देश की राजधानी दिल्‍ली समेत अन्‍य राज्यों में दिवाली के बाद से प्रदूषण स्‍तर काफी बढ़ गया है। दिल्‍ली समेत अन्‍य शहरों की हवा जहरीली हो चुकी है। वायु में प्रदूषण स्‍तर के बढ़ने से हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर आम इंसान को सांस संबंधी बीमारियों की चपेट में ला ही रहे हैं साथ ही हाल ही में हुए शोध में ये बात सामने आई है कि ये स्‍वस्‍थ लोगों में डिप्रेशन का खतरा बढ़ा रहे हैं। 

जरनल पीएनएएस में प्रकाशित इस रिसर्च में वायु प्रदूषण(Air Pollution), न्यूरो इमेजिंग (Neuro Imaging), ब्रेन जीन एक्सप्रेशन (Brain Gene Expression) और अन्य अतिरिक्त वैज्ञानिक आंकड़ों की मदद से 40 से अधिक देशों के लोगों का अंतरराष्ट्रीय आनुवांशिक संग्रहालय (International Genetic Museum) बनाया गया है.

चीन की पेकिंग विश्वविद्यालय (Peking University) के सहयोग से इस रिसर्च को लीड करने वाले अमेरिका में एलआईबीडी यानी लेबर इंस्टीट्यूट फॉर ब्रेन डेवलेपमेंट (labor institute for brain development) के हाओ यांग टैन (Hao Yang Tan) ने बताया कि इस शोध का अहम संदेश यह है कि वायु प्रदूषण दिमाग की भावनात्मक और पहचान संबंधी क्षमता को प्रभावित करके बदल रहा है. यह बदलाव लोगों को अवसाद (Depression) की ओर ढकेल रहा है.

मनुष्‍य के ब्रेन के सर्किट को प्रभावित कर रहा है

लिबर इंस्टीट्यूट के हाओ यांग टैन ने कहा अमेरिका में ब्रेन डेवलपमेंट (LIBD) के लिए “इस अध्ययन में मुख्य बात सामने आई है जिसका खुलासा पहली बार हुआ है, वह यह है कि वायु प्रदूषण डिप्रेशन के अनुकूल जीन की अभिव्यक्ति को बदलकर मस्तिष्क की महत्वपूर्ण समझने और भावनात्मक वाली सर्किट को प्रभावित कर रहा है।”

ऐसे लोग अत्‍यधिक हाई रिस्‍क में आते हैं

पेकिंग यूनिवर्सिटी में चीन के सहयोग से इस शोध को लीड करने वाले टैन ने बताया अत्‍यधिक प्रदूषण वाले क्षेत्रों में अधिक लोग डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं। जिनके जीन में डिप्रेशन की समस्‍या है ऐसे लोग अत्‍यधिक हाई रिस्‍क में आते हैं। इस शोध में शोधकर्ताओं ने ये भी पाया कि कुछ लोगों में अवसाद विकसित होने की कुछ प्रवृत्ति होती है, लेकिन कुछ लोगों के जीन में इसके लिए हाई रिस्‍क होता है। उन्होंने कहा कि इस प्रवृत्ति का मतलब यह नहीं है हर हाल में व्‍यक्ति डिप्रेशन का शिकार होगा।हालांकि अध्ययन से पता चलता है कि स्वस्थ मनुष्यों में अन्‍यथा डिप्रेशन विकसित होने की संभावना अधिक होती है, जिनके पास ये प्रमुख जीन होते हैं और जो हवा में High-particulate-matter वाले वातावरण में रहते हैं।

प्रदूषण बढ़ने से बदलता है बिहेवियर
टैन ने बताया कि अत्यधिक प्रदूषण वाले इलाकों में अधिकाधिक लोग अवसाद के शिकार हो रहे हैं. पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ने से लोगों का व्यवहार बदलने लगता है. शोधकर्ताओं के अनुसार कमोबेश सभी लोगों में अवसाद होने की आशंका होती है, लेकिन कुछ लोगों में उनकी आनुवांशिकता के कारण इसका खतरा अत्यधिक रहता है.

साइंटिस्टों का कहना है कि वायु प्रदूषण (Air Pollution) सिर्फ श्वसन रोगों (respiratory diseases) ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य (mental health) के लिए भी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है. इस बारे में लोगों को विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है.

LIBD में पोस्टडॉक्टरल फेलो और के प्रमुख लेखक जी ली ने कहा, इस शोध के परिणाम वायु प्रदूषण के बीच एक सीधा, न्यूरोलॉजिकल लिंक दिखाते हैं और बताते हैं कि वायु प्रदूषण मनुष्‍य के मस्तिष्क के भावनात्मक और समझने की शक्ति को प्रभावित कर डिप्रेशन के जोखिम को कैसे बढ़ाता है। इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि दो कारक (भावनात्मक और समझना) इस तरह से जुड़े हुए हैं कि उनके डिप्रेशन के जोखिम पर उनका गुणक प्रभाव पड़ता है। यानी जोखिम वाले जीन और खराब हवा एक साथ डिप्रेशन के जोखिम मिलकर और बढ़ा देता है। ये अध्‍ययन बीजिंग में रहने वाले 352 स्वस्थ वयस्कों पर किया गया जो अत्‍यधिक प्रदूषित जगहों में एक है।

 

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