दयानिधि
भारत में मोटापा और मधुमेह जैसी बीमारियों की स्थिति भी चिंता का विषय है। रिपोर्ट के अनुसार, 6.2 फीसदी महिलाएं मोटापे की शिकार हैं, जबकि 3.5 फीसदी पुरुष मोटापे से जूझ रहे हैं। भारत में हर साल एक से सात सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है। इस साल की थीम “बेहतर जीवन के लिए सही भोजन करें” है। यह सप्ताह न केवल पोषण शिक्षा और जागरूकता का प्रतीक है, बल्कि देश में कुपोषण और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से निपटने के सामूहिक प्रयासों का भी अवसर है।
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह की शुरुआत 1982 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत खाद्य एवं पोषण बोर्ड ने की थी। उस समय इसका उद्देश्य था लोगों को यह जागरूक करना कि अच्छा स्वास्थ्य संतुलित आहार पर आधारित है। धीरे-धीरे यह अभियान एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले चुका है, जो अब पोषण अभियान और मध्याह्न भोजन जैसी सरकारी योजनाओं से जुड़कर देश के हर कोने तक पहुंच रहा है।
क्या कहती है भारत में पोषण की वर्तमान तस्वीर?
भारत जैसे विशाल देश में पोषण की स्थिति अलग-अलग और जटिल है। एक ओर बाल कुपोषण और महिला एनीमिया जैसी गंभीर समस्याएं हैं, तो दूसरी ओर मोटापा और मधुमेह जैसी जीवनशैली की बीमारियां बढ़ रही हैं। भारत के एनएफएचएस-पांच (2019-21) के नवीनतम राष्ट्रीय पोषण आंकड़ों से पता चलता है कि बाल कुपोषण में लगातार कमी आ रही है, जिसमें 35.5 फीसदी बच्चे अविकसित और 19.3 फीसदी कमजोर हैं, जबकि वयस्क मोटापे की दर महिलाओं के लिए लगभग 6.2 फीसदी और पुरुषों के लिए 3.5 फीसदी है।
ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट के पोषण ट्रैकर (नवंबर 2023) के अनुसार, भारत ने मातृ, शिशु और छोटे बच्चों के पोषण से जुड़े कुछ लक्ष्यों में प्रगति की है, लेकिन कई क्षेत्रों में अभी भी गंभीर चुनौतियां बनी हुई हैं। हाल ही में जारी आंकड़े बताते हैं कि भारत कुछ बड़े पोषण लक्ष्यों को लेकर सही दिशा में आगे बढ़ रहा है, लेकिन कुछ मामलों में प्रगति बहुत कम हो पाई है।
मातृ और शिशु पोषण की स्थिति
भारत स्तनपान के लक्ष्य को पाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। शून्य से पांच महीने तक के 58 फीसदी शिशुओं को ही मां का दूध मिल रहा है। बच्चों में ठिगनेपन को लेकर भारत प्रगति कर रहा है। फिर भी, 34.7 फीसदी बच्चे पांच साल से छोटे अब भी ठिगनेपन से प्रभावित हैं। यह आंकड़ा एशिया के औसत (21.8 फीसदी) से काफी अधिक है। कम उम्र के बच्चों में मोटापा, पांच साल से कम उम्र के 1.6 फीसदी बच्चे मोटापे से ग्रस्त हैं। हालांकि भारत इस संख्या को बढ़ने से रोकने में सफल रहा है।
बहुत ज्यादा प्रगति नहीं हुई
प्रजनन आयु की महिलाओं में खून की कमी, 15 से 49 साल की 53 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। इस दिशा में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। बच्चों में दुबलापन, पांच साल से छोटे 17.3 फीसदी बच्चे दुबलापन से प्रभावित हैं। यह एशिया के औसत (8.9 फीसदी) से लगभग दोगुना है और भारत दुनिया के सबसे अधिक प्रभावित देशों में शामिल है।
आहार से जुड़ी बीमारियां
भारत में मोटापा और मधुमेह जैसी बीमारियों की स्थिति भी चिंता का विषय है। रिपोर्ट के अनुसार, 6.2 फीसदी महिलाएं मोटापे की शिकार हैं। जबकि 3.5 फीसदी पुरुष मोटापे से जूझ रहे हैं। यह दर एशियाई औसत से कम (महिलाएं 10.3 फीसदी, पुरुष 7.5 फीसदी) है। नौ फीसदी महिलाओं को मधुमेह है जबकि 10.2 फीसदी पुरुष इसके सीकर हैं। यह स्थिति भारत में तेजी से बढ़ रही है और गंभीर चुनौती पेश कर रही है। तेजी से बदलते खानपान, जंक फूड का बढ़ता चलन और शारीरिक गतिविधि की कमी इन बीमारियों के पीछे मुख्य कारण हैं। यह स्थिति बताती है कि भारत को केवल कुपोषण ही नहीं, बल्कि अतिपोषण और गलत खानपान से भी निपटना होगा।
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का महत्व
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह हमें यह सोचने का अवसर देता है कि क्या हम सचमुच अपने बच्चों और माताओं को वह पोषण दे पा रहे हैं जिसके वे हकदार हैं। यह सप्ताह केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि एक आंदोलन है जो हर व्यक्ति, हर परिवार और हर समुदाय की जिम्मेदारी को सामने लाता है। भारत ने कुछ क्षेत्रों में सराहनीय प्रगति की है, लेकिन मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। इसके लिए कुछ कदम जरूरी हैं, सामुदायिक और स्कूल स्तर पर पोषण शिक्षा को बढ़ावा देना। सरकारी योजनाओं जैसे पोषण अभियान और मध्याह्न भोजन को और प्रभावी बनाना। स्थानीय और सस्ते पौष्टिक खाद्य पदार्थों पर जोर देना, ताकि हर वर्ग इन्हें अपना सके। तकनीक और सोशल मीडिया का उपयोग करके पोषण संदेश को हर घर तक पहुंचाना। नीति निर्माता, स्वास्थ्य विशेषज्ञ, शिक्षक और जमीनी संगठन मिलकर एक टिकाऊ रणनीति बनाएं।
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह हमें यह याद दिलाता है कि पोषण केवल स्वास्थ्य का सवाल नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य का आधार है। जब तक हर बच्चे को पर्याप्त और पौष्टिक आहार नहीं मिलेगा, जब तक हर महिला एनीमिया से मुक्त नहीं होगी और जब तक हर नागरिक स्वस्थ भोजन को जीवनशैली का हिस्सा नहीं बनाएगा, तब तक स्वस्थ भारत का सपना अधूरा रहेगा। अब समय है कि हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि संतुलित आहार और स्वस्थ भोजन केवल आदर्श नहीं, बल्कि हर भारतीय की दिनचर्या का हिस्सा बने।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )