दयानिधि
जंगलों को लेकर संयुक्त राष्ट्र मंच (यूएनएफएफ19) के 19वें सत्र में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। 14 सालों में अंतर्राष्ट्रीय वन प्रशासन पर पहली वैश्विक संश्लेषण रिपोर्ट में जंगलों के ‘जलवायुकरण’ के प्रति बढ़ते झुकाव के बारे में बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जंगलों की भूमिका को महज कार्बन जमा करने या कार्बन सिंक तक सीमित कर दिया गया है, जिससे पारिस्थितिकी और सामाजिक कल्याण से संबंधित उनकी भूमिका कम हो जाती है।
अंतर्राष्ट्रीय वन अनुसंधान संगठन (आईयूएफआरओ) के विज्ञान-नीति कार्यक्रम (एससीआईपीओ आई) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय वन प्रशासन की प्रवृत्तियों, कमियों और नए नजरिए की एक महत्वपूर्ण समीक्षा की गई है। यह साल 2010 के बाद से अंतर्राष्ट्रीय वन प्रशासन में सबसे महत्वपूर्ण विकास को समाहित करती है। रिपोर्ट के निष्कर्षों में भूमि उपयोग और जलवायु नीति निर्माताओं के लिए न्यायसंगत और प्रभावी वन नीतियों के कार्यान्वयन को प्रोत्साहित करने के लिए कार्रवाई योग्य जानकारी प्रदान करती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जंगलों को काटे जाने को धीमा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वन प्रशासन उतना सफल नहीं हुआ जितना उसे होना चाहिए था, हालांकि इसे मापना कठिन है। उष्णकटिबंधीय वनों को काटे जाने की वैश्विक दरों को कम करने में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का नुकसान और बढ़ती सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को लेकर अभी भी संकट बढ़ रहा है।
रिपोर्ट के हवाले से आईयूएफआरओ साइपोल के उप समन्वयक डॉ. नेल्सन ग्रिमा कहती हैं कि “अंतर्राष्ट्रीय वन प्रशासन के लिए वर्तमान ‘खेल का मैदान’ पहले से कहीं अधिक भीड़ भाड़ वाला और बंटा हुआ है, जिसमें नए अभिनेताओं और साधनों की भरमार है। अब चुनौती इस बात की है कि विभिन्न अभिनेताओं के बीच शक्ति की विषमताओं को दूर करने के लिए वन नीति को मजबूत और समन्वित किया जाए।”
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु संकट की बढ़ती तेजी ने जंगलों की भूमिका को महज कार्बन जमा करने तक सीमित कर दिया है। इससे कार्बन और जैव विविधता के लिए नए बाजारों खुले हैं जो अक्सर लंबे समय तक स्थिरता और न्याय पर कुछ समय के आर्थिक फायदों पर ही गौर करते हैं। लोगों के हितों और समुदाय के नेतृत्व वाले तरीकों को शामिल करने वाला प्रयास एक उचित विकल्प है, लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि अब तक, इसने सीमित भूमिका निभाई है।
रिपोर्ट के हवाले से ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कॉन्स्टेंस मैकडरमोट कहते हैं कि “वन प्रशासन के लिए बाजार आधारित नजरिए जैसे कि वन कार्बन ट्रेडिंग और जंगलों को बिल्कुल नुकसान न पहुंचना, आपूर्ति श्रृंखलाएं वन प्रशासन और धन के लिए तेजी से लोकप्रिय जरिया बन रही हैं। दुर्भाग्य से, जैसा कि रिपोर्ट से पता चलता है, वे असमानताओं को बनाए रखने और टिकाऊ वन प्रबंधन पर प्रतिकूल प्रभाव पैदा करने के खतरे उठाते हैं। राज्य विनियमन और समुदाय के नेतृत्व वाली पहल जैसे बिना-बाजार आधारित तंत्र न्यायपूर्ण वन प्रशासन के लिए महत्वपूर्ण वैकल्पिक मार्ग हो सकते हैं।”
रिपोर्ट के हवाले से रिपोर्ट के मुख्य लेखक, प्रो. फ्रैंकलिन ओबेंग-ओडूम कहते हैं “धन के स्रोतों के बावजूद, सामान्य आधार सामाजिक समावेश को आगे बढ़ाना, सामाजिक-पर्यावरणीय अन्याय का निवारण करना, संसाधन-निर्भर समुदायों के भूमि अधिकारों की रक्षा करना और अधिक न्यायपूर्ण पारिस्थितिक भविष्य की ओर बढ़ने का समर्थन करना जरूरी है।
उन्होने आगे कहा, जैसे-जैसे जलवायु संकट से निपटने की तत्काल कार्रवाई करने के लिए सरकारों और कॉर्पोरेट अभिनेताओं पर दबाव बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे वनों को काटे जाने पर रोक या कुल जैव विविधता के फायदों जैसे दूरगामी लक्ष्यों को बढ़ावा मिला है। फिर भी, केवल पेड़ों को काटे जाने की दरों का उपयोग करके वन प्रशासन की सफलता को मापना एक छोटी तस्वीर प्रस्तुत करता है, जिसमें मानवता और प्रकृति के बीच परस्पर संबंध को शामिल नहीं किया जा सकता है।
आईयूएफआरओ की उपाध्यक्ष और रिपोर्ट की मुख्य लेखिका, प्रो. डेनिएला क्लेनश्मिट कहती हैं कि “महत्वाकांक्षी और कम करने के संकल्प अतीत की बात होनी चाहिए। हम विन-विन की कहानियों का उपयोग करने और अपने जंगलों को बेहतर ढंग से समझने के लिए सामाजिक निर्भरता और प्रभावों को शामिल न करने के मामले में बहुत पीछे रह गए हैं। शासन को मापने का प्रमुख संकेतक मुख्य रूप से वनों को काटे जाने की दर से संबंधित रहा है। हालांकि वन लोगों के लिए कई आवश्यक वस्तुएं और सेवाएं प्रदान करते हैं, यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय वन शासन की प्रभावशीलता को भी इन आवश्यकताओं के विरुद्ध मापा जाना चाहिए।”
अंतर्राष्ट्रीय वन शासन की चुनौतियों के जवाब में, रिपोर्ट नीति निर्माताओं से वनों को महज कार्बन जमा करने या कार्बन सिंक से अधिक महत्व देने, लंबी अवधि के बाजार-आधारित निवेशों को प्राथमिकता देने और उन पर निर्भर समुदायों के लिए एक न्यायसंगत और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने का आह्वान करती है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )