संजय श्रीवास्तव
आप यकीन करें या नहीं करें लेकिन साइंटिस्ट त्वचा जैसी एक ऐसी जेल विकसित कर ली है. जो किसी भी कटे-फटे घाव या जख्म को केवल 4 घंटे में 90 फीसदी तक ठीक कर देगा और 24 घंटे में पूरा भर देगा. हां, किसी चमत्कारी की ही तरह है. जानते हैं कि ये जेल की स्किन क्या है, कैसे काम करेगी और साइंटिस्ट ने इसे कैसे और कब बनाया. इस खोज को बहुत क्रांतिकारी खोज माना जा रहा है.
हाल ही में ऑल्टो विश्वविद्यालय (Aalto University) और बेयरुथ विश्वविद्यालय (University of Bayreuth) के शोधकर्ताओं ने एक अभूतपूर्व हाइड्रोजेल विकसित किया है, जो मानव त्वचा की ताकत, लचीलापन और सेल्फ हीलिंग यानि स्व-उपचार की क्षमता वाला है.
इस नए पदार्थ को साइंस में जबरदस्त आविष्कार माना जा रहा है, ये चिकित्सा में क्रांति कर सकता है. इसे विशेष संरचना वाला हाइड्रोजेल बताया जा रहा है. ये दरअसल अल्ट्रा-पतली क्ले नैनोशीट्स और घनी पॉलिमर नेटवर्क का समावेश है, इसे अगर उस जगह लगा दें, जहां कुछ कटाफटा है या जख्म है तो तेजी से काम करता है. किसी चमत्कार की तरह ये उस जगह को चार घंटे के भीतर 90फीसदी तक खुद ठीक कर देता है. 24 घंटे में उसे पूरी ठीक करने की ताकत रखता है.
कैसी है ये हाइड्रोजेल
हाइड्रोजेल पानी से भरपूर पॉलिमर सामग्री है, ये अपनी कोमलता और लचीलेपन के कारण जैविक ऊतकों की नकल करने में सक्षम है. वैज्ञानिकों ने इसकी एक अनूठी संरचना विकसित की. इस हाइड्रोजेल में अत्यंत पतली और बड़ी क्ले नैनोशीट्स को शामिल किया गया. यह संरचना न केवल हाइड्रोजेल की यांत्रिक मजबूती को बढ़ाती है, बल्कि इसे स्व-उपचार की असाधारण क्षमता भी देती है.
कैसे बनाया गया इसे
इस जेल को खास तरीके से बनाया गया. साइंटिस्ट चेन लियांग ने मोनोमर पाउडर को नैनोशीट्स युक्त पानी के साथ मिलाया। इस मिश्रण को फिर यूवी लैंप के नीचे रखा गया, जो आमतौर पर जेल नेल पॉलिश को सेट करने के लिए उपयोग होता है. यूवी विकिरण के प्रभाव से अणु एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं, जिससे एक लचीली त्वचा जैसी हाइड्रोजेल बनती है. इसमें पॉलिमर की परतें “नन्हे ऊनी धागों” की तरह एक-दूसरे के चारों ओर उलझती हैं, जो खुद की मरम्मत क्षमता का आधार बनती हैं.
इसे कैसे लगाया जाता है
इस हाइड्रोजेल की सबसे खास बात यही है कि ये तेजी से उपचार करती है. ये जेल वाली स्किन ऐसी होती है कि अगर इसे चाकू से काटा जाता है तो ये चार घंटे के भीतर 80-90% तक ठीक हो जाती है और 24 घंटे में पूरी तरह से अपनी मूल स्थिति में लौट आती है. यह प्रक्रिया पॉलिमर नेटवर्क की गतिशीलता और आणविक स्तर पर उनकी गतिविधि के कारण संभव होती है.
ये कैसी होती है
ये हाइड्रोजेल मानव त्वचा की कठोरता और लचीलेपन को प्रभावी ढंग से दोहराता है. एक मिलीमीटर मोटे नमूने में लगभग 10,000 नैनोशीट्स की परतें होती हैं, जो इसे त्वचा की तरह मजबूत और खिंचाव योग्य बनाती हैं. यह संतुलन इसे नरम रोबोटिक्स और कृत्रिम त्वचा के लिए आदर्श बनाता है, जहां मजबूती और लचीलापन दोनों जरूरी है. इसे नोवेल हाइड्रोजेल कहा जाता है.
इसे घाव या कटे पर कैसे अप्लाई किया जाता है
घाव को साफ करके एंटीसेप्टिक घोल से धोकर गंदगी, बैक्टीरिया और मृत ऊतकों को हटाया जाता है. फिर घाव को हल्के से सुखाया जा सकता है ताकि हाइड्रोजेल बेहतर तरीके से चिपक सके. यह हाइड्रोजेल पानी से भरपूर है, इसलिए यह नम वातावरण में भी प्रभावी ढंग से काम कर सकता है, जो घाव भराई के लिए अनुकूल होता है.
हाइड्रोजेल का आकार
यह हाइड्रोजेल लचीला और खिंचाव योग्य है, जिसे घाव के आकार के अनुसार काटा या ढाला जा सकता है. इसे पहले से तैयार शीट्स या पैच के रूप में उपलब्ध कराया जा सकता है, या फिर इसे तरल रूप में घाव पर लगाने से पहले मोल्ड किया जा सकता है.
घाव पर हाइड्रोजेल लगाना
हाइड्रोजेल को सावधानी से घाव या कट पर रखा जाता है. ये आसानी से उस पर चिपक जाता है. घाव के ठीक होने के बाद, हाइड्रोजेल को हटाने की जरूरत हो सकती है. इसे धीरे से छीलकर हटाया जा सकता है, वैसे प्राकृतिक तौर पर भी डिजाल्व हो सकता है.
कब तक ये आम लोगों को उपलब्ध हो सकेगी
इस खोज की घोषणा 7 मार्च 2025 को नेचर मटीरियल्स पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र के माध्यम से की गई. अभी ये हाइड्रोजेल अनुसंधान और विकास के चरण में है. हलाांकि अभी इसे व्यावहारिक उपयोग जैसे कि घाव भराई, कृत्रिम त्वचा, या अन्य चिकित्सा प्रयोगों के लिए बाजार में लाने से पहले कई चरणों से गुजरना होगा.
अभी तक यह हाइड्रोजेल के परीक्षण लैब तक ही सीमित हैं. इसे मानव उपयोग के लिए सुरक्षित और प्रभावी साबित करने के लिए व्यापक इन विट्रो (प्रयोगशाला कोशिकाओं पर) और इन विवो (जानवरों और फिर मनुष्यों पर) परीक्षणों की आवश्यकता होगी. ये परीक्षण आमतौर पर कई महीनों से लेकर कुछ वर्षों तक चल सकते हैं. यदि परीक्षण और मंजूरी प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ती है, तो यह हाइड्रोजेल 5-7 साल में (लगभग 2030-2032 तक) चिकित्सा उपयोग के लिए उपलब्ध हो सकेगी. आमतौर पर ऐसी नई चीजों को प्रयोगशाला से बाजार तक पहुंचने में 10-15 साल लगते हैं.
(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )