दयानिधि
जर्नल ऑफ द नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट में प्रकाशित एक अध्ययन ने इस तकनीक को दुनिया के सामने रखा है। आज की तेज रफ्तार जिंदगी में कैंसर जैसी बीमारियां सबसे बड़ी चिंता का कारण बन रही हैं। खासतौर पर सिर और गर्दन के कैंसर के मामले हर साल बढ़ रहे हैं। अमेरिका में किए गए अध्ययनों के अनुसार, लगभग 70 प्रतिशत सिर और गर्दन के कैंसर का कारण ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) होता है। यह वायरस शरीर में संक्रमण फैलाता है और लंबे समय तक छिपा रह सकता है।
गंभीर समस्या यह है कि अभी तक इस तरह के कैंसर के लिए कोई स्क्रीनिंग टेस्ट उपलब्ध नहीं था। यानी लोग तब तक बीमारी से अनजान रहते हैं जब तक ट्यूमर बहुत बड़ा न हो जाए और लक्षण न दिखने लगें। जब तक मरीज डॉक्टर के पास पहुंचता है, तब तक कैंसर अक्सर लिम्फ नोड्स तक फैल चुका होता है। ऐसे में इलाज कठिन और लंबा हो जाता है। इसी समस्या का हल खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नया तरीका विकसित किया है जिसे एचपीवी-डीपसीक कहा जा रहा है। हाल ही में जर्नल ऑफ द नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट में प्रकाशित एक अध्ययन ने इस तकनीक को दुनिया के सामने रखा है।
एचपीवी-डीपसीक क्या है?
यह एक तरह का लिक्विड बायोप्सी टेस्ट है। सामान्यतः कैंसर का पता लगाने के लिए डॉक्टर बायोप्सी यानी ऊतक (टिश्यू) का सैंपल लेकर जांच करते हैं। लेकिन यह टेस्ट रक्त के छोटे-छोटे नमूनों से काम करता है। इस तकनीक में पूरे जीनोम का अनुक्रमण किया जाता है, जिससे खून में मौजूद एचपीवी वायरस के छोटे-छोटे डीएनए टुकड़ों की पहचान हो जाती है। ये टुकड़े उसी समय खून में आते हैं जब किसी ट्यूमर से कोशिकाएं टूटकर शरीर में फैलने लगती हैं।
पहले के अध्ययनों में पाया गया कि यह जांच 99 फीसदी सटीकता और संवेदनशीलता के साथ कैंसर की पहचान कर सकता है। यानी यह न केवल बहुत भरोसेमंद है बल्कि गलत रिपोर्ट आने की संभावना भी बेहद कम है।
अध्ययन में क्या पाया गया?
मैस जनरल ब्रिघम के शोधकर्ताओं ने 56 रक्त के नमूनों पर यह तकनीक आजमाई। इनमें से 28 नमूने उन लोगों के थे जिन्हें बाद में सिर और गर्दन का कैंसर हुआ और 28 नमूने स्वस्थ लोगों के थे। परिणाम चौंकाने वाले रहे: एचपीवी-डीपसीक ने 28 में से 22 मरीजों के खून में पहले ही एचपीवी डीएनए पकड़ लिया, जबकि स्वस्थ व्यक्तियों के किसी भी नमूने में यह नहीं मिला। सबसे पुराना पॉजिटिव नमूना 7.8 साल पहले लिया गया था, यानी बीमारी का पता लगभग आठ साल पहले ही लगाया जा सका।
इसका महत्व क्यों है?
अब तक सिर और गर्दन के एचपीवी-संबंधित कैंसर का पता केवल तब चलता था जब ट्यूमर काफी बड़ा हो चुका होता था। लेकिन इस नई तकनीक से बीमारी को लक्षण आने से 10 साल पहले पकड़ना संभव होगा। शुरुआती अवस्था में इलाज करना आसान होगा और कम दवाओं या कम रेडिएशन की जरूरत पड़ेगी। मरीजों की जीवन दर बढ़ सकती है। कैंसर के इलाज का आर्थिक और मानसिक बोझ कम होगा।
अगला कदम
वैज्ञानिक अब इस तकनीक को बड़े पैमाने पर परख रहे हैं। इसके लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) की अगुवाई में एक अध्ययन किया जा रहा है, जिसमें सैकड़ों रक्त नमूनों की जांच की जाएगी। ये नमूने नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट के पीएलसीओ (प्रोस्टेट, फेफड़े, कोलोरेक्टल और डिम्बग्रंथि) स्क्रीनिंग परीक्षण से लिए गए हैं। जब इस टेस्ट को मशीन लर्निंग से और मजबूत किया गया तो यह 28 में से 27 मामलों को पहचानने में सफल रहा, जिनमें वे भी शामिल थे जिनके नमूने 10 साल पहले लिए गए थे।
यदि यह तकनीक बड़े अध्ययन में भी सफल रहती है तो आने वाले समय में यह एक रूटीन स्क्रीनिंग टेस्ट बन सकती है। खासकर उन लोगों के लिए जो एचपीवी संक्रमण के खतरे में हैं। एचपीवी-डीपसीक कैंसर विज्ञान की दुनिया में एक बड़ी उम्मीद है। यह तकनीक न केवल एचपीवी-संबंधित सिर और गर्दन के कैंसर को शुरुआती चरण में पकड़ सकती है, बल्कि इसे लक्षण आने से कई साल पहले पहचानने की क्षमता भी रखती है। अगर आने वाले परीक्षणों में भी यह सफल रहती है तो लाखों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है।
कैंसर से लड़ाई में यह खोज एक नए युग की शुरुआत हो सकती है, जहां समय रहते बीमारी पकड़कर न केवल मरीजों को बेहतर जीवन दिया जा सकेगा बल्कि कैंसर के डर को भी कम किया जा सकेगा।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )