दयानिधि
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में हर साल लगभग 15 लाख मरीज सर्जरी के कारण संक्रमित होते हैं, जिसे सर्जिकल साइट इंफेक्शन (एसएसआई) कहा जाता हैं। यह सर्जरी के बाद आमतौर पर 30 दिनों के भीतर सर्जरी वाली जगह पर होने वाला संक्रमण है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्जिकल साइट इंफेक्शन (एसएसआई) तब होता है जब सर्जरी के बाद बैक्टीरिया चीरे वाली जगह को संक्रमित कर देते हैं, जिससे समस्याएं पैदा होती हैं। आईसीएमआर की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल 3,090 रोगियों में से 161 को सर्जिकल साइट इंफेक्शन (एसएसआई) हुआ, इसलिए यहां इसकी दर 5.2 प्रतिशत है, जो कई उच्च आय वाले देशों से बहुत ज्यादा है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ऑर्थोपेडिक सर्जरी के लिए सर्जिकल साइट इंफेक्शन (एसएसआई) की दर 54.2 प्रतिशत है, जो दुनिया भर में एक चिंता का विषय है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस समस्या से निपटने के लिए, आईसीएमआर ने एक सर्जिकल साइट इंफेक्शन (एसएसआई) निगरानी नेटवर्क शुरू किया है। जिसका उद्देश्य देश भर के डॉक्टरों को इस तरह के संक्रमणों को कम करने और रोकने के लिए तैयार करना और उनका समर्थन करना है।
पहले हिस्से के रूप में, आईसीएमआर ने तीन प्रमुख अस्पतालों में 3,090 रोगियों को शामिल करते हुए अध्ययन किया, इसमें दिल्ली का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), मणिपाल में कस्तूरबा अस्पताल और मुंबई में टाटा मेमोरियल अस्पताल शामिल है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि आर्थोपेडिक सर्जरी करवाने वाले मरीजों में सर्जिकल साइट इंफेक्शन (एसएसआई) विकसित होने का खतरा अधिक पाया गया, जिसकी दर 54.2 थी।
अध्ययन के निष्कर्ष चौंकाने वाले पाए गए 161 मरीजों (5.2 प्रतिशत) में सर्जरी के बाद सर्जिकल साइट इंफेक्शन (एसएसआई) विकसित हुआ, जिसमें आर्थोपेडिक सर्जरी में विशेष रूप से ज्यादा मामले पाए गए। 120 मिनट से अधिक समय तक चलने वाली सर्जरी में भी संक्रमण का खतरा बढ़ा हुआ पाया गया।
आईसीएमआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्ययन में पाया गया कि क्षतशोधन सर्जरी, विशेष रूप से विच्छेदन, ओपन रिडक्शन इंटरनल फिक्सेशन (ओआरआईएफ) या क्लोज्ड रिडक्शन इंटरनल फिक्सेशन (सीआरआईएफ) वाली सर्जरी में एसएसआई की दर सबसे अधिक थी, जो 54.2 प्रतिशत थी।
साफ और प्रदूषित घाव वर्गीकरण, साथ ही 120 मिनट से अधिक समय तक चलने वाली सर्जरी, संक्रमण के बढ़ते खतरे से संबंधित खतरों से जुड़ी हुई थी। अध्ययन में एसएसआई की पहचान करने में अस्पताल से छुट्टी मिलने या पोस्ट-डिस्चार्ज निगरानी की भूमिका पर भी जोर दिया गया, जिसमें 66 प्रतिशत मामलों का पता मरीजों के अस्पताल से जाने के बाद चला।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग सर्जरी, जहां एक साथ कई प्रक्रियाएं की जाती हैं, एसएसआई विकसित होने के भारी खतरों से जुड़ी हुई पाई गई। अध्ययन में कहा गया है कि डिस्चार्ज के बाद निगरानी से एसएसआई के 66 प्रतिशत मामलों का पता लगाने में मदद मिली। अलग-अलग सर्जरी से मरीजों में सर्जिकल साइट इंफेक्शन (एसएसआई) का खतरा बढ़ा हुआ पाया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आईसीएमआर ने अस्पताल में मरीजों के रहने और छुट्टी मिलने या डिस्चार्ज के बाद सर्जिकल साइट इंफेक्शन (एसएसआई) को लेकर एक डाटाबेस बनाया है। ऐसी प्रणाली स्थापित करने का भारत में यह पहला प्रयास है। खून बहने से संक्रमण (बीएसआई), मूत्र के मार्ग का संक्रमण (यूटीआई) और वेंटिलेटर से जुड़े निमोनिया (वीएपी) को ध्यान में रखते हुए सर्जरी के बाद होने वाले संक्रमण के खतरे कम करने में मदद मिल सकती है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )