ललित मौर्या
दुनिया ने 2025 में इतिहास के अब तक के दूसरे सबसे गर्म मई का सामना किया, जब बढ़ता तापमान औद्योगिक काल (1850-1900) से पहले की तुलना में 1.4 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। बता दें कि मई 2024 अब तक का सबसे गर्म मई था।
यह जानकारी यूरोपियन यूनियन की कॉपर्निकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) द्वारा आज जारी रिपोर्ट में सामने आई है। देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर हर गुजरते दिन के साथ तापमान बढ़ रहा है, वो बड़े खतरे की ओर इशारा है। गौरतलब है कि मई में सतह का औसत तापमान 15.79 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया, जो 1991 से 2020 के औसत से 0.53 डिग्री सेल्सियस अधिक है।
वहीं यदि पिछले साल अब तक के रिकॉर्ड सबसे गर्म मई से तुलना करें तो इस साल मई में तापमान महज 0.12 डिग्री सेल्सियस कम रहा। मतलब कि इनके बीच मामूली अंतर रहा। रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की गई है कि तापमान में हो रही यह वृद्धि मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधनों के जलने से होने वाले उत्सर्जन का नतीजा है।
बनते बिगड़ते जलवायु रिकॉर्ड
देखा जाए तो असाधारण गर्मी के सिलसिले में पिछले 22 में से 21 महीने ऐसे रहे जब औसत वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा। हालांकि इस बार थोड़ी राहत जरूर मिली। फिर भी, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह राहत अस्थाई है। ऐसा नहीं है कि इस साल मई में ही तापमान में वृद्धि दर्ज की गई। पिछले अप्रैल और मार्च के महीना भी जलवायु इतिहास के दूसरे सबसे गर्म अप्रैल और मार्च रहे। इस दौरान अप्रैल में जहां तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.51 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। वहीं मार्च 2025 में भी 1.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई।
इसी तरह 2025 में दुनिया ने तीसरी सबसे गर्म फरवरी का सामना किया, जबकि समुद्री बर्फ में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई। बता दें कि फरवरी में तापमान औद्योगिक काल से पहले (1850-1900) की तुलना में 1.59 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। वहीं भारत की बात करें तो आईएमडी ने पुष्टि की है कि पिछले 125 वर्षों में फरवरी में कभी इतनी गर्मी नहीं पड़ी जितनी इस साल 2025 में दर्ज की गई है। इसी तरह साल का आगाज ही अब तक की सबसे गर्म जनवरी के साथ हुआ था, जब ला नीना के बावजूद तापमान रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया।
इस बारे में सी3एस निदेशक कार्लो बुओनटेम्पो ने कहा, “भले ही यह अस्थाई विराम हो, लेकिन जलवायु के लगातार गर्म होने के कारण डेढ़ डिग्री सेल्सियस की यह सीमा दोबारा से पार हो सकती है।” गौरतलब है कि पेरिस समझौते के तहत दुनिया भर के देशों ने बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने का प्रण लिया था। इसका मकसद जलवायु परिवर्तन के सबसे खतरनाक प्रभावों से बचना था। हालांकि, कई वैज्ञानिकों का मानना है कि अब इस लक्ष्य को पाना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में सरकारों को बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में तेजी से कटौती करने की आवश्यकता है।
इस बीच, वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन से जुड़े वैज्ञानिकों ने एक अन्य अध्ययन में जानकारी दी है कि ग्रीनलैंड और आइसलैंड में रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी करीब तीन डिग्री सेल्सियस अधिक थी, जिसके लिए इंसानों द्वारा बढ़ता उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन जिम्मेवार है। इस बढ़ते तापमान की वजह से ग्रीनलैंड में जमा बर्फ भारी मात्रा में पिघली है। जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ता तापमान ही समस्या नहीं है। इसकी वजह से दुनिया में चरम मौसमी घटनाओं की संख्या भी बढ़ रही है और वो पहले से कहीं ज्यादा विकराल रूप लेती जा रहीं हैं। ऐसे में लोगों पर बढ़ते तापमान की दोहरी मार पड़ रही है।
वहीं दूसरी तरफ जून 2024 से मई 2025 के बीच 12 महीने के औसत तापमान को देखें तो वो औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.57 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। इसी तरह मार्च से मई 2025 के बीच वैश्विक औसत तापमान रिकॉर्ड पर दूसरा सबसे गर्म रहा। मतलब की इस अवधि के दौरान तापमान 1991 से 2020 के औसत की तुलना में 0.59 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इस दौरान खासकर उत्तरी गोलार्ध में तापमान सामान्य से अधिक रहा। सबसे ज्यादा गर्मी पश्चिम-मध्य एशिया, पूर्वोत्तर रूस, ग्रीनलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिका में दर्ज की गई। इसके विपरीत, हडसन बे, दक्षिणी और पूर्वोत्तर अफ्रीका, भारत, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी अंटार्कटिका में तापमान सामान्य से कम रहा।
भारत में सामान्य से ठंडा रहा मई
रिपोर्ट के मुताबिक मई 2025 में यूरोप का औसत तापमान 12.98 डिग्री सेल्सियस रहा, जो 1991से 2020 के औसत से 0.29 डिग्री कम है। हालांकि यूरोप के तापमान में काफी अंतर देखा गया। इस दौरान पूर्वी इटली, बाल्कन से लेकर फिनलैंड तक के पूर्वी हिस्सों में तापमान सामान्य से कम रहा, जबकि दूसरी तरफ पश्चिमी यूरोप में यह औसत से अधिक रहा।
यूरोप के बाहर, पश्चिमी अंटार्कटिका, मध्य पूर्व और पश्चिमी एशिया, पूर्वोत्तर रूस और उत्तरी कनाडा में तापमान सामान्य से काफी अधिक दर्ज किया गया। वहीं भारत, अलास्का, दक्षिणी अफ्रीका और पूर्वी अंटार्कटिका में तापमान सामान्य से काफी कम रहा।
तपती धरती के साथ उबल रहे समुद्र
मई 2025 में समुद्री की सतह का औसत तापमान 20.79 डिग्री सेल्सियस रहा, जो रिकॉर्ड में इस महीने का दूसरा सबसे ऊंचा स्तर है। यह मई 2024 के रिकॉर्ड से महज 0.14 डिग्री सेल्सियस कम था। इस दौरान कई महासागरों और समुद्री क्षेत्रों में तापमान सामान्य से काफी अधिक बना रहा। इनमें खासकर उत्तर-पूर्वी उत्तर अटलांटिक क्षेत्र में समुद्री हीटवेव देखी गई, जहां सतह का औसत तापमान मई महीने में रिकॉर्ड स्तर पर रहा। इसके अलावा, अधिकांश भूमध्य सागर भी सामान्य से काफी अधिक गर्म रहा।
मई 2025 में आर्कटिक की समुद्री बर्फ सामान्य से दो फीसदी कम रही, जो पिछले 47 वर्षों के सैटेलाइट रिकॉर्ड में मई महीने के लिहाज से 9वां सबसे कम स्तर है। क्षेत्रीय रूप से सबसे कम बर्फ यूरोप और एशिया के उत्तरी तटों (बारेंट्स, कारा और लैपतेव सागर) के आसपास देखी गई। वहीं अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ सामान्य से नौ फीसदी कम रही, जो इस महीने का रिकॉर्ड में अब तक का 5वां सबसे कम स्तर है।
कहीं भारी बारिश तो कहीं पड़ा सूखा
मई 2025 में उत्तरी और मध्य यूरोप, साथ ही रूस, यूक्रेन और तुर्किये के दक्षिणी हिस्सों में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई। इसके विपरीत, दक्षिणी यूरोप, फिनोस्केंडिनिया, बाल्टिक से ब्लैक सी तक फैले क्षेत्रों और पश्चिमी रूस में सामान्य से अधिक बार्शी हुई। इसी महीने, उत्तरी अमेरिका, अफ्रीका, मध्य एशिया, दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के बड़े हिस्सों में भी सूखा पड़ा। दूसरी ओर, अलास्का, अमेरिका का पूर्वी हिस्सा, रूस, भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से, दक्षिण-पूर्वी अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी व उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में सामान्य से ज्यादा बारिश दर्ज की गई।
यूरोप में मार्च से मई 2025 के दौरान उत्तर और पश्चिमी हिस्सों में सामान्य से कम बारिश हुई, जबकि दक्षिणी हिस्सों और उत्तर-पश्चिमी रूस में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई। चिंता की बात है कि उत्तर-पश्चिमी यूरोप के कई हिस्सों में 1979 के बाद से सबसे कम बारिश और मिट्टी में नमी देखी गई। लगातार सूखे की स्थिति के कारण पूरे यूरोप में 1992 से रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से वसंत में नदियों का जल प्रवाह सबसे कम रहा।
यूरोप के बाहर, पश्चिमी उत्तर अमेरिका, उप-उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, मध्य एशिया के हिस्सों, चीन और ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी हिस्सों में भी सामान्य से कम बारिश हुई। इसके विपरीत, पूर्वी उत्तर अमेरिका, अलास्का, रूस, दक्षिणी अफ्रीका और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई। देखा जाए तो मई 2025 के आंकड़े साफ तौर पर इशारा करते हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर अब हर महाद्वीप, हर मौसम और हर क्षेत्र में महसूस हो रहा है। भले ही डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा अभी औपचारिक और स्थाई रूप से न टूटी हो, लेकिन तेजी से बढ़ते तापमान, समुद्री में गर्मी, और बारिश के असामान्य पैटर्न दर्शाते हैं कि दुनिया को तत्काल और निर्णायक जलवायु कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )