ललित मौर्या

आईयूसीएन रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि यूरोप में पाई जाने वाली जंगली मधुमक्खियों की करीब 10 फीसदी प्रजातियों पर विलुप्ति होने का खतरा मंडराने लगा है। देखा जाए तो यह आंकड़ा 2014 में दर्ज 77 प्रजातियों की तुलना में दोगुने से भी अधिक है। यूरोप में परागण करने वाली प्रजातियों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है, यह चेतावनी आईसीयूएन द्वारा जारी रेड लिस्ट के नए मूल्यांकन में सामने आई है।

रिपोर्ट से पता चला है कि यूरोप में तितलियों की 15 फीसदी प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। चिंता की बात है कि यूरोप में तितलियों की संकटग्रस्त प्रजातियों की संख्या पिछले दशक में 76 फीसदी बढ़ गई है। रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप में अध्ययन की गई 442 में से 65 प्रजातियां खतरे में हैं, जबकि 2010 में यह संख्या महज 37 दर्ज की गई थी। देखा जाए तो यह आंकड़े गंभीर त्रासदी को दर्शाते हैं।

रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि तितलियों की 40 फीसदी से अधिक ऐसी प्रजातियां जो केवल यूरोप में ही पाई जाती हैं वो विलुप्त होने की कगार तक पहुंच गई हैं। इनमें से एक प्रजाति मेडिरन लार्ज वाइट भी है, जो केवल पुर्तगाल के मेडिरा द्वीप पर पाई जाती थी, अब आधिकारिक रूप से विलुप्त घोषित कर दी गई है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि यूरोप में पाई जाने वाली जंगली मधुमक्खियों की करीब 10 फीसदी प्रजातियों (1,928 में से कम से कम 172) पर विलुप्ति होने का खतरा मंडराने लगा है। देखा जाए तो यह आंकड़ा 2014 में दर्ज 77 प्रजातियों की तुलना में दोगुने से भी अधिक है।

खतरे में परागण के लिए महत्वपूर्ण भवरों की 15 प्रजातियां

हालांकि उस समय 57 फीसदी जंगली मधुमक्खियों के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं थी, लेकिन अब यह प्रतिशत घटकर 14 फीसदी रह गया है। इससे यह रिपोर्ट यूरोप की जंगली मधुमक्खियों की स्थिति पर अब तक का सबसे विस्तृत और भरोसेमंद मूल्यांकन बन गई है। इसी तरह वहां भवरों की 15 प्रजातियां और सेलोफेन मधुमखियों की 14 फीसदी प्रजातियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

गौरतलब है कि भवरों की यह प्रजातियां मटर, सेम, मूंगफली और क्लोवर जैसे फसलों के परागण में मदद करती हैं, जबकि सेलोफेन मधुमक्खियां डेजी परिवार के पौधों और लाल मेपल, विलो जैसी पेड़-पौधों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसके अलावा, माइनिंग बी प्रजाति ‘सिम्पानुर्गस फिलोपोडस’, जो यूरोप में इस वंश की एकमात्र प्रजाति और महाद्वीप के लिए अनोखी है, अब गंभीर रूप से खतरे में पड़ी प्रजातियों में शामिल कर दी गई है।

क्या हम इंसान हैं इसके जिम्मेवार

देखा जाए तो यूरोप में घटते परागणकर्ताओं के लिए कहीं न कहीं हम इंसान ही जिम्मेवार हैं। रिपोर्ट से पता चला है कि जंगली मधुमक्खियों और तितलियों के लिए सबसे बड़ा खतरा उनके आवास को हो रहा नुकसान है। फूलों से भरपूर घास के मैदान, पारंपरिक कृषि और प्राकृतिक परिदृश्य इनके जीवन का आधार हैं। लेकिन, कृषि और वनों की तीव्रता, रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक, इन प्रजातियों के लिए गंभीर खतरा बन गए हैं। इसके साथ ही, जलवायु परिवर्तन से भी 52 फीसदी संकटग्रस्त तितलियों के लिए खतरा बढ़ा रहा है, विशेषकर लंबे गर्म मौसम, सूखे और जंगल की आग से इनपर मंडराता खतरा बढ़ रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक उर्वरकों से नाइट्रोजन का जमाव और व्यापक कीटनाशकों का उपयोग, जिनमें हर्बिसाइड भी शामिल हैं फूलों की विविधता कम कर रहे हैं, इससे कई परागकणकों को नुकसान पहुंचा रहा है। उदाहरण के लिए शाइनी ड्यूफोरिया, जो कभी यूरोप के मध्य भाग के मैदानों में बेहद आम थी, अब करीब-करीब पूरी तरह गायब हो चुकी है और इसे संकटग्रस्त घोषित कर दिया गया है। डॉक्टर डेनिस मिशेज, जोकि यूरोप की जंगली मधुमक्खियों के मूल्यांकन के प्रमुख हैं, उनका कहना है यूरोप में फूलों वाले पौधों की 90 फीसदी प्रजातियां मधुमक्खियों पर निर्भर हैं। ऐसे में जंगली मधुमक्खियों की संख्या में गिरावट से पौधों की कई प्रजातियां भी संकट में पड़ सकती हैं। वहीं डॉक्टर मार्टिन वार्न, यूरोपीय तितलियों के विशेषज्ञ, कहते हैं कि यदि इनके आवास सुरक्षित और बड़े बनाए जाएं, तो कुछ प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।

देखा जाए तो मधुमखियां, भवरों और तितलियों जैसी परागणक करने वाली प्रजातियों की सुरक्षा हमारे खाद्य प्रणाली, पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के लिए बेहद जरूरी है। यूरोपीय आयोग ने इस संकट का सामना करने के लिए व्यापक निगरानी प्रणाली लागू की है। आंकड़े दिखाते हैं कि इस स्थिति से उबरने के लिए तत्काल संयुक्त कार्रवाई की जरूरत है, ताकि इंसान और प्रकृति दोनों के लिए एक सुरक्षित और फलदायक भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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