दयानिधि
शोधकर्ताओं ने वायरस या बैक्टीरिया के अधिक संक्रामक प्रकारों की पहचान करने का एक नया तरीका खोज लिया है। जो लोगों में फैलने लगते हैं, जिनमें फ्लू, कोविड, काली खांसी और तपेदिक या टीबी जैसी बीमारी पैदा करने वाले वायरस भी शामिल हैं।
नया तरीका संक्रमित लोगों के नमूनों का उपयोग करके आबादी में घूम रहे बीमारी फैलाने वालों की वास्तविक समय की निगरानी में मदद करती है। यह वैक्सीन से बचने वाले कीटाणुओं को जल्दी पहचानने में सक्षम बनाता है। इससे उन टीकों के विकास की जानकारी मिल सकती है जो बीमारी को रोकने में अधिक प्रभावी हो सकते हैं।
यह तरीका एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध वाले उभरते वेरिएंट का भी जल्दी पता लगा सकता है। इससे संक्रमित होने वाले लोगों के लिए उपचार के विकल्प की जानकारी मिल सकती है और बीमारी के फैलने को सीमित किया जा सकता है।
यह नए वेरिएंटों के उभरने के पीछे छुपी आनुवंशिक बदलावों के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए आनुवंशिक अनुक्रमण आंकड़े का उपयोग करता है। यह समझने में मदद करने के लिए अहम है कि विभिन्न वेरिएंट लोगों की आबादी में अलग-अलग तरीके से क्यों फैलते हैं।
कोविड और इन्फ्लूएंजा निगरानी कार्यक्रमों के अलावा संक्रामक रोगों के उभरते वेरिएंट पर नजर रखने के लिए बहुत कम प्रणालियां मौजूद हैं। यह तकनीक इन बीमारियों के मौजूदा नजरिए पर एक बड़ी प्रगति है, जो विशेषज्ञों के समूहों पर निर्भर करती है कि वे तय करें कि परिसंचारी बैक्टीरिया या वायरस कब इतना बदल गया है कि उसे एक नए वेरिएंट का नाम देना पड़ता है।
‘फैमिली ट्री’ बनाकर, नया तरीका नए वेरिएंट की पहचान अपने आप कर लेता है, जो इस बात पर आधारित होता है कि रोगजनक आनुवंशिक रूप से कितना बदला है और यह लोगों की आबादी में कितनी आसानी से फैलता है, ऐसा करने के लिए विशेषज्ञों को बुलाने की जरूरत नहीं होती।
इसका इस्तेमाल वायरस और बैक्टीरिया की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए किया जा सकता है और संक्रमित लोगों से लिए गए नमूनों की एक छोटी संख्या ही आबादी में फैले वेरिएंट को पहचानने के लिए पर्याप्त होती है। यह जहां संसाधनों की कमी है उन जगहों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।
किस तरह काम करती है यह तकनीक?
शोधकर्ताओं ने बोर्डेटेला पर्टुसिस नामक बैक्टीरिया के नमूनों का विश्लेषण करने के लिए अपनी नई तकनीक का उपयोग किया, जिसके कारण काली खांसी होती है। वर्तमान में कई देश पिछले 25 वर्षों से सबसे खतरनाक काली खांसी के प्रकोप का सामना कर रहे हैं। इसने तुरंत आबादी में घूम रहे तीन नए प्रकारों की पहचान की, जिन्हें पहले नहीं पहचाना गया था।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया कि यह नया तरीका काली खांसी के लिए जिम्मेवार कारण को बहुत जल्दी पहचान लेता है, जिस पर निगरानी बढ़ाने की जरूरत पड़ती है, क्योंकि कई देशों में इसकी वापसी हो रही है और रोगाणुरोधी प्रतिरोधी वंशों का उदय हो रहा है।
शोधकर्ताओं ने दूसरे परीक्षण में माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के नमूनों का विश्लेषण किया, जो टीबी का एक बैक्टीरिया है। इससे पता चला कि एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता वाले दो प्रकार फैल रहे हैं। इस नजरिए से जल्दी ही पता चल जाएगा कि रोगजनक के कौन से प्रकार लोगों को बीमार करने की क्षमता के मामले में सबसे ज्यादा खतरनाक हैं। इसका मतलब है कि इन प्रकारों को ध्यान में रखकर इनके विरुद्ध विशेष तरह की वैक्सीन बनाई जा सकती है।
नेचर पत्रिका में प्रकाशित शोध के मुताबिक, यदि एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी वैरिएंट का तेजी से विस्तार दिखाई देता हैं, तो उस वैरिएंट के फैलने को सीमित करने के लिए उससे संक्रमित लोगों को दी जाने वाली एंटीबायोटिक को बदल सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह कार्य संक्रामक रोग के लिए किसी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया के बड़ी पहेली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
नए बैक्टीरिया और वायरसों से लगातार बढ़ता खतरा
बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया और वायरस लगातार विकसित हो रहे हैं और हमारे बीच तेज रफ्तार से फैल रहे हैं। कोविड महामारी के दौरान, इसके नए वेरिएंट सामने आए, मूल वुहान स्ट्रेन तेजी से फैला लेकिन बाद में अन्य वेरिएंटों ने इसे पीछे छोड़ दिया, जिसमें ओमीक्रॉन भी शामिल है, जो मूल से विकसित हुआ और फैलने में और तेज था। इस विकास के पीछे रोगजनकों की आनुवंशिक संरचना में बदलाव होना है।
रोगजनक आनुवंशिक परिवर्तनों के माध्यम से विकसित होते हैं जो उन्हें फैलने में बेहतर बनाते हैं। वैज्ञानिक विशेष रूप से आनुवंशिक बदलावों के बारे में चिंतित हैं जो रोगजनकों को हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली से बचने और हमारे द्वारा उनके खिलाफ टीका लगाए जाने के बावजूद बीमारी का कारण बनने में उनकी मदद करते हैं।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया कि इस काम में दुनिया भर में संक्रामक रोग निगरानी प्रणालियों का एक अभिन्न अंग बनने की क्षमता है और इससे मिलने वाली जानकारी सरकारों की इनसे निपटने के तरीकों को पूरी तरह से बदल सकती है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )