शकील खान
‘पाई डे’ ऐसा दिवस है जो हर साल 14 मार्च को दोपहर एक बजकर उनसठ मिनिट (1.59 बजे) पर मनाया जाता है. ये दिन और समय ऐसे ही तय नहीं किया गया है, इसके पीछे लॉजिक है, मेथेमेटिकल केक्यूलेशन है. गणित में यूं ही कोई तुक्का नहीं भिड़ाया जाता, गणित में कोई बात होगी तो तर्कपूर्ण ही होगी, लॉजिकली होगी. इस दिन के साथ दो संयोग और जुड़े हैं.
वर्ल्ड डे बहुत सारे देखे, वीमंस डे, चिल्ड्रंस डे, मेंस डे एट्सेटरा. ये सभी सेलिब्रेशन खास दिन जरूर होते हैं लेकिन किसी खास ‘टाइम’ पर नहीं होते. क्या आपने कभी सुना है कि कोई दिवस इस तारीख को, इतने बजकर इतने मिनट पर मनाया जाएगा? अगर आपका जवाब न में हैं तो जान लें एक दिवस ऐसा है जो दिन विशेष को तो मनाया ही जाता है, एक खास समय पर ही मनाया जाता है. ‘पाई डे’ ऐसा ही दिवस है जो हर साल 14 मार्च को दोपहर एक बजकर उनसठ मिनिट (1.59 बजे) पर मनाया जाता है. ये दिन और समय ऐसे ही तय नहीं किया गया है, इसके पीछे लॉजिक है, मैथेमेटिकल कैलकुलशन है. गणित में यूं ही कोई तुक्का नहीं भिड़ाया जाता, गणित में कोई बात होगी तो तर्कपूर्ण ही होगी, लॉजिकली होगी. क्या है ये किस्सा?
वो अंग्रेजी में कहावत है न, ट्रुथ इज़ स्ट्रेंजर देन फिक्शन यानि कल्पना सच से भी ज्यादा रोमांचक होती है. अब इसे कुदरत का करिश्मा कहें या कुछ और इस मिस्ट्री नंबर के साथ, एक नहीं दो संयोग जुड़े हुए हैं. अद्भुत संयोग. व्हील के बारे में तो हम सब जानते ही हैं. व्हील या पहिए ने हमारी जि़ंदगी को बहुत आसान बनाया है. बड़े से बड़े सामान को जब व्हील का सहारा मिलता है तो उसे मूव करना आसान हो जाता है. चाहे अलमारी हो, बेड या लगेज. पहले भारी सामान के साथ सफर करना कितना मुश्किल हुआ करता था और व्हील के चलते अब कितना आसान है. व्हील अगर अच्छे नहीं हुए तो सूटकेस को धकेलना मुश्किल हो जाता है. क्वालिटी की बात छोड़ दें, सही चलने के लिए व्हील को आकार में सटीक होना जरूरी है. व्हील सही आकार में नहीं है यानि ठीक से गोलाकार नहीं है तब उसे आसानी से नहीं चलाया जा सकता. ठीक ऐसा ही तब हुआ था जब शुरुआत में भारी सामान कैरी करने के लिए पहियों का इस्तेमाल किया गया था.
वो कहा जाता है न आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है. ऐसा ही व्हील के साथ हुआ. पुराने जमाने में लोगों को सामान ढोने में परेशानी होती थी, इसका सॉल्यूशन ये निकाला गया कि घोड़ागाड़ीनुमा एक चीज बनाई गई जिसमें पहिए लगे थे. पहिए बना तो दिए, लगा भी दिए. लेकिन ये पूरी तरह गोल नहीं थे. सो गाड़ी चलने में नखरे करने लगी, हिचकोले खाने लगी. उलझन सुलझाने के प्रयास किए गए और अंतत: एक परफेक्ट गोल पहिया बना लिया गया. यूं ही तो गोल बन नहीं गया होगा. खासी मशक्कत करनी पड़ी तब जाकर गोल पहिया बना और एक मेजरमेंट सामने आया. 22/7 अनुपात वाला मेजरमेंट. इसे ही ‘पाई’ का नाम दिया गया. इस तरह ‘पाई’ की एंट्री हुई, गणित में और हमारी जिंदगी में भी.
आपको स्कूल की याद है, कंपास ओर डिवाईडर्स यानी परकार की भी होगी. परकार में पेंसिल लगाकर लाईन के ठीक सेंटर में रखकर उसे घुमा कर सर्किल बनाया करते थे. एक बार फिर करें, सात सेंटीमीटर की एक लाइन खींचकर इसके चारों तरफ एक परफेक्ट गोलाकार सर्किल बनाईए. सात सेंटीमीटर की जो लाईन खींची है उसे डायमीटर (डी) या व्यास कहते हैं. इस सर्किल की गोलाई को परिधि यानी सरकम्फ्रेंस (सी) कहते हैं. परिधि को नापें तो पाएंगे कि यह 22 सेंटीमीटर की है. इनका अनुपात हुआ 22/7. सर्किल आप चाहे जितना छोटा बना लें या जितना बड़ा. सरकम्फ्रेंस और डायमीटर का अनुपात हमेशा समान ही रहेगा – 22/7. इस अनुपात को ही पाई से दर्शाया जाता है. पाई का मान हमेशा कांस्टेंट रहता है. अगर डायमीटर 14 सेंटीमीटर कर दें तो सरकम्फ्रेंस 44 सेंटीमीटर का ही निकलेगा. अनुपात होगा 44/14 अर्थात 22/7. कोई भी नाप लें पाई अनुपात हमेशा समान ही रहेगा.
‘पाई’ शब्द कहां से आया? ‘पाई’ दरअसल ग्रीक अल्फाबेट का सोलहवां अक्षर है, दिलचस्प ये है कि अंग्रेजी वर्णमाला का ‘पी’ भी सोलहवां अक्षर ही है. पाई को मिस्ट्री नंबर क्यों कहा जाता है. दरअसल, पाई का सही मान आज तक नहीं निकाला जा सका है. पाई बराबर 22/7 होता है यह तो हम जानते हैं लेकिन पाई का यह मान ”22/7 = 3.14159” पूरी तरह एक्युरेट नहीं है, टू द पाइंट नहीं है. अब आप 22 को 7 से डिवाइड करेंगे तो 3.1428571429 आएगा. लेकिन आप ज्यादा पचड़े में न पड़ें और 3.14159 को यह नंबर मान लें, यही सही है, सर्वत्र मान्य है. यह एप्रॉक्सीमेट मान है. तो 22 को जब हम 7 से डिवाइड करते हैं तो 3.14159… आता जरूर है लेकिन ये डिवाइड यहां खत्म नहीं होता. दशमलव के बाद जब तक आप डिवाइड करते रहेंगे कुछ न कुछ शेष आता रहेगा और संख्या पूरी तरह डिवाइड नहीं होगी. इस तरह पाई अपरिमेय संख्या बन जाती है, यानी इररेशनल नंबर. इररेशनल नंबर की वेल्यू रिपीट नहीं हो सकती.
पाई की वेल्यू हमारे लिए बहुत उपयोगी है खासतौर पर स्पेश मिशन के लिए तो बहुत ज्यादा. इसलिए पाई नासा के लिए महत्वपूर्ण नंबर है. नासा इसकी केवल 40 डिजिट का ही इस्तेमाल करता है. भले ही ये इरेशनल नंबर है लेकिन इसकी एक्यूरेट वैल्यू और एप्राक्सीमेट वैल्यू में माईक्रोमिलियन का अंतर रहता है, ये एरर बहुत ही कम है इतनी कम कि इसे आसानी से इग्नोर किया जा सकता है, किया जा रहा है. ये अलग बात है कि इसकी परफेक्ट वैल्यू निकालने में अनेक गणितज्ञों ने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी. ट्रिलियंस ऑफ डिजि़ट के केलक्यूलेशन के बाद सुपर कम्प्यूटर ने भी इसके सामने घुटने टेक दिए. लेकिन कहते हैं कोशिश से मंजिल तक भले ही न पहुंचे कोशिशें कुछ फल जरूर देती हैं. सुपर कम्प्यूटर की केलकुलेशन ने ये बता दिया कि जो कम्प्यूटर जितना ज्यादा पाई की वैल्यू निकालेगा, ज्यादा डिजिट तक वैल्यू निकालेगा उसकी कम्प्यूटिंग पॉवर उतनी ज्यादा मानी जाएगी. इस तरह पाई का मान निकलवाकर कम्प्यूटर की कम्प्यूटिंग औकात नापने का पैमाना तो खोज ही लिया गया.
अब बात कुदरत के करिश्मे की अद्भुत संयोग की. 14 मार्च यानि पाई डे से दो महान वैज्ञानिक जुड़े हुए हैं. नोबेल पुरस्कार विजेता अल्बर्ट आइंस्टाइन और हाल ही में दुनिया से विदा हुए स्टीफन विलयिम हॉकिंग. आइंस्टाइन का बर्थडे 14 मार्च (1879) को पड़ता है, जबकि स्टीफन हॉकिंग ने 14 मार्च (2018) को इस फानी दुनिया को अलविदा कहा. आइंस्टाइन की हैसियत को इससे समझा जा सकता है कि टाइम मैग्जीन ने जब 1999 में सदी के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति का चयन करने की प्रक्रिया शुरू की तो उसके सामने बहुत सारे नाम थे. जिनमें खिलाड़ी थे, कलाकार थे, समाजसेवी थे, राजनीतिज्ञ थे अलग-अलग विधा के बहुत ही विद्वान और जहीन लोग थे. मगर चयनकर्ताओं की नजर अल्बर्ट आइंस्टाइन पर जाकर टिकी तो हटी ही नहीं. आइंस्टाइन इसके लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति थे भी.
हॉकिंग के बारे क्या कहें लगभग सभी मांसपेशियों से नियंत्रण खोने के बाद भी सिर्फ गाल की मांसपेशी के सहारे अपने चश्मे पर लगे सेंसर को कम्प्यूटर से जोड़कर बात करने वाले हॉकिंग ने ब्लैक होल और बिग बैंग सिद्धांत को समझने में अहम योगदान दिया. अहम सवाल का जवाब तो बाकी रह ही गया. पाई डे 14 मार्च को दोपहर एक बजकर उनसठ मिनिट (1.59 बजे) क्यों मनाया जाता है. इसका रहस्य पाई की वैल्यू में छिपा हुआ है. पाई की वैल्यू है – 3.14159. यहां तीन यानि तीसरा महीना मार्च का. दशमलव के बाद है 14 इससे बनी तारीख. बचा 159 इससे बना समय 1 बजकर 59 मिनिट. बन गया ‘पाई डे’.
(‘न्यूज 18 हिन्दी’ से साभार )