ललित मौर्या

इन लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती भीषण गर्मी है, जिससे 60.8 करोड़ लोग प्रभावित हैं, जबकि करीब 58 करोड़ लोग वायु प्रदूषण से त्रस्त हैं। वहीं 47 करोड़ पर बाढ़ जबकि 20.7 करोड़ लोगों पर सूखे का खतरा पसरा है। दुनिया में पहले ही हाशिए पर जीवन व्यतीत करने को मजबूर लोगों पर जलवायु संकट का भी काला साया मंडरा रहा है।

स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया में गरीबी की मार झेल रहे हर दस में से आठ लोग ऐसे क्षेत्रों में रहने को मजबूर हैं, जहां बाढ़, सूखा, तूफान, वायु प्रदूषण, भीषण गर्मी जैसे जलवायु संकट मुंह फैलाए खड़े हैं। मतलब की दुनिया में गरीबी से जूझ रहे यह 88.7 करोड़ लोग इन जलवायु आपदाओं के सीधे खतरे में हैं। बता दें कि दुनिया में करीब 110 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी की मार झेल रहे हैं। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा आज जारी नई रिपोर्ट “2025 ग्लोबल मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (एमपीआई), ओवरलैपिंग हार्डशिप्स: पॉवर्टी एंड क्लाइमेट हैजर्ड्स” में सामने आई है। पहली बार बहुआयामी गरीबी डेटा को जलवायु जोखिम डेटा के साथ मिलाकर दिखाया गया है। रिपोर्ट बताती है कि गरीबी अब केवल आर्थिक या सामाजिक समस्या नहीं रही, बल्कि यह जलवायु आपातकाल से गहराई से जुड़ी हुई है। रिपोर्ट दिखाती है कि गरीबी अब केवल आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि जलवायु आपातकाल के बढ़ते असर से और गंभीर रूप ले चुकी है। गौरतलब है कि यह रिपोर्ट अगले महीने ब्राजील में होने वाले जलवायु सम्मेलन कॉप-30 से पहले जारी की गई है।

कई संकटों का एक साथ सामना

रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में पहले ही हाशिए पर जीवन बसर करने को मजबूर ये लोग पर्यावरण से जुड़ी एक से अधिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इन्हें हर दिन गरीबी के साथ-साथ भीषण गर्मी, वायु प्रदूषण, बाढ़, सूखा जैसी चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि इन लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती भीषण गर्मी है, जिससे 60.8 करोड़ लोग प्रभावित हैं, जबकि करीब 58 करोड़ लोग वायु प्रदूषण से त्रस्त हैं। वहीं 47 करोड़ पर बाढ़ जबकि 20.7 करोड़ लोगों पर सूखे का खतरा पसरा है। यह लोग ऐसे क्षेत्रों में जीवन काट रहे हैं जो सूखे से जूझ रहा है।

यूएनडीपी के कार्यकारी प्रशासक हाओलियांग जू का इस बारे में कहना है, “गरीबी अब केवल एक सामाजिक-आर्थिक समस्या नहीं रही। यह जलवायु आपातकाल के बढ़ते प्रभावों से और जटिल हो गई है।” उनका कहना है “वैश्विक गरीबी को खत्म करने और दुनिया को स्थिरता देने के लिए हमें उन जलवायु खतरों का सामना करना होगा जो गरीबी से जूझ रहे करीब 90 करोड़ लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं।“ उनके मुताबिक कॉप 30 सम्मेलन में वैश्विक नेताओं को ऐसे कदम उठाने होंगे जो गरीबों की जिंदगी सुरक्षित करें और विकास की थमी रफ्तार को गति दें।

एशिया-अफ्रीका में हालात सबसे बुरे

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि दक्षिण एशिया और सब-सहारा अफ्रीका इसके सबसे बड़े हॉटस्पॉट हैं। दक्षिण एशिया में जहां हाशिए पर रहे रहे 38 करोड़ लोग जलवायु संकट से घिरे हैं। वहीं सब-सहारा अफ्रीका में यह आंकड़ा 34.4 करोड़ दर्ज किया गया है। इतना ही नहीं दक्षिण एशिया में करीब-करीब हाशिए पर रह रहा हर इंसान (99.1 फीसदी गरीब) कम से कम एक जलवायु आपदा से जूझ रहा है। वहीं 91.6 फीसदी लोग दो या अधिक जलवायु संकटों को झेल रहे हैं। ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव की निदेशक सबिना एल्किर का कहना है, “रिपोर्ट बताती है कि जलवायु संकट और गरीबी एक साथ कहां सबसे ज्यादा असर डाल रहे हैं।”

उनके मुताबिक यह समझना जरूरी है कि पृथ्वी पर किन जगहों पर सबसे ज्यादा दबाव है और लोग जलवायु संकट से कहां सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, ताकि ऐसे विकास मॉडल बनाए जा सकें जो इंसान और जलवायु दोनों के हित में हों। रिपोर्ट से पता चला है कि मध्यम या निम्न आय वाले देशों पर जलवायु संकट का सबसे बड़ा असर देखा जा रहा है। इन देशों में हाशिए पर जी रहे करीब 54.8 करोड़ लोग कम से कम एक जलवायु खतरे—जैसे बाढ़, सूखा या अत्यधिक गर्मी का सामना कर रहे हैं। यह आंकड़ा दुनिया भर में जलवायु संकट झेल रहे गरीबों का करीब 62 फीसदी है। इनमें से 47 करोड़ से ज्यादा लोग एक साथ दो या उससे अधिक जलवायु खतरों का सामना कर रहे हैं, जिससे उनका जीवन और भी कठिन हो गया है। यह संकट सिर्फ वर्तमान तक सीमित नहीं है, बल्कि आने वाले वर्षों में और गंभीर होगा। रिपोर्ट यह भी बताती है कि जिन देशों में मौजूदा समय में गरीबी अधिक है, वहां इस सदी के अंत तक तापमान में भी सबसे ज्यादा वृद्धि होने का अंदेशा है।

रिपोर्ट का कहना है कि जलवायु आपदाओं का असमान बोझ झेल रहे गरीबों की मदद के लिए अब तुरंत वैश्विक कार्रवाई की जरूरत है। इसके लिए केवल समस्या की पहचान ही नहीं, बल्कि ठोस कदम भी उठाने होंगे। ऐसी योजनाएं जो जलवायु अनुकूल के साथ-साथ गरीबी घटाने पर केंद्रित हों उनपर बल देना होगा।  स्थानीय स्तर पर अनुकूलन की क्षमता बढ़ानी होगी और इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग व वित्तीय सहायता को मजबूती देनी होगी।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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