ललित मौर्या

देश-दुनिया में महिलाओं की समानता को लेकर भले ही कितनी भी बड़ी-बड़ी बाते की जाती हों, लेकिन सच यही है कि आज भी महिलाएं अपने अधिकारों के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। इसकी झलक सत्ता के गलियारों से लेकर खेती-किसानी तक में देखी जा सकती है।

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी नई रिपोर्ट “वीमेन राइट्स इन रिव्यु 30 ईयर आफ्टर बीजिंग” में इसपर प्रकाश डालते हुए लिखा है 2024 में दुनिया के एक चौथाई देशों में महिला अधिकारों पर संकट बढ़ा है। इसका मतलब है कि इन देशों में लैंगिक समानता में सुधार के लिए किए जा रहे प्रयासों पर दबाव बढ़ा है।

हैरानी की बात है कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में हुई प्रगति के बावजूद, महज 87 देशों का ही नेतृत्व कभी किसी महिला ने किया है। इससे ज्यादा विडम्बना क्या होगी कि हर 10 मिनट में, एक महिला या बच्ची की उसके साथी या परिवार के सदस्य द्वारा हत्या कर दी जाती है।

रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में महिलाओं और बच्चियों के अधिकार खतरे में हैं, भेदभाव बढ़ रहा है, कानूनी सुरक्षा कमजोर हो रही है और महिलाओं का समर्थन, सुरक्षा और सहायता करने वाले कार्यक्रमों और संस्थानों के लिए धन की कमी हो रही है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से ठीक पहले, आज 5 मार्च 2025 को संयुक्त राष्ट्र के संगठन यूएन वीमेन ने यह रिपोर्ट जारी की। यह संगठन महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए काम करता है। गौरतलब है कि हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। डिजिटल प्रौद्योगिकी और एआई जहां वरदान साबित हुए हैं, वहीं रिपोर्ट के मुताबिक यह रूढ़िवादिता को भी फैला रहे हैं। डिजिटल तकनीकों में मौजूद लैंगिक अंतर, महिलाओं के अवसरों को सीमित कर रहा है।

रिपोर्ट का यह भी कहना है कि पिछले दशक में संघर्ष के बीच रहने को मजबूर महिलाओं और बच्चियों की संख्या में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है, जोकि बेहद चिंताजनक हैं। महिला अधिकारों की पैरवी करने वालों को हर दिन धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ रहा है, यहां तक की उनकी हत्याएं तक की जा रही हैं। वहीं दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन, कोरोना महामारी और खाद्य एवं ईंधन की बढ़ती कीमतों जैसे वैश्विक संकटों ने कार्रवाई को पहले से कहीं अधिक जरूरी बना दिया है।

गहरी हैं असमानता की जड़ें

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट ‘प्रोग्रेस ऑन द सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स: द जेंडर स्नेपशॉट 2024’ में भी कहा है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच असमानता की खाई अभी भी बहुत गहरी है, जिसे भरना आसान नहीं है। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि संसद में महिलाओं की बराबर की हिस्सेदारी किसी सपने से कम नहीं। यदि मौजूदा रफ्तार से देखें तो इस सपने को 2063 तक साकार करना सम्भव नहीं होगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी अपनी एक रिपोर्ट ‘फेयर शेयर फॉर हेल्थ एंड केयर’ में स्वास्थ्य क्षेत्र में महिलाओं और पुरुषों के बीच मौजूद खाई को उजागर किया है। रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी 67 फीसदी है। इसके बावजूद उन्हें पुरुषों की तुलना में 24 फीसदी कम वेतन से संतोष करना पड़ता है।

वर्ल्ड बैंक ने भी इस असमानता को उजागर करते हुए अपनी रिपोर्ट “वीमेन बिजनेस एंड द लॉ 2023″ में कहा है वैश्विक स्तर पर पुरुषों की तुलना में महिलाऐं अपने कानूनी अधिकारों का बमुश्किल 77 फीसदी ही लाभ ले पाती हैं। रिपोर्ट की मानें तो दुनिया भर में कामकाजी उम्र की करीब 240 करोड़ महिलाओं को अभी भी पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं। इतना ही नहीं यदि मौजूदा रफ्तार से देखें वर्तमान गति से इस लक्ष्य को हासिल करने में औसतन कम से कम 50 वर्ष लगेंगे।

देखा जाए तो भले ही आज हमने विकास के कितने ही पायदान चढ़ लिए हों लेकिन अभी भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा नहीं मिला है। वो आज भी रोजगार, आय, शिक्षा, स्वास्थ्य सहित कई क्षेत्रों में पुरुषों से पीछे हैं। स्थिति यह है कि दुनिया में केवल एक फीसदी महिलाएं उन देशों में रह रही हैं जिन्होंने महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता दोनों में कामयाबी हासिल की है। हालांकि इसके बावजूद दुनिया में कोई भी देश ऐसा नहीं है, जो महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक दिला पाने की कसौटी पर पूरी तरह खरा उतरा हो।

रिपोर्ट के मुताबिक पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा पर बहुत कम निवेश किया जाता है। इसी तरह रोजगार में उनके पास पुरुषों से कम मौके उपलब्ध होते हैं। यदि मौका मिल भी जाए तो उन्हें पुरुषों से कम वेतन दिया जाता है। आंकड़ों के अनुसार 24.5 करोड़ महिलाऐं या युवतियां अपने ही साथ के चलते हर साल शारीरिक और/या यौन हिंसा का शिकार बनती हैं।

आंकड़े दर्शाते है कि कृषि में जिस काम का पुरुषों को एक रुपया मिलता है, वहीं उसकी तुलना में महिलाओं को केवल 82 पैसे ही मिल रहे हैं। मतलब की दोनों की मजदूरी में करीब 18.4 फीसदी का अंतर है। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी रिपोर्ट “द स्टेटस ऑफ वीमेन इन एग्रीफूड सिस्टम्स” में सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक जहां 2005 में 33 फीसदी महिलाएं अपनी जीविका के लिए कृषि पर निर्भर थी वहीं 2019 में यह आंकड़ा नौ फीसदी की गिरावट के साथ 24 फीसदी पर पहुंच गया है।

लैंगिक असमानता की यह दूरी सिर्फ यहां तक ही सीमित नहीं है, कृषि उत्पादकता के मामले में भी इनके बीच की खाई काफी गहरी है। पता चला है कि पुरुष और महिला किसानों के बीच कृषि उत्पादकता में करीब 24 फीसदी का अंतर है। इसी तरह पुरुषों और महिलाओं के बीच खाद्य असुरक्षा की खाई 2019 में 1.7 फीसदी से 2021 में 4.3 फीसदी तक बढ़ गई।

डाउन टू अर्थ में प्रकाशित के रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महिलाओं के सामने नियमित रोजगार का संकट तेजी से अपने पांव पसार रहा है। भारत में महिलाओं का महत्वपूर्ण श्रम उनके घरों में दिखता है। जहां वे लगभग सभी काम और बच्चों की देखभाल करती हैं। वे कृषि क्षेत्रों में जहां फसल उगाती हैं और जानवरों को पालने से लेकर उनको चराने का जिम्मा भी परिवार में उनके ही हिस्से में ही आता है। यह सब वे बिना पैसे के कर रही हैं और इसमें उनका अच्छा खासा श्रम जाया होता है। गौरतलब है कि 2025 में, बीजिंग घोषणा के 30 साल पूरे होंगे। यह घोषण महिला अधिकारों पर सबसे दूरदर्शी रोडमैप है। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी यह रिपोर्ट 159 सरकारों से मिले फीडबैक के आधार पर तैयार की गई है। रिपोर्ट में 1995 से अब तक इस दिशा में हुई प्रगति पर प्रकाश डाला गया है।

मातृ मृत्यु दर में आई है एक तिहाई की कमी

इसके मुताबिक बच्चियों को भी अब शिक्षा के समान अवसर मिल रहे हैं। मातृ मृत्यु दर में एक तिहाई की कमी आई है और संसदों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व दोगुने से भी अधिक हो गया है। देश भेदभावपूर्ण कानूनों को हटाना जारी रखे हुए हैं।

1995 से 2024 के बीच 189 देशों में 1,531 कानूनी बदलाव किए गए हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जब महिलाओं के अधिकारों का सम्मान किया जाता है, तो परिवार, समुदाय और अर्थव्यवस्थाएं फलती-फूलती हैं। हालांकि साथ ही रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया है कि लैंगिक समानता को हासिल करने और 2030 के सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अभी भी बहुत किया जाना बाकी है। इसीलिए इस रिपोर्ट में नया बीजिंग+30 एक्शन एजेंडा को भी शामिल किया गया है, जोकि इस अधूरे काम को पूरा करने की एक साहसिक योजना है।

समानता का भविष्य कार्रवाई से शुरू होता है। इस एजेंडा में जिन छह मुद्दों पर जोर दिया गया है। इसके मुताबिक महिलाओं और बच्चियों को प्रौद्योगिकी, एआई में नेतृत्व और ऑनलाइन सुरक्षा तक समान पहुंच होनी चाहिए। गरीबी को खत्म करने के लिए स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और देखभाल सेवाओं में निवेश की आवश्यकता है, जिससे कहीं ज्यादा अवसर और रोजगार पैदा हों। इसी तरह मजबूत कानूनों की मदद से सभी रूपों में हिंसा को समाप्त किया जाना चाहिए, जो अच्छी तरह से वित्त पोषित सामुदायिक समर्थन द्वारा समर्थित हो। महिलाओं को निर्णय लेने में आवाज उठाने का हक है। इसमें स्थाई शांति और सुरक्षा पर भी जोर दिया गया है। इसी तरह जलवायु कार्रवाई में महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा देना चाहिए। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पर्यावरण अनुकूल भविष्य में महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ावा दिया जाए।

रिपोर्ट के मुताबिक युवा महिलाओं और बच्चियों पर ध्यान केंद्रित करना वर्तमान और भविष्य में सफलता की कुंजी है। ये सभी कार्रवाइयां महिला अधिकारों की दिशा में हो रही प्रगति को बढ़ावा दे सकती हैं और 2030 के लक्ष्यों को वापस पटरी पर लाने की क्षमता रखती हैं। बीजिंग+30 स्मरणोत्सव और महिलाओं की स्थिति पर आगामी आयोग (सीएसडब्ल्यू69) इस एजेंडे को स्थाई नीतियों और वैश्विक प्रतिबद्धताओं में बदलने के लिए महत्वपूर्ण क्षण हैं। यह साल प्रगति और चुनौतियों दोनों का है। आज आगे बढ़ने की जरूरत है और एक ऐसी दुनिया के निर्माण की है जहां सभी महिलाओं और बच्चियों को समान अधिकार और अवसर मिल सकें।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “जब महिलाएं और बच्चियां आगे बढ़ती हैं, तो हम सभी आगे बढ़ते हैं। इसके बावजूद दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों पर हमला जारी है। समानता को बढ़ावा देने के बजाय, हम महिलाओं के प्रति घृणा को मुख्यधारा में आते देख रहे हैं।“

उनका आगे कहना है कि हमें सभी महिलाओं, बच्चियों और हर किसी के लिए मानव अधिकार, समानता और सशक्तिकरण को वास्तविक बनाने के लिए मिलकर काम करना होगा। यूएन वीमेन की कार्यकारी निदेशक सीमा बहौस का कहना है, “लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की राह में जटिल चुनौतियां हैं, लेकिन हम हार नहीं मानेंगे। महिलाएं और बच्चियां बदलाव चाहती हैं, और वे इसकी हकदार हैं।” ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर यूएन वीमेन ने सभी से महिलाओं और बच्चियों के अधिकारों, सशक्तिकरण और समानता के लिए खड़े होने का आह्वान किया है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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