ललित मौर्या
कुछ लोग दूसरों से अलग होते हैं, उनके, बातचीत, व्यवहार और सीखने का तरीका अन्य से अलग होता है। इन्हें सामजिक गतिविधियों और बातचीत में समस्या हो सकती है। यह लोग न तो दूसरों की बात ठीक से समझ पाते हैं और न ही अपने आप को अभिव्यक्त कर पाते हैं। यह लोग एक ऐसे डिसऑर्डर का शिकार होते हैं, जिसे ऑटिज्म के नाम से जाना जाता है। इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के नाम से भी जाना जाता है।
देखा जाए तो जैसे-जैसे लोगों के खान पान और जीवनशैली में बदलाव आ रहा है, वैसे-वैसे कई ऐसी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं, जिनके बारे में लोगों को बेहद कम पता है। इनमें से एक ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी है। पिछले कुछ वर्षों में ऑटिज्म की समस्या में तेजी से वृद्धि हुई है।
ऑटिज्म एक ऐसा विकार है, जो दिमाग को प्रभावित करता है। यह एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। इससे पीड़ित व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आने लगता है। आमतौर पर यह विकार बच्चों को सबसे ज्यादा शिकार बनाता है। ऐसे बच्चों में जहां कुछ खूबियां होती हैं तो वहीं कुछ बड़ी कमियां भी।
समस्या तब पैदा होती है, जब इसका शिकार लोग समाज के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते। ऐसे समय में उन्हें मदद की जरूरत होती है। यदि इसके लक्षण बचपन में ही सामने आ जाए तो बच्चों को कुशल बनाना आसान हो जाता है। वहीं यदि इसपर ध्यान न दिया जाए तो इससे मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ सकता है।
ऑटिज्म पर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि धरती का हर 127वां इंसान ऑटिस्टिक है। विश्लेषण से पता चला है कि दुनिया में 6.18 करोड़ लोग इस डिसऑर्डर का शिकार हैं, जिनमें महिलाऐं, पुरुष और बच्चे शामिल हैं। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट साइकियाट्री में प्रकाशित हुए हैं।
यह अध्ययन ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2021 पर आधारित है। इस अध्ययन के नतीजे यह भी दर्शाते हैं कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर 20 वर्ष से कम आयु के बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य से जुड़ी दस सबसे गैर-घातक चुनौतियों में से एक है।
महिलाओं से ज्यादा पुरुषों में सामने आए हैं मामले
रिसर्च से पता चला है कि इस विकार का प्रसार पुरुषों में काफी अधिक है। पुरुषों में ऑटिज्म के मामले महिलाओं की तुलना में दोगुने से अधिक थे आंकड़ों के मुताबिक प्रति 100,000 पुरुषों पर 1,065 मामले सामने आए हैं। वहीं महिलाओं में यह आंकड़ा 508 दर्ज किया गया है।
वहीं यदि क्षेत्रीय स्तर पर देखें तो जापान सहित एशिया-प्रशांत क्षेत्र में उच्च आय वाले देशों में ऑटिज्म की दर सबसे अधिक थी। इन क्षेत्रों में प्रति लाख लोगों पर 1,560 मामले सामने आए हैं। वहीं दूसरी तरफ दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों और बांग्लादेश में इसका प्रसार सबसे कम था।
देखा जाए तो क्षेत्र और लिंग के आधार पर मौजूद असमानता के बावजूद ऑटिस्टिक लोग दुनिया भर में, सभी आयु वर्ग में पाए जाते हैं। दुनिया में जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है, इसका प्रभाव भी बढ़ता जा रहा है। अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो ऑटिस्टिक लोगों और उनकी देखभाल से जुड़े लोगों की पहचान और निरंतर सहायता की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हैं।
ऑटिज्म के वैश्विक बोझ को संबोधित करने के लिए, इनकी शुरूआती पहचान से जुड़े कार्यक्रमों के लिए संसाधनों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। इसमें वयस्कों और कमजोर लोगों के साथ-साथ कमजोर एवं मध्यम आय वाले देशों में रह रहे ऑटिस्टिक लोगों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, जिनकी देखभाल तक पहुंच सीमित है।
इसके साथ ही ऑटिज्म के शिकार व्यक्तियों को दी जाने वाली सेवाओं और समर्थन को उनके जीवन भर में बदलती जरूरतों को पूरा करने के अनुकूल होना चाहिए। इसी तरह आत्महत्या जैसे अतिरिक्त स्वास्थ्य जोखिमों को संबोधित करने के लिए बेहतर आंकड़ों और लक्षित प्रयासों की आवश्यकता है। देखा जाए तो यह अध्ययन दुनिया भर में करोड़ों ऑटिस्टिक लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए नीतियों और प्रथाओं में सुधार के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )