ललित मौर्या
पिछले कुछ दशकों में आर्थिक विकास के साथ भारतीय जीवनशैली में भी तेजी से बदलाव आया है। इसके कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक प्रभाव सामने आए हैं। जीवनशैली और खानपान में यह बदलाव बड़ी तेजी से भारतीयों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। इसके चलते मधुमेह और ह्रदय रोग जैसी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं।
अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक नए अध्ययन में इस समस्या पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि दुनिया में करीब 83 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, जिनमें से एक चौथाई से अधिक मरीज भारतीय हैं। मतलब की देश में 21.2 करोड़ वयस्क मधुमेह का शिकार हैं।
इसके बाद चीन में मधुमेह पीड़ितों की संख्या 14.8 करोड़ दर्ज की गई है। ऐसे में भारत को दुनिया की मधुमेह राजधानी कहना गलत नहीं होगा।
आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में 82.8 करोड़ वयस्क मधुमेह से पीड़ित हैं, जिनमें से 42 करोड़ महिलाएं, जबकि 40.8 करोड़ पुरुष हैं। इसका मतलब है कि दुनिया में 13.9 फीसदी महिलाएं और 14.3 फीसदी पुरुष इस समस्या से जूझ रहे हैं।
इसी तरह पिछले तीन दशकों के आंकड़ों को देखें तो दुनिया में डायबिटीज के मामले में चार गुणा से अधिक की वृद्धि आई है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि दुनिया में मधुमेह के मामले बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं। 1990 में जहां इस बीमारी से पीड़ित मरीजों की संख्या 63 करोड़ थी, वो 2022 में बढ़कर 83 करोड़ तक पहुंच गई है।
अध्ययन के मुताबिक जहां 1990 में सात फीसदी वयस्क इससे पीड़ित थे। वहीं 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 14 प्रतिशत तक पहुंच गया है। निम्न और मध्य-आय वाले देशों में इसके मामलों में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है, हालांकि वहां आज भी करोड़ों लोगों उपचार से दूर हैं। कहीं न कहीं यह रुझान वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में मौजूद असमानताओं को प्रदर्शित करते हैं।
आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में 30 वर्ष या उससे अधिक आयु के 45 करोड़ वयस्कों तक मधुमेह का जरूरी उपचार उपलब्ध नहीं था। देखा जाए तो 2022 में मधुमेह से पीड़ित 59 फीसदी मरीजों तक जरूरी उपचार उपलब्ध नहीं था। विडम्बना देखिए कि इनमें से 90 फीसदी निम्न- और मध्य-आय वाले देशों में रह रहे हैं।
अध्ययन में वैश्विक स्तर पर डायबिटीज की दर में मौजूद विषमता को भी उजागर किया है। उदाहरण के लिए, दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्व भूमध्यसागर क्षेत्र में 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की 20 फीसदी आबादी इससे पीड़ित है। इन दोनों क्षेत्रों के साथ-साथ अफ्रीका में मधुमेह के उपचार तक पहुंच सबसे कम है, जहां हर दस में से महज चार को ही ग्लूकोज को नियंत्रित करने वाली दवा मिल पा रही है।
2050 तक मधुमेह से पीड़ित होगा हर आठवां इंसान
द लैंसेट में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के मुताबिक 2050 तक मधुमेह से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़कर 130 करोड़ पर पहुंच सकती है। यदि संयुक्त राष्ट्र की मानें तो 2050 तक दुनिया की आबादी बढ़कर 980 करोड़ पर पहुंच जाएगी। मतलब की तब तक हर आठवां इंसान मधुमेह से पीड़ित होगा।
गौरतलब है कि मधुमेह एक ऐसी समस्या है, जिस दौरान रक्त में शर्करा की मात्रा कहीं ज्यादा बढ़ जाती है। मधुमेह जिसे ‘डायबिटीज’ या ‘शुगर’ भी कहा जाता है, एक तरह का मेटाबोलिक डिसऑर्डर है।
यह चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है जो अनुवाशिंक या फिर खराब खानपान और जीवनशैली के कारण हो सकती है। यह बीमारी तब होती है, जब शरीर के पैन्क्रियाज में इन्सुलिन की कमी हो जाती है, मतलब वहां कम मात्रा में इन्सुलिन पहुंचता है। इसकी वजह से खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है।
बता दें की इन्सुलिन एक हार्मोन है। जो शरीर के भीतर प्राकृतिक तौर पर पाचन ग्रंथि में बनता है। यह शरीर में ग्लूकोस के स्तर को नियंत्रित करता है। इसकी कमी से रक्त में ग्लूकोस का स्तर बढ़ जाता है जो मधुमेह का कारण बनता है।
आमतौर पर डायबिटीज दो प्रकार के होते हैं पहला टाइप 1 जिसमें शरीर में इन्सुलिन नहीं बनता या बहुत कम बनता है, जबकि टाइप 2 में शरीर समय के साथ पर्याप्त इन्सुलिन के निर्माण की क्षमता खो देता है। ऐसे में यदि इस बीमारी पर ध्यान न दिया जाए तो इससे दिल के दौरा पड़ने, स्ट्रोक, गुर्दे की विफलता, अंधापन, गैंगरीन, घावों का न भरना आदि का खतरा बढ़ जाता है।
रिसर्च से पता चला है कि टाइप 2 मधुमेह की सबसे बड़ी वजह बढ़ता मोटापा है, जो इससे होने वाली विकलांगता और मृत्यु दर के करीब 52 फीसदी के लिए जिम्मेवार है। इसके बाद खराब खान-पान, पर्यावरण और व्यवसाय से जुड़े जोखिम, तम्बाकू, शारीरिक गतिविधियों में कमी और शराब का सेवन जैसे कारक इसके बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेवार हैं
देखा जाए तो मधुमेह कोई ऐसी बीमारी नहीं जो लाइलाज हो। जीवनशैली में कुछ बदलावों के जरिए इससे उबरा जा सकता है। हालांकि कुछ मामलों में इसकी रोकथाम कहीं ज्यादा जटिल है। एक तो यह बीमारी आनुवांशिक हो सकती है। वहीं पहले से कमजोर और हाशिए पर जीवन जीने को मजबूर समुदायों के लिए यह किसी अभिशाप से कम नहीं क्योंकि महंगी दवाएं और इलाज न मिल पाने का जोखिम उनके लिए गंभीर समस्या पैदा कर सकता है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )