामिल हैं.

इसका महत्व क्यों बढ़ रहा है

वर्ष 2025 को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “क्वांटम साइंस एंड टेक्नोलॉजी” का वर्ष घोषित किया गया है ताकि इसका महत्व और व्यावहारिक भूमिका आम नागरिकों तक पहुंच सके. क्वांटम फिजिक्स पर आधारित तकनीकों, जैसे क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम क्रिप्टोग्राफी (सुपर-सुरक्षित डेटा ट्रांसमिशन), अत्यधिक संवेदनशील सेंसर, चिकित्सा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एनर्जी और कम्युनिकेशन का तेज़ी से विस्तार हो रहा है. ये तकनीकें पारंपरिक तकनीकों से कहीं अधिक ताकतवर, सटीक और सुरक्षित साबित हो रही हैं. नई खोजें जैसे क्वांटम कंप्यूटर, जो पारंपरिक सुपरकंप्यूटर को भी पीछे छोड़ सकते हैं, इस क्षेत्र को और भी लोकप्रिय बना रही हैं. वर्ल्ड इकोनॉमी, साइबर सुरक्षा, उन्नत मेडिकल रिसर्च और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्वांटम फिजिक्स पर ही आधारित होते जा रहे हैं. क्वांटम विज्ञान आने वाले वर्षों में रोज़मर्रा की जिंदगी, इंडस्ट्री, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में इनोवेशन और रोजगार के नए अवसर लाएगा.
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क्लासिकल फिजिक्स और क्वांटम फिजिक्स में क्या अंतर है

क्लासिकल फिजिक्स हमारे दैनिक जीवन की सारी बड़ी घटनाओं और वस्तुओं की गति, बल, ताप, आदि का अध्ययन करती है, जैसे बस का चलना, गेंद का उछलना. क्वांटम फिजिक्स अति-सूक्ष्म स्केल पर घटनाओं को समझाती है; यहां कणों का व्यवहार ‘संभावना’ पर टिका होता है, और निश्चितता जैसी चीज़ गायब हो जाती है. ये एक तरह से चमत्कार जैसे टर्म को सार्थक करती है. क्लासिकल फिजिक्स में ऊर्जा लगातार बनी रहती है, जबकि क्वांटम में ऊर्जा छोटे-छोटे पैकेट्स में आती है. हाइज़नबर्ग अनिश्चितता सिद्धांत के अनुसार, आप किसी कण की गति और स्थिति एक साथ सटीक जान ही नहीं सकते; जबकि क्लासिकल फिजिक्स में ऐसा कोई नियम नहीं. इन मूलभूत अंतरों के कारण क्वांटम यांत्रिकी ने खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर और नैनो-टेक्नोलॉजी जैसी आधुनिक तकनीकों में क्रांति ला दी है.

क्या है क्वांटम कंप्यूटिंग

क्लासिकल कंप्यूटर बाइनरी (0/1) पर चलते हैं. क्वांटम क्यूबिट्स सुपरपोजिशन से अरबों संभावनाएं एक साथ हल करते हैं. गूगल, आईबीएम, माइक्रोसॉफ्ट क्वांटम चिप्स बना रहे हैं. इस नोबेल की टनलिंग तकनीक क्यूबिट्स को स्थिर रखने में मदद करेगी, जो डिकोहेरेंस से लड़ती है. 2030 तक क्वांटम कंप्यूटर दवाओं की खोज करेंगे और क्रिप्टोग्राफी तोड़ने में क्रांति लाएंगे. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि क्वांटम कंप्युटर और क्वांटम कंप्युटिंग दुनिया में एआई से बड़ी क्रांति कर सकते हैं. माइक्रोस्कोपिक क्वांटम फिजिक्स वह जादू है जो सूक्ष्म कणों को नियंत्रित करता है. इसका महत्व बढ़ रहा क्योंकि यह डिजिटल क्रांति का अगला चरण है. 2025 का नोबेल इसकी पुष्टि करता है, ये हमें एक ऐसी दुनिया की ओर ले जाता है जहां असंभव संभव हो जाएगा.

क्या क्वांटम फिजिक्स को चमत्कार कह सकते हैं

क्वांटम फिजिक्स को चमत्कार कहना साइंटिफिक दृष्टि से पूरी तरह सही नहीं, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि यह पारंपरिक क्लासिकल साइंस की स्थापित मान्यताओं और सीमाओं को तोड़ती है. वास्तविकता की नई, अनोखी और रहस्यमयी तस्वीर पेश करती है. इसमें “सुपरपोजीशन” जैसी अवधारणाएं हैं. “क्वांटम एनटैंगलमेंट” में दो कण भले ही कितने भी दूर हों, एक में बदलाव से दूसरा भी बदल जाता है, मानो वे रहस्यमय तरीके से जुड़े हैं. क्वांटम सिद्धांत के आने से पहले यह सोचा जाता था कि प्रकृति हमेशा निश्चित और सीधी और जिसका एक पुख्ता सिद्धांत है, क्वांटम फिजिक्स इन सभी धारणाओं को चुनौती देती है. अब विज्ञान मानता है कि मूलभूत स्तर पर दुनिया कहीं ज्यादा उलझी, रहस्यमयी और “विचित्र” है.
       (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )
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