डी एन एस आनंद

आज 30 नवंबर है। देश के महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस का जन्मदिन। यह आजादी का 75 वां वर्ष है, जिसे देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। साइंस फार सोसायटी, झारखंड ने इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण वर्ष के रूप में मनाने एवं वर्ष भर जन विज्ञान अभियान, जन संवाद के माध्यम से जन जन तक विज्ञान पहुंचाने एवं लोगों के बीच वैज्ञानिक जागरूकता अभियान चलाने का निर्णय किया है, ताकि संविधान निर्देशित, तमाम नागरिकों में वैज्ञानिक मानसिकता के विकास, के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। कोविड -19 महामारी ने भी वैज्ञानिक जागरूकता की अहमियत एवं जरूरत को उभार कर सामने ला दिया है।

ऐसे में देश के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के विचारों एवं कार्यों को आगे बढ़ाने की जरूरत कहीं अधिक महसूस हो रही है। यह समतामूलक, तर्कशील, आधुनिक, आत्मनिर्भर एवं विज्ञान सम्मत भारत के निर्माण के लिए भी बेहद जरूरी है। 30 नवंबर 1858 में उनका जन्म मेमनसिंह (वर्तमान बंगला देश) में हुआ था। जहां प्रकृति के सान्निध्य में उनका बचपन बीता।

प्रकृति से मिली संवेदनशीलता
वह अंग्रेजी शासन का दौर था। उनके पिता भगवान चंद्र बोस सरकारी नौकरी में थे। जगदीश चन्द्र बोस के बचपन का बड़ा हिस्सा फरीदपुर में बीता। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई एक बंगाली मीडियम स्कूल में हुई। उनके पिता मानते थे कि अंग्रेजी शिक्षा हासिल करने के पूर्व जगदीश चन्द्र बोस को मातृभाषा बंगला एवं अपनी संस्कृति की जानकारी जरुर होनी चाहिए।‌‌ प्राइमरी स्कूल में उनके सहपाठी आमतौर पर किसानों, मछुआरों एवं श्रमिकों के बच्चे थे, जिनके सानिध्य में उनको प्रकृति को देखने, जानने, समझने एवं सीखने का भरपूर मौका मिला। सांस्कृतिक गतिविधियों में भी उनकी गहरी रुचि थी। वे ग्रामीण मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम ” जतरा ” बहुत चाव से देखने जाते। वे महाभारत महाकाव्य के एक प्रमुख पात्र कर्ण से बेहद प्रभावित थे।

उनका मानना था कि अपनी नीची जाति की पहचान के कारण कर्ण को बार बार भेदभाव, उपेक्षा एवं अपमान का सामना करना पड़ा। पर वह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने आदर्शों से पीछे नहीं हंटा एवं हालात का सदैव बहादुरी से डटकर सामना किया। हर परिस्थितियों का डटकर सामना करने का पाठ उन्होंने अपने बचपन में ही पढ़ लिया था।‌ 1869 में वे पढ़ने के लिए कलकत्ता (अब कोलकाता) आ गए। यहां उनकी पढ़ाई संत जेवियर कॉलेज में हुई। 1880 में उन्होंने फीजिकल साइंस से ग्रेजुएशन किया। 1880 में ही मेडिसिन की पढ़ाई करने वे इंग्लैंड गए। 1884 में वे नेचुरल साइंस में ग्रेजुएट हुए। 1885 में वे भारत लौटे एवं कोलकाता स्थित प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया। 1894 में उन्होंने साइंटिफिक रिसर्च का रास्ता पकड़ा। अंततः वे 1915 में भौतिकी के सीनियर प्रोफेसर के रूप में रिटायर हुए। जगदीश चन्द्र बोस रविन्द्र नाथ टैगोर के निकटतम मित्रों में से थे। उनका निधन 23 नवंबर 1937 को उसके गिरिडीह, वर्तमान झारखंड (तत्कालीन बिहार) स्थित आवास पर हुआ।

गिरिडीह झारखंड स्थित जे सी बोस की विरासत को बचाएं
जाहिर है कि उनका अंतिम समय जंगल पहाड़ एवं प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मौजूदा झारखंड के गिरिडीह में बीता। स्वाभाविक रूप से झारखंड को विज्ञान जगत के अपने इस ख्यातिनाम, महान वैज्ञानिक बेटे पर गर्व है। झारखंड प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। पर इसका पिछड़ापन जगजाहिर है। एक ओर प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता है। कोयला, लोहा, तांबा, सोना से लेकर यूरेनियम तक। उद्योग धंधे का जाल। वन संपदा की अमूल्य धरोहर। लेकिन यह तो सिक्के का महज एक पहलू है। इसका दूसरा हिस्सा बेहद पीड़ादायक है। भूख से मौत की खबरें यहां अब भी सामने आती हैं। अशिक्षा, गरीबी, कुपोषण, बीमारी, बदहाली, अंधविश्वास की जड़ें यहां अब भी काफी गहरी हैं। 21वीं सदी के मौजूदा ज्ञान विज्ञान के दौर में भी डायन के नाम पर निर्दोष, गरीब, मजबूर महिलाओं की लगातार होने वाली हत्याएं मन को विचलित करती हैं। अंधविश्वास के इस दुष्चक्र से बाहर निकाले वगैर झारखंड का विकास संभव नहीं है। और इसके लिए जरूरी है लोगों के बीच वैज्ञानिक जागरूकता। लोगों को जागरूक बनाकर, उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण/ चेतना का विकास कर ही झारखंड को इस मकड़जाल से बाहर निकाल कर विकास एवं प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाया जा सकता है।


साइंस फार सोसायटी झारखंड की पहल
राज्य में वैज्ञानिक जागरूकता के लिए विगत करीब दो दशकों से सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत निबंधित एक स्वयंसेवी गैर सरकारी संस्था साइंस फार सोसायटी, झारखंड इस दिशा में सतत प्रयत्नशील है। पीपुल्स साइंस सेंटर जमशेदपुर की पहल पर इसी वर्ष 28 फरवरी 2021, को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर शुरू हुए वैज्ञानिक चेतना (साइंस वेब पोर्टल) ने भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास एवं विस्तार में अपनी सहभागिता शुरू की। झारखंड समेत देश भर के बाल- युवा विज्ञानियों विज्ञान संचारकों के बीच बेहतर संवाद, समन्वय एवं सहयोग बनाने में यह राष्ट्रीय विज्ञान पोर्टल अपनी अहम भूमिका का निर्वाह कर रहा है। इस प्रकार वह साइंस फार सोसायटी के जन विज्ञान अभियान एवं जन संवाद को स्वर देने एवं उसे आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयासरत है। लेकिन समस्याओं की विशालता एवं विकरालता को देखते हुए यह जरूरी है कि सरकार एवं जनता के सामूहिक प्रयास एवं व्यापक जन भागीदारी से झारखंड को मौजूदा हालात से बाहर निकाला जाए। इसके लिए सतत जन विज्ञान अभियान चलाया जाए।

ऐसे में यह उचित होगा कि देश के शीर्ष वैज्ञानिक, विज्ञान कर्मी एवं विज्ञान संचारक जगदीश चन्द्र बोस के विज्ञान गतिविधियों के केन्द्र रहे गिरीडीह, झारखंड को एक प्रमुख राष्ट्रीय शोध केंद्र के रूप में विकसित करने के प्रयास को बल दें। झारखंड प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों का केंद्र है पर आवश्यकता के अनुरूप शोध केंद्र नहीं होने के कारण वह उपलब्ध संसाधनों का जनहित एवं देशहित में बेहतर उपयोग नहीं कर पा रहा है। इसके लिए जरूरी है कि उनके स्मृति स्थल पर विज्ञान की ऐसी मशाल जले जो अंधविश्वास के अंधकार को दूर कर झारखंड को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर दे। यह पहल महज झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे समाज एवं देश में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

डी एन एस आनंद

पत्रकार, विज्ञान संचारक, साइंस फार सोसायटी, झारखंड के महासचिव एवं वैज्ञानिक चेतना नेशनल साइंस वेब पोर्टल, जमशेदपुर के संपादक हैं 

Spread the information

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *