दयानिधि

भारत में दुनिया भर में दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों में से 20 प्रतिशत मौतें होती हैं। इस बात का खुलासा सीके बिड़ला हॉस्पिटल्स द्वारा जारी ‘एवरी बीट काउंट्स’ यानी ‘हर धड़कन मायने रखती है’ नामक रिपोर्ट में किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में लगभग नौ करोड़ भारतीय हृदय संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं। भारत में हृदय संबंधी बीमारियों (सीवीडी) से मृत्यु दर 272 प्रति एक लाख है जो दुनिया के औसत 235 प्रति एक लाख से काफी ज्यादा है। ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरों में मृत्यु दर ज्यादा है। शहरों में हृदय रोग से मृत्यु दर 450 प्रति एक लाख के मुकाबले जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 200 प्रति 1,00,000 है।

रिपोर्ट के हवाले से सीके बिड़ला हॉस्पिटल्स के सीईओ विपुल जैन ने कहा, भारत में होने वाली सभी मौतों में से 24.5 प्रतिशत मौतें हृदय संबंधी बीमारियों के कारण होती हैं, जबकि पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों में हृदय रोग के कारण 35 प्रतिशत से अधिक मौतें होती हैं। रिपोर्ट इस बढ़ते संकट को दूर करने के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति की तत्काल जरूरत को सामने लाती है।

रिपोर्ट भारत के लिए विशेष खतरों वाले कारणों पर भी प्रकाश डालती है, जैसे कि “पतले-मोटे” शरीर के प्रकार का उच्च प्रचलन – एक ऐसी स्थिति जिसमें लोगों का वजन सामान्य या सामान्य से कम हो सकता है लेकिन शरीर में वसा का स्तर अधिक होता है, जिसके कारण हृदय संबंधी खतरे बढ़ जाते हैं।

एवरी बीट काउंट्स रिपोर्ट भारत के स्वास्थ्य सेवा के ढांचे में गंभीर कमियों को सामने लाती है। उदाहरण के लिए, देश में हर 2,50,000 लोगों पर मात्र एक हृदय रोग विशेषज्ञ है, जबकि अमेरिका में हर 7,300 लोगों पर एक हृदय रोग विशेषज्ञ है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष हृदय देखभाल की कमी भारत में बढ़ते हृदय संबंधी संकट को और बढ़ा रही है।

रिपोर्ट में बच्चों सहित युवा आबादी को प्रभावित करने वाले हृदय संबंधी बीमारियों की चिंताजनक प्रवृत्ति पर भी प्रकाश डाला गया है। भारत में लगभग 10 प्रतिशत शिशु मृत्यु दर अब जन्मजात हृदय रोगों से जुड़ी है। बच्चों के उपचार में हृदय देखभाल की कमी स्पष्ट है, जहां सालाना केवल 35 बाल चिकित्सा कार्डियोलॉजी फेलो प्रशिक्षित होते हैं और बच्चों में जन्मजात हृदय संबंधी समस्याओं के लिए शल्य चिकित्सा मृत्यु दर आठ प्रतिशत से 13 प्रतिशत तक है, जबकि विकसित देशों में यह पांच प्रतिशत से भी कम है।

रिपोर्ट में भारत के हृदय संबंधी स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए बहुआयामी नजरिए को अपनाने का आह्वान किया गया है। मुख्य सिफारिशों में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे में सुधार, विशेष देखभाल तक पहुंच बढ़ाना और हृदय संबंधी खतरों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाना शामिल है।

रिपोर्ट का उद्देश्य भारत की हृदय संबंधी स्वास्थ्य स्थिति का वार्षिक मूल्यांकन करना, प्रगति पर नजर रखना, रुझानों की पहचान करना और स्वास्थ्य सेवा रणनीतियों को आकार देना है। यह नीति निर्माताओं, स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों और आम जनता को इसके निष्कर्षों से जुड़ने और भारत में बढ़ते हृदय संबंधी रोग के मामलों को दूर करने के लिए कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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